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लुधियाना के इस मंदिर में 500 साल पहले अचानक उत्पन्न हुआ था स्वयंभू शिवलिंग, बेहद रोचक है इसका इतिहास

लुधियाना का संगला शिवाला मंदिर शहर के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। मान्यता है कि यहां 500 साल पहले यहां अचानक भगवान भोलेनाथ पत्थर के शिवलिंग के रूप में उत्पन्न हुए थे। इस समय यह जगह बिल्कुल वीरान थी।

By Vikas_KumarEdited By: Updated: Sun, 10 Jan 2021 11:40 AM (IST)
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लुधियाना का संगला शिवाला मंदिर शहर के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है।
लुधियाना, [राजेश भट्ट]। लुधियाना शहर के बीचों बीच एक मंदिर ऐसा है जिसमें भगवान भोलेनाथ के स्वयंभू शिवलिंग की पूजा 500 साल से होती आ रही है। मान्यता है कि जहां मंदिर है वह जगह वीरान हुआ करती थी और 500 साल पहले यहां अचानक भगवान भोलेनाथ पत्थर के शिवलिंग के रूप में उत्पन्न हुए और तब से शहरवासी अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए इस मंदिर में जल अर्पित करने और माथा टेकने आते हैं। हम बात कर रहे हैं लुधियाना के संगला शिवाला मंदिर की। शहर के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की देख-रेख महंत संप्रदाय के पास है और यहां के पहले महंत अलख पुरी थे। वर्तमान में महंत नारायण दास पुरी मंदिर के मुख्य सेवादार हैं।

मंदिर का नाम संगला शिवाला पड़ने के पीछे भी एक अजीब कहानी है। महंत नारायण दास पुरी बताते हैं कि जब यहां पर भगवान शिव का स्वयंभू लिंग उत्पन्न हुआ तो उनके पूर्वजों ने यहां पर मंदिर निर्माण किया। यह जगह बिल्कुल बीरान थी तो उन्होंने यहां पर चारों तरफ संगलें लगा दी थी ताकि कोई जानवर या फालतू के लोग मंदिर परिसर को नुकसान न पहुंचाए। तब लोगों ने इसे संगल वाला शिवलाय कहना शुरू किया। बाद में इसका नाम ही संगलावाला शिवाला पड़ गया।

शिवरात्रि व सावन के महीने उमड़ता है भक्तों का हुजूम

सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के लिए यह मंदिर सैकड़ों सालों से अहम स्थान है। शिवरात्रि व सावन के महीने शहर के शिव भक्त कांवड़ से जल लाकर यहां अर्पित करते हैं। यही नहीं मंदिर परिसर में नव दुर्गा की मूर्तियां के दर्शन भी विशेष फलदाई हैं। महंत नारायण दास पुरी बताते हैं कि इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग को जल अर्पित करने से सभी मन इच्छाएं पूरी होती हैं। 

यहां स्थित है मंदिर

मंदिर पुराने शहर में चौड़ा बाजार के पास है। यहां पहुंचने के लिए रेलवे स्टेशन से गोकुल रोड होते हुए घड़े वाले चौक से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा चौड़ा बाजार के रास्ते निक्कामल चौक से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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