Automated Aquaponics System: किसान मछलियां पालें, सब्जियां उगाएं और जबरदस्त मुनाफा कमाएं
गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी में लगे आटोमेटेड एक्वापोनिक्स सिस्टम में बहुत कम जगह में सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं और मछली पालन भी हो सकता है। एक बार सिस्टम स्थापित हो जाए तो वर्षों तक मुनाफा कमा सकते हैं।
लुधियाना [आशा मेहता]। आम के आम गुठलियों के भी दाम। यह कहावत गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी में स्थापित आटोमेटेड एक्वापोनिक्स सिस्टम पर लागू होती है। यह एक ऐसा सिस्टम है, जिसके जरिये बहुत कम जगह में सब्जियां भी उगाई जा सकती हैं और मछली पालन भी हो सकता है। एक बार सिस्टम स्थापित हो जाए तो वर्षों तक मुनाफा कमा सकते हैं। यह सिस्टम किसानों, मछली पालकों के साथ-साथ उन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद है, जो खेतीबाड़ी का शौक रखते हैं।
इस सिस्टम को रूरल और अर्बन दोनों स्थानों पर आसानी से स्थापित किया जा सकता है। इसे सेंटर फॉर डिवेलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटरिंग मोहाली ने स्थापित किया है। वेटरनरी यूनिवर्सिटी आने वाले दिनों में इस सिस्टम को प्रमोट करने जा रही है। इससे किसानों व पशु पालकों की अाय दुगनी हो सकेगी। फिशरीज कॉलेज की डीन डा. मीरा डी आंसल ने बताया कि एक्वापोनिक्स सिस्टम एक्वापोनिक्स में हमने दो कंपोनेंट आपस में जोड़े हैं। एक एक्वाकल्चर और दूसरा हाईड्रोपोनिक। एक्वाकल्चर का मलतब मछली पालन। जबकि हाईड्रोपोनिक्स में हम जमीन की बजाए पानी में सबिजयां पैदा करते हैं। वेटरनरी यूनिवर्सिटी में दो सौ स्क्वेयर मीटर में एक्वापोनिक्स सिस्टम स्थापित किया है। इसमें से सौ स्क्वेयर मीटर में एक्वाकल्चर यूनिट है और शेष में हाईड्रोपोनिक्स यूनिट।
कम जगह में ज्यादा उत्पादन
एक्वाकल्चर यूनिट में 50 हजार लीटर पानी की क्षमता वाली तीन टंकियां हैं। इनमें हर साल करीब डेढ़ टन यानी 15 क्विंटल मछली पैदा की जा सकती है। पारंपरिक तरीके में इतनी मछलियां एक एकड़ के तालाब में पैदा हाेती हैं। वहीं पालीहाउस में हाईड्रोपोनिक्स यूनिट में वर्टिकल फार्मिंग, गली सिस्टम या पाइप सिस्टम के जरिये सब्जियां उगाई जाती हैं। वर्टिकल फार्मिंग में कम जगह में ज्यादा प्रोडक्शन ले सकते हैं।
मछलियों के टैंक का पानी रिसाइकिल करके हाईड्रोपोनिक्स यूनिट में करते हैं इस्तेमाल
हाईड्रोपोनिक्स यूनिट में एक स्टैंड में नौ पाइप हैं। पाइपों में पानी में प्लांट लगाए गए हैं। इसमें हम सलाद, स्ट्राबेरी, पालक सहित अन्य पत्तेदार सब्जियां उगा सकते हैं। खासकर हाई वैल्यू सब्जियां लगा सकते हैं। डा. मीरा का कहना है कि यह सिस्टम लेस वाटर, लेस लैंड और मोर प्रोडक्शन पर आधारित है। इसकी खासियत यह है कि जो पानी मछली पालन में इस्तेमाल होगा, उसी पानी को हम रिसाइकिल करके हाईड्रोपोनिक्स यूनिट में वर्टिकल फार्मिंग के लिए सर्कुलेट करते हैं। हाईड्रोपोनिक यूनिट में पानी सर्कुलेट होकर दोबारा फिश टैंक में चला जाता है। इसमें पारंपरिक खेती और मछली पालन की तुलना में केवल 10 से 12 प्रतिशत पानी लगता है। कम स्थान में ज्यादा उत्पादन मिलता है।
रोग और कीटों से नुकसान का खतरा कम
इसके अलावा, हाईड्रोपोनिक्स यूनिट में जमीन से ऊपर सब्जियां उगाई जाती है, इसकी वजह से जमीन से बीमारी फैलने का खतरा नहीं होता। दूसरा, पालीहाउस होने की वजह से कीटों से नुकसान पहुंचने का डर नहीं रहता है। तीसरा, हाइड्रोपोनिक्स यूनिट में उगी सब्जियां पूरी तरह से आर्गेनिक होती हैं।
एक्वापोनिक्स सिस्टम पर बीस लाख रुपये का खर्च आया
एक्वापोनिक्स सिस्टम के दोनों यूनिटों के स्ट्रक्चर पर करीब बीस लाख रूपये का खर्च आया है। अगर किसान इस तरह का स्ट्रक्चर लगाते हैं तो करीब 12 लाख में यूनिट बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस यूनिट में सब्जियां व मछलियों के उत्पादन से किसान व मछली पालक सारे खर्च निकाल कर वर्ष में करीब साढ़े तीन लाख रुपये प्रोफिट कमा सकते हैं। डा. मीरा ने कहा कि जिस तरह से देश में खेती का आकार दिन-प्रतिदिन सिमटता जा रहा है, जमीन कम हो रही है, ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, ऐसी स्थिति में हमें इस तरह की मार्डन टेक्नोलॉजी चाहिए।
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें