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खराब हो चुके गेहूं से भी तैयार होगा इथेनॉल, PAU के विज्ञानियों को तीन वर्ष के गहन शोध के बाद मिली सफलता

खराब हो चुके गेहूं से भी अब इथेनॉल तैयार किया जा सकेगे। लुधियाना के पीएयू स्थित आइसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आइआइएमआर) बायोकेमिस्ट डाक्टर धरम पाल के अनुसार अभी देश में लगभग 90 प्रतिशत इथेनाल गन्ने से प्राप्त हो रहा है जबकि पांच से 10 प्रतिशत टूटे हुए चावल से तैयार हो रहा है। अभी करीब 700 से 800 करोड़ लीटर के बीच इथेनॉल का उत्पादन हो रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Tue, 12 Sep 2023 06:31 PM (IST)
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खराब हो चुके गेहूं से भी तैयार होगा इथेनॉल (फोटो- जागरण)

लुधियाना, आशा मेहता। देश में अब तक गन्ने से इथेनॉल प्राप्त किया जा रहा है। लेकिन अब खराब हो चुके गेहूं से भी इथेनॉल प्राप्त किया जा सकेगा। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के विज्ञानियों ने तीन वर्ष के गहन शोध के बाद खराब गेहूं से इथेनॉल तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। यह शोध यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलाजी विभाग ने किया है। इसके लिए गत सप्ताह यूनिवर्सिटी को भारत सरकार से पेटेंट प्रमाण पत्र भी प्राप्त हो गया है।

विज्ञानियों का कहना है कि यह शोध इथेनॉल उत्पादन में बेहद उपयोगी सिद्ध होगा। खासकर भारत सरकार के इथेनाल मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी) के तहत वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनाल मिलाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में यह अत्यंत सहायक रहेगा। भारत सरकार विदेशी आयात कम करने और देश में जैव ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए पेट्रोल में इथेनाल मिश्रण पर जोर दे रही है। इस समय गन्ने से प्राप्त हो रहे इथेनाल से पेट्रोल में 10 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य को पूरा कर लिया गया है।

कहां से आएगा गेहूं से इथेनॉल बनाने का आइडिया?

विभाग के प्रमुख और प्रिंसिपल माइक्रोबायोलाजिस्ट डॉ. गुरविंदर कोचर कहते हैं कि देश में बड़ी मात्रा में खुले में और गोदामों में पड़ा अनाज रखरखाव के अभाव में खराब हो जाता है। पंजाब और हरियाणा में समस्या बहुत अधिक है। केंद्रीय अन्न भंडार में यही दोनों राज्य सर्वाधिक योगदान देते हैं। अक्सर अनाज इतना खराब हो जाता है कि पशुओं के खाने योग्य भी नहीं रहता। ऐसे में एक ऐसे शोध का विचार किया गया, जिससे सड़कर खराब हो चुके गेहूं को इथेनॉल में बदला जा सके।

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उन्होंने बताया कि खराब हो चुके अनाज में भी स्टार्च काफी अच्छी मात्रा में (लगभग 40 प्रतिशत) रहता है। यहां तक कि फंगस लग चुके अनाज में भी काफी मात्रा में स्टार्च होता है। सौ ग्राम स्टार्च से सौ ग्राम इथेनॉल बन सकता है। अच्छी बात यह है कि सरकार ने भी राष्ट्रीय बायोफ्यूल पालिसी में खराब अनाज व फसलों के अवशेष से इथेनाल तैयार करने की स्वीकृति दे दी है। इसी को ध्यान में रखकर खराब गेहूं से इथेनाल बनाने पर शोध शुरू किया गया।

ऐसे तैयार किया गया इथेनाल

डॉ. गुरविंदर कोचर ने बताया कि शोध के दौरान हमने खराब अनाज लिया। इसके बाद अनाज को खमीरीकृत शुगर बनाने के लिए तैयार किया। इसके लिए हमने एमाइलेस का प्रयोग किया। एमाइलेस एक प्रकार का एंजाइम है, जो स्टार्च को ग्लूकोज में बदल देता है। फिर उस ग्लूकोज का खमीरीकरण किया गया, जिससे इथेनाल तैयार हुआ। हमने इथेनाल तैयार करने के लिए सुधरी हुई प्रक्रिया विकसित की है, जोकि बहुत महत्‍वपूर्ण है।

700 करोड़ लीटर इथेनाल की आवश्यकता

लुधियाना के पीएयू स्थित आइसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आइआइएमआर) बायोकेमिस्ट डाक्टर धरम पाल के अनुसार अभी देश में लगभग 90 प्रतिशत इथेनाल गन्ने से प्राप्त हो रहा है, जबकि पांच से 10 प्रतिशत टूटे हुए चावल से तैयार हो रहा है। अभी करीब 700 से 800 करोड़ लीटर के बीच इथेनॉल का उत्पादन हो रहा है। लेकिन भारत सरकार के इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी) के तहत वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथेनाल मिश्रण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें 600 से 700 करोड़ लीटर और इथेनॉल का उत्पादन करना होगा। ऐसे में गन्ने के अलावा दूसरे विकल्पों से एथेनाल तैयार करने पर भी जोर देना होगा।

दूसरे विकल्पों में खराब गेहूं और चावल के साथ-साथ मक्की भी अच्छा विकल्प है। कुल उत्पादन में से यह खाने के लिए मात्र पांच से दस प्रतिशत ही प्रयोग में लाया जाता है। देश में करीब 33 मिलियन टन मक्के का उत्पादन हो रहा है। इसमें से करीब 70 प्रतिशत पोल्ट्री व एनिमल फीड और 15 प्रतिशत स्टार्च इंडस्ट्री में चला जाता है। ऐसे में आवश्यक एथेनाल के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मक्के के उत्पादन को भी बढ़ाना होगा। पंजाब और हरियाणा में धान के स्थान पर मक्के की खेती के रकबे में वृद्धि की जा सकती है। इससे फसली विविधिकरण को भी बढ़ावा मिलेगा।

हर वर्ष लगभग 21 मिलियन टन गेहूं होता है खराब

एक अनुमान के अनुसार देश में हर साल लगभग 68 मिलियन टन अन्न की बर्बादी होती है, जिसकी कीमत लगभग पचास हजार करोड़ है। इसमें अकेले गेहूं का योगदान लगभग 21 मिलियन टन है।

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