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भारतीय हाकी खिलाड़ी जुगराज की संघर्ष कहानी, पिता थे कुली, कभी जूते न होने पर नहीं दे पाते थे ट्रायल

Hockey Player Jugraj Singh भारतीय हाकी टीम के खिलाड़ी जुगराज सिंह की संघर्ष की कहानी बेहद अनोखी है। उनके पिता पेशे से कुली थे और कभी ऐसे हालात थे कि जूते न होने की वजह से जुगराज हाकी का ट्रायल नहीं दे पाए थे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sun, 21 Aug 2022 01:39 PM (IST)
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अमृतसर में हवाई अड्डे पर भारतीय हाकी टीम के खिलाड़ी जुगराज सिंह अपने स्‍वजनों के साथ। (जागरण)

अमृतसर, [हरदीप रंधावा]। Jugraj Singh Story: हाल में संपन्‍न हुए राष्‍ट्रमंडल खेलों में भारतीय हाकी टीम में शामिल रहे जुगराज सिंह की संघर्ष की कहानी अद्भूत है और यह विषम हालात का सामना कर रहे लोगों को हौसला देती है। जुगराज ने गरीबी और बदहाली के हालात का सामना कर अपनी मंजिल हासिल की। उनके पिता अटारी बार्डर पर कुली थे और स्थिति ऐसी थी कि जूते न होने की वजह से जुगराज एक बार हाकी का ट्रायल नहीं दे पाए थे। इतना ही नहीं, वह प्‍लास्टिक जूते पहनकर पहली बार टर्फ पर खेले थे।     

जुगराज ने गरीबी और बदहाली के हालत से निकलकर अपनी मंजिल हासिल की

जुगराज कहते हैं, ' एक समय था जब मेरे पास स्टड (जूते) नहीं थे और इसी वजह से मैं दो-तीन बार ट्रायल भी नहीं दे पाया था। टर्फ पर स्टड ही पहनते हैं, परंतु जो जूते मैं स्कूल पहनता था, वही ग्राउंड में पहनकर चला जाता था, मगर वे टर्फ पर नहीं चलते थे।' 

प्लास्टिक के जूते पहनकर पहली बार टर्फ पर उतरे थे

वह पहली बार प्लास्टिक के जूते पहनकर जालंधर सुरजीत सिंह हाकी अकादमी गए थे। बर्मिघम कामनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेकर लौटे अमृतसर जिले के अटारी के भारतीय हाकी खिलाड़ी जुगराज सिंह ने अपने संघर्ष की कहानी साझा की। जुगराज के साथ ही जिले के हाकी खिलाड़ी हरमनप्रीत सिंह, शमशेर सिंह और गुरजंट सिंह भी अपने घर आ गए हैं।

पिता सुरजीत सिंह अटारी बार्डर पर कुली थे

जुगराज ने बताया कि उनके पिता सुरजीत सिंह अटारी बार्डर पर कुली थे। उनकी आय से ही परिवार का गुजारा चलता था। परिवार में वह (जुगराज) सबसे छोटे हैं। उनकी दो बड़ी बहनें और एक बड़ा भाई है। जुगराज ने बताया कि पिता सुरजीत ने लगातार 12-12 घंटे काम कर बच्चों को पढ़ाया। उन्हें हाकी सिखाने की व्‍यवस्‍था की। बड़ी बहन को बीए के बाद ईटीटी का कोर्स करवाया, ताकि उसे नौकरी मिल सके। छोटी बहन को भी बारहवीं तक पढ़ाकर ड्राइंग टीचर का कोर्स करवाया, मगर उन्हें भी नौकरी नहीं मिली।

बड़े भाई ने छोटे के सपनों को पूरा करने के लिए खुद संभाली परिवार की जिम्मेदारी

जुगराज सिंह ने बताया कि बड़े भाई ने बारहवीं तक पढ़ाई की, लेकिन पारिवारिक हालात के चलते आगे पढ़ नहीं पाए। पिता बार्डर पर आना वाला सीमेंट ढोते थे, जिस कारण उनकी छाती में सीमेंट जम गया था। इससे वह बीमार रहने लगे थे। ऐसे में बड़े भाई ने घर को चलाने के लिए खुद जिम्मेदारी संभाली और उन्हें (जुगराज को) हाकी खेलने के लिए प्रेरित किया।

नौसेना में नौकरी मिली तो परिवार की स्थिति सुधरी

जुगराज ने बताया कि हाकी खेलने की वजह से वर्ष 2016 में उन्‍हें भारतीय नौसेना में नौकरी मिली। इससे परिवार की स्थिति में कुछ सुधार हुआ तो दोनों बहनों और भाई की शादी करवाई। वर्ष 2020 में कोविड की वजह से लाकडाउन चल रहा था, फिर भी उन्होंने खेलना नहीं छोड़ा। इस साल जनवरी में उनका चयन भारतीय हाकी टीम में हुआ। आखिर कामनवेल्थ गेम्स में टीम देश के लिए सिल्वर पदक लाने में कामयाब रही जिससे पूरे परिवार में खुशी है।

पीएनबी से मिला सीनियर टीम का हिस्सा बनने का मौका

जुगराज ने 2005 में गांव में ही खेलना शुरू किया था। यहां तीन-चार साल खेलने के बाद खालसा स्कूल में स्पो‌र्ट्स विंग में दाखिला लिया। उसके बाद उन्‍होंने खडूर साहिब हाकी अकादमी की तरफ से खेला। फिर पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) अकादमी में दाखिला मिल गया। बेहतर खेल की बदौलत पीएनबी की सीनियर टीम में खेलने का अवसर मिला। जुगराज बताते हैं कि कोच मनिंदर सिंह पल्ली, मनजीत सिंह, सूबेदार बलकार सिंह से खेल की बारीकियां सीखकर आज वह यहां तक पहुंचे हैं।

पिछली गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ेंगे

अगले साल जनवरी में भुवनेश्वर में होने वाले हाकी व‌र्ल्ड कप के संबंध में जुगराज ने कहा कि अब फिटनेस कैंप के लिए बेंगलुरु जाएंगे। इसके बाद टीम का चयन होगा। कामनवेल्थ गेम्स में आस्ट्रेलिया के साथ फाइनल मैच में खराब प्रदर्शन को उन्होंने बुरे दिन बताया।

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उन्होंने कहा कि जिन-जिन टीमों के साथ मैच खेलकर आए हैं, उनकी खेल नीति को देखकर आप काफी कुछ सीखेंगे। विश्व में तीसरे नंबर पर भारत की टीम है। जर्मनी, नींदरलैंड व आस्ट्रेलिया को कड़ी टक्कर देंगे और कामनवेल्थ में हुई गलतियों को सुधारते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे।