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Ludhiana News: गड्ढों भरी सड़कों पर नहीं चल पाईं सिटी बसें, फंड के अभाव में नहीं हुई मरम्मत

सिटी बस नहीं चलने से यात्रियाें काे परेशानी हाे रही हैं। राज्य स्तर पर दूसरी बड़ी खामी रही है कि सिटी बसों के परिचालन के लिए ट्रासंपोर्ट विभाग ने कोई नीति तक तैयार नहीं की है। अब यह चंद रूट पर ही चल रही है।

By Varinder RanaEdited By: Updated: Mon, 03 Oct 2022 07:43 AM (IST)
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सिटी बस सर्विस दिन-ब-दिन दम तोड़ती जा रही है। (फाइल फाेटाे)
वरिंदर राणा, लुधियाना। City Bus Serviceः  जनता की सुविधा के लिए चलाई गई सिटी बस सर्विस दिन-ब-दिन दम तोड़ती जा रही है। सिटी बस की बदहाली के लिए पहले दिन से कई चीजें जिम्मेदार रही हैं। केंद्र सरकार ने चाहे इन्हें खरीदने के लिए फंड जारी कर दिए, लेकिन इन बसों को चलाने और इनके रखरखाव के लिए केंद्र या फिर प्रदेश सरकार ने कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए।

राज्य स्तर पर दूसरी बड़ी खामी रही है कि सिटी बसों के परिचालन के लिए ट्रासंपोर्ट विभाग ने कोई नीति तक तैयार नहीं की है। इस कारण सिटी बसों को रूट परमिट जारी करते समय सामान्य ट्रांसपोर्ट की तरफ से नियम रखे गए है। यही कारण है कि सिटी बसें धीरे-धीरे शहर की सड़कों से गायब होती गई है। अब यह चंद रूट पर ही चल रही है।

2009 में निगम ने खरीदी थी 120 बसें

वर्ष 2009 में निगम की ओर से 65.20 करोड़ रुपये खर्च 120 बसें खरीदी गई थीं। बसों की खरीद के समय सबसे बड़ा अड़ंगा था कि योजना में पहले से तय था कि निगम लो फ्लोर एसी, लो फ्लोर नान एसी या फिर मिनी बसें खरीद सकता है। इन बसों का साइज सामान्य बसों से बड़ा था। सिटी बस की लंबाई 42 फुट और चौड़ाई 7.5 फुट है, जबकि सरकारी बस का साइज 24 फुट लंबा और छह फुट चौड़ा है।

ऐसे में इन सिटी बसों को भीड़ वाली सड़कों पर चालान मुश्किल है। दूसरा बड़ा कारण रहा लो फ्लोर होना। लो फ्लोर सिटी बस का ग्राउंड क्लियरेंस महज 400 एमएम यानी छह इंच से भी कम है। जबकि सामान्य बसों का ग्राउंड क्लियरेंस डेढ फुट तक होता है। शहर की सड़कों पर गहरे गड्ढे हैं। ऐसे में लो फ्लोर बसों की मरम्मत का खर्च काफी बढ़ गया।

बदहाल सिटी बस के लिए सबसे बड़े कारण

निगम के पास नहीं बस संचालन का तजुर्बा<ङ्कक्चष्टक्त्ररुस्न>सिटी बसों के परिचालन का जिम्मा निगम को सौंपा गया, जबकि उनके पास बस चलाने का कोई तजुर्बा तक नहीं था। दूसरी तरफ से सिटी बस को चलाने के लिए ट्रांसपोर्ट विभाग ने कोई पालिसी तैयार नहीं की। बस रूट लेने के लिए ट्रांसपोर्ट विभाग के चक्कर लगाने पड़े। अभी तक सिटी बसों के लिए कोई पालिसी नहीं है।

एक बस की रिपेयर का लाखों रुपये बिल

साल 2009 में खरीदी गई सिटी बसें हाईटेक थीं। इनके रखरखाव के लिए प्रोफेशनल स्टाफ की जरूरत थी। निगम के पास इतना पैसा नहीं था कि वह 120 बसों के रखरखाव के लिए माहिरों की फौज को रख सके। कंपनी एक बस रिपेयर करने का लाखों रुपये बिल बना रही थी। ऐसे में खराब बसों को धीरे धीरे एक साइड करना पड़ा।

ठेके पर दिया गया बसों का संचालन

निगम ने परिचालन का जिम्मा खुद उठाने की जगह ठेके पर चलाना बेहतर समझा। सबसे पहले निगम ने खुद 10 बसों का परिचालन किया इसके लिए खुद ड्राइवर व कंडक्टर रखे गए। एक साल बसे चलाने पर निगम को करोड़ों रुपये का मुनाफा हुआ था। मुलाजिमों को पक्का न करना पड़ जाए इस बात के डर से बसों को ठेके पर सौंप दिया गया।

17 कमिश्नर बदल गए, कौन ले जिम्मेदारी

सिटी बसों को चलाने के लिए एक बोर्ड का गठन किया गया है। इसका डायरेक्टर डिप्टी कमिश्नर या फिर निगम कमिश्नर होगा। डायरेक्टर नियुक्त करते देखा जाता है कि दोनों में कौन सीनियर है। ट्रांसपोर्ट पालिसी नहीं होने के चलते बोर्ड आफ डायरेक्टर भी सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गए। अभी तक निगम के 17 कमिश्नर बदल चुके है। राज्य सरकार तक मु्ददों को उठाया ही नहीं गया।

किराये को लेकर ठेका कंपनी से रहा विवाद

बस चला रही कंपनी के साथ शर्तों को सही तरीके से पूरा नहीं किया गया। लुधियाना सिटी बसों का किराया नौ साल में सिर्फ एक बार बढ़ा है, जबकि डीजल के दाम दो गुणा हो चुके है। लो फ्लोर एसी बस एक लीटर तेल में सिर्फ डेढ़ किलोमीटर चलती है, नान एसी लो फ्लोर बस एक लीटर तेल में तीन किलोमीटर और मिनी बस एक लीटर तेल में छह किलोमीटर चलती है। किराये को लेकर ठेका कंपनी से निगम का विवाद भी रहा।

आटो चालक यूनियन की मनमान भी हावी

आटो रिक्शा और ई-रिक्शा के लिए सरकार ने अभी तक कोई नीति नहीं बनाई है। यही कारण है कि अवैध तौर पर चल रहे आटो रिक्शा व ई रिक्शा का असर सिटी बसों पर साफ दिखाई देता है। हालात यह बन चुके है कि आटो चालक यूनियन कई रूट पर सिटी बसों को चलने नहीं दे रही ै।

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