पिता के देहांत के बाद शादी न कर संभाला परिवार, केंद्रीय मंत्री से हो चुकी हैं सम्मानित Ludiana news
42 वर्षीय लीना सुबह की शिफ्ट में स्कूली बच्चों और शाम की शिफ्ट में कॉलेज के विद्यार्थियों को शिक्षा दे रही हैं। लीना डबल एमए एमफिल एमएड और सीटीईटी पास है।
लुधियाना, जेएनएन। कहते हैं मजबूरियां इंसान को बहुत कुछ सिखा देती है। शहर की सुभानी बिल्डिंग, नीम वाला चौक की रहने वाली लीना सूरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। सिर से पिता का साया उठने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी संभाली। वह भी उस मुश्किल समय में जब घर के आर्थिक हालात बिल्कुल ठीक नहीं थी। लीना की तीन बहनें व दो भाई हैं और वह तीसरे नंबर की है। परिवार की जिम्मेदारी संभालने के कारण उन्होंने अब तक शादी नहीं की है। 42 वर्षीय लीना सुबह की शिफ्ट में स्कूली बच्चों और शाम की शिफ्ट में कॉलेज के विद्यार्थियों को शिक्षा दे रही हैं। लीना डबल एमए, एमफिल, एमएड और सीटीईटी पास है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1998 में उनके पिता जगमोहन सूरी का देहांत हो गया था। उस समय केवल एक बड़ी बहन की ही शादी हुई थी और वह खुद एमए भाग-2 में पढ़ाई कर रहीं थी। पिता के देहांत के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ रही थी क्योंकि घर के आर्थिक हालात ही ऐसे हो गए थे, लेेकिन कॉलेज अध्यापकों के सहयोग से उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। फिर उसने वर्ष 1999 में आर्य कॉलेज लड़कों में बतौर हिस्ट्री लेक्चरार के तौर पर पढ़ाना शुरू किया। वर्ष 2001 में डीडी जैन कॉलेज में पढ़ाया। वर्ष 2003 से अब तक सतीश चंद्र धवन सरकारी कॉलेज के इवनिंग शिफ्ट में गेस्ट फैकल्टी हिस्ट्री लेक्चरर के तौर पर पढ़ा रही हैं। इससे पहले मॉर्निग शिफ्ट में स्प्रिंग डेल सीनियर सेकेंडरी स्कूल के 11वीं और 12वीं कक्षा के बच्चों को राजनीति शास्त्र में शिक्षित कर रही हैं।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से मिल चुका प्रशंसनीय पत्र
लीना बता रही हैं कि उनके पिता स्वर्गीय जगमोहन सूरी हमेशा से ही उसके बेस्ट फ्रेंड रहे हैं। वह अपनी हर एक बात को पिता से शेयर करती थी। लीना को वर्ष 2016-17 में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से प्रशंसनीय पत्र भी मिल चुका है। वहीं डॉ. बीआर आंबेडकर एसोसिएशन की ओर से नेशनल एप्रीसिएशन अवार्ड फॉर टीचिंग भी मिल चुका है।
बेटियां ही समझती हैं मां-बाप का दर्दः लीना
लीना ने कहा कि जो लोग बेटों की चाह रखते हैं, उनकी सोच बिल्कुल गलत है, क्योंकि बेटी चाहे छोटी हो या बड़ी, वह ही मां-बाप का दर्द अच्छे से समझ सकती है। एक बेटी में मां का दिल हमेशा से ही रहता है।
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