गुरुग्राम की बीमा कंपनी को बुजुर्ग महिला को देना होगा 8.09 लाख मेडिक्लेम, कनाडा में इलाज का नहीं किया भुगतान
लुधियाना में स्थायी लोक अदालत का निर्णय। कनाडा जाने के बाद बुजुर्ग का स्वास्थ्य हुआ था खराब। सरी स्थित अस्पताल में रहना पड़ा था दो दिन भर्ती। गुरुग्राम की कंपनी रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस ने खारिज कर दिया था दावा।
By Edited By: Updated: Mon, 21 Nov 2022 11:06 PM (IST)
संस, लुधियाना : स्थायी लोक अदालत ने गुरुग्राम की रेलिगेयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को लुधियाना के मोती नगर की रहने वाली 86 वर्षीय महिला मोहिंदर कौर को 8.09 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है। कनाडा की यात्रा के दौरान बुजुर्ग महिला के इलाज पर यह रुपए खर्च हुए थे।
स्थायी लोक अदालत के अध्यक्ष बलविंदर सिंह संधू, सदस्य अंजू गर्ग और राजविंदर कौर ने निर्णय में बीमा कंपनी की ओर से पहले से मौजूद बीमारियों के आधार पर महिला के क्लेम को रद करने को गलत ठहराया है। शिकायतकर्ता ने लोक अदालत को बताया कि वर्ष 2018 में कनाडा जाने से पहले उन्होंने जरूरत पड़ने पर अपने चिकित्सा उपचार को कवर करते हुए 180 दिन के लिए 88,734 रुपये का भुगतान कर एक पालिसी खरीदी थी। उस समय वे स्वस्थ थीं। जब वे कनाडा पहुंची तो वहां उन्हें स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ा।
उन्हें सरी मेमोरियल अस्पताल, न्यू वेस्टमिंस्टर में भर्ती करना पड़ा। वे 12 से 14 मार्च, 2018 तक अस्पताल में भर्ती रहीं। वह कैशलेस इलाज की हकदार थी और उन्होंने बीमा कंपनी से इसके लिए अनुरोध किया था लेकिन पहले से मौजूद बीमारियों का खुलासा न करने के आरोप में उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था। उन्हें अपनी जेब से 16 हजार 738 कैनेडियन डालर खर्च करने पड़े।
इसके बाद भारत लौटने पर उन्होंने सभी दस्तावेजों के साथ पांच अप्रैल, 2018 को दावा दायर किया। उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया। वास्तव में उन्हें ऐसी कोई बीमारी नहीं थी, जिसका उन्होंने बीमा पालिसी खरीदने से पहले इलाज करवाया हो। कंपनी ने अवैध तरीके से मनमाने ढंग से उनके आवेदन को खारिज कर दिया।
बीमा कंपनी की तथ्यों को छिपाने की दलील खारिज
बीमा कंपनी के वकील ने स्थायी अदालत को बताया कि सरी मेमोरियल अस्पताल की रिपोर्ट के अनुसार शिकायतकर्ता को डिमेंशिया का पिछला इतिहास था। इसके अलावा सीएमसी अस्पताल लुधियाना से प्राप्त रिकार्ड के अनुसार वे तीन वर्ष से भूलने की बीमारी से पीड़ित थीं। अस्पताल की एमआरआइ रिपोर्ट के अनुसार वे स्माल वेसल इस्केमिक रोग और स्ट्रक्चरल ब्रेन पैरेन्काइमल असमान्यता से पीड़ित थीं। इन सभी तथ्यों का कंपनी को पालिसी लेने से पहले नहीं बताया गया था।
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत पाया कि सीएमसी अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार शिकायतकर्ता पिछले तीन वर्ष से भूलने की बीमारी से पीड़ित थीं। इस बात का कोई सबूत नहीं है पालिसी खरीदते समय कोई रिश्तेदार या परिवार का सदस्य उनके साथ था। इसलिए, शिकायतकर्ता सीएमसी अस्पताल से अपने ऐसे पिछले मेडिकल चेकअप के बारे में बताने से भूल गई होगी, जिसमें उसके मस्तिष्क में कुछ मामूली बदलाव पाए गए थे और वे उसके बुढ़ापे के कारण थे।
दो महीने में देना होगा मुआवजायह नहीं कहा जा सकता है कि शिकायतकर्ता ने पालिसी खरीदते समय किसी भी तरह से किसी भी पुरानी बीमारी के लिए किसी भी तथ्य को छुपाया, क्योंकि सीएमसी के पिछले निष्कर्ष किसी पुरानी बीमारी के नहीं थे बल्कि समस्याएं केवल बुढ़ापे से संबंधित थीं। यह भी कि सरी अस्पताल के अनुसार रोगी पहले स्वस्थ था और घर पर कोई दवा नहीं ले रहा था। ऐसी परिस्थितियों में दावे को अस्वीकार करना उचित नहीं है। लोक अदालत ने यह भी साफ किया कि अगर आदेश पारित होने की तारीख से दो माह के अंदर मुआवजा नहीं दिया जाता है तो बीमा कंपनी नौ प्रतिशत ब्यान प्रति वर्ष के हिसाब से भी भुगतान करना होगा।
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