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श्री गुरु नानक देव जी के चरणों से पावन हुई थी लुधियाना की धरती, आज भी प्रकाशवान हैं यहां के तीर्थ

श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। गुरुजी का प्रकाश पर्व 8 नवंबर को बड़ी श्रद्धा से मनाया जाएगा। वहीं औद्योगिक नगरी लुधियाना में गुरुद्वारों को सजाया जा रहा है। गुरुजी के पावन चरण यहां भी पड़े थे।

By DeepikaEdited By: Published: Sat, 05 Nov 2022 11:43 AM (IST)Updated: Sat, 05 Nov 2022 11:43 AM (IST)
श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को लेकर तैयारियां शुरू। (जागरण)

जागरण संवाददाता, लुधियाना। हर धर्म के साझे, हर मन प्यारे, मानवता की राह दिखाने वाले श्री गुरु नानक देव जी के चरणों से पावन हुई औद्योगिक नगरी आज भी कृतार्थ है। उनका आगमन भले 507 वर्ष पहले हुआ था, मगर उनकी चरण छोह प्राप्त धर्ती आज भी परम पूजनीय है। 8 नवंबर को श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। इसके लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। गुरुद्वारों को सजाया जा रहा है।

श्री गुरु नानक जी के प्रकाश पर्व पर संगत उनके द्वारा की गई आलौकिक वर्षा का स्मरण करते हैं। श्री गुरु नानक देव जी लुधियाना शहर भी पहुंचे थे और सतलुज के किनारे विश्राम किया। यहां पर इस जगह अब गुरुद्वारा गऊघाट सुशोभित है और बाकायदा लोग सरोवर में स्नान करते हैं। यही नहीं शहर के बाहर बार ठक्करवाल का इतिहास भी उनके इस आगमन से जुड़ा हुआ है।

गुरु जी ने रुकवाई थी गोहत्या

श्री गुरु नानक देव जी का आगमन शहर में 1515 ई. में हुआ बताया जाता है। अगर वह यहां नहीं आते तो शायद लुधियाना का नामो निशान नहीं होता। उनके वचनों से ही जलाल खां लोधी के शासन में गोहत्या बंद हुई और शहर की तरफ कटाव कर रहे सतलुज ने अपना रास्ता बदला। जब गुरु जी यहां आए तो उस समय गोहत्या चरम पर थी।

इतिहासकारों के अनुसार तब सतलुज दरिया लगातार लुधियाना शहर की तरफ कटाव कर रहा था। आबादी कुछ ही दूरी पर रह गई थी। शासक जलाल खां को जब इसका पता चला कि गुरु जी यहां पर विश्राम कर रहे हैं तो वह उनके पास फरियाद लेकर पहुंचा। उसने गुरुजी से विनती की कि सतलुज के कटाव से बचाया जाए।

गुरुजी ने वचन किए कि वह गोहत्या बंद कर दे तो सतलुज के कटाव से उसका राज्य बच जाएगा। जलाल खां ने जब वचन दिया तो गुरु जी ने सतलुज दरिया को आदेश दिया कि वह वहां से 7 कोस दूर चला जाए। सतलुज का बहाव यहां से सात कोस दूर हो गया मगर एक धारा यहीं बहती रही। इस धारा का नाम ही बुढ्ढा दरिया पड़ा। गोहत्या रुकवाने के कारण यहां पर बने गुरुद्वारा साहिब का नाम गोघाट पड़ गया।

झिंगड़ जगेड़ा को दिया था गुरुजी ने अपना नाम

शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित नानकपुर जगेड़ा को गुरु जी ने अपना नाम दिया था। उन्होंने यहां के बाशिंदों को कृतार्थ किया था। इसके बाद इस गांव का नाम झिंगड जगेड़ा से बदलकर नानकपुर जगेड़ा रख दिया गया। उनके बाद इस गांव को छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के चरण स्पर्श का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

इतिहास के अनुसार प्रथम पातशाही गुरुनानक देव जी नानक कटियाणा साहिब जाते समय झिंगड़ जगेड़ा गांव से होकर निकले। वे गुरुनानक देव जी इस गांव में रुके और छपड़ी के पास पीपल के पेड़ के नीचे बने कच्चे थड़े पर बैठ गए थे। इस गुरुद्वारा साहिब के सरोवर में स्नान करने से निरोग काया होने की मान्यता है। लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए थड़े पर खिलौने वाले हवाई जहाज चढ़ाते हैं।

ठक्करवाल में गुरुजी ने छका था लंगर

ठक्करवाल लुधियाना शहर से लगता गांव है। गऊघाट से प्रस्थान के बाद गुरु जी ठक्करवाल पहुंचे थे। वहां पर ठाकुर दास नाम के ढोंगी ने अपना डेरा बना रखा था। जब गुरु जी वहां पहुंचे तो वह गद्दी पर बैठ गया और खुद को बड़ा बताने लगा। गुरु जी उसकी तरफ पीठ करके बैठ गए और ठाकुर दास क्रोध दिखाने लगा।

गुरु जी गुरुबाणी का उच्चारण करने लगे। गुरुबाणी सुनकर ठाकुरदास ने गुरुजी को हरे राम बोलकर पुकारा। गुरुजी ने उसे सत करतार कह दिया। ठाकुर दास ने गुरुजी से पूछा कि क्या इन दोनों में कोई अंतर है। गुरु जी ने कहा कि सत्य पहले भी था अब भी है और भविष्य में भी सत्य ही रहेगा। उसके बाद गुरु नानक जी ने ठाकुर दास का अहंकार खत्म किया।

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