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जो व्यक्ति गलती जानकर भी उसका प्रतिकार न करे, समझो वह साधना पथ से विचलित हो गया : रमेश मुनि

श्री रमेश मुनि ने कहा जैसे भार उठाने वाला वाहक अपना भार उतार कर अत्यंत हल्कापन महसूस करता है। वैसे ही अपने पापों को बुरा समझने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे अवश्य ही अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Mon, 28 Sep 2020 04:14 PM (IST)
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एसएस जैन स्थानक सेक्टर-39 में लुधियाना में संदेश देते हुए गुरदेव रमेश मुनि जी।
लुधियाना, जेएनएन। एसएस जैन स्थानक सेक्टर-39 में रमेश मुनि, मुकेश मुनि व मुदित मुनि सुखसाता विराजमान है। अपने संदेश में गुरुदेव रमेश मुनि ने कहा कि साधक अपने साधना पथ पर बिना किसी रुकावट के तभी आगे बढ़ सकता है, जब वह अपनी दुर्बलताओं के प्रति सजग रहे। यह संभव नहीं है कि साधक साधना के कांटों से भरे रास्ते पर चलता रहे और उससे कहीं कोई भूल नहीं हो।

उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपनी गलती जानकर भी उसका प्रतिकार नहीं करना चाहता है या फिर उसकी उपेक्षा करता है, तो समझना चाहिए कि वह साधना पथ से विचलित हाे गया है। जैसे भार उठाने वाला वाहक अपना भार उतार कर अत्यंत हल्कापन महसूस करता है। वैसे ही अपने पापों को बुरा समझने वाला धीरे-धीरे जरुर पापों से मुक्त हो जाता है। भूल हो जाना पाप नहीं हैं। वास्तव में पाप तो भूल करना और उसे छिपाने का यत्न करना है। अगर ऐसा ना किया जाए तो आत्मा दूषित हो जाती है। और साधना सिर्फ दिखावा बनकर रह जाती है।

सेवा से ही यश मिलता है: राजेंद्र मुनि

एसएस जैन स्थानक किचलू नगर में राजस्थान प्रवर्तक डॉ. राजेंद्र मुनि, सुरेंद्र मुनि सुखसाता विराजमान है। अपने संदेश में गुरुदेव राजेंद्र मुनि ने कहा कि कभी-कभी निष्काम सेवा भावना का आदर्श निभाओ। परिवार सेवा में स्वार्थ छिपा हुआ है, निःस्वार्थ सेवा करो। सेवा से यश फैलता है और बुरे कर्म खत्म होते हैं। दो तरह की सेवा का जिक्र शास्त्रों में आता है। सकाम सेवा व निष्काम सेवा। सकाम सेवा में स्वार्थ छिपा होता है। निष्काम सेवा में कोई स्वार्थ नहीं होता। सेवा के लिए कभी निमंत्रण की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। जब भी लगे की सेवा की जरूरत है, तुरंत खड़े हो जाओ।

लुधियाना में प्रवचन करते हुए राजेंद्र मुनि और सुरेंद्र मुनि।

पर्दा शर्म का प्रतीक: अरुण मुनि

एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में गुरुदेव अरुण मुनि ने अपने संदेश में कहा कि महल में तीन चीजें अति आवश्यक हैं। प्यार, फर्ज और जिम्मेदारी। इन तीनों के बिना महल बेकार है। आज महल में पर्दे लगाएंगे। पर्दे लगाने का तरीका बड़ा सभ्य है। पहले भोजन व भजन दोनों पर्दे में होते थे पर आज ये दाेनों ही खुले में हो रहे हैं। जब से पर्दा प्रथा खत्म हुई है, तब से वासना ने भी अपने पंख फैला लिए हैं। खिड़की पर पर्दे बहुत जरूरी हैं, पर्दा, शर्म का प्रतीक होता है। इसलिए, आज मानव महल में भी लज्जा रुपी पर्दे लगाइए। जिसकी आंखों में होती लाज, उसके सिद्ध होते सारे काज।

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