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Punjab Industry: आखिर ​​​प्रतिस्पर्धा का मुकाबला क्याें नहीं कर पा रही पंजाब की इंडस्ट्री, जानिए कारण

Punjab Industry पंजाब की इंडस्ट्री के सामने एक नया संकट खड़ा हाे गया है। तकनीक के अभाव में प्रतिस्पर्धा का मुकाबला कर पाने में इंजीनियरिंग हैंड टूल्स सिलाई मशीन और साइकिल जैसे छोटे उद्योग नाकाम साबित हाे रहे हैं।

By Rajiv Pal sharma Edited By: Vipin KumarUpdated: Mon, 21 Nov 2022 12:12 PM (IST)
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लुधियाना की एक इकाई में साइकिल तैयार करते कामगार  l  जागरण आर्काइव
राजीव शर्मा, लुधियाना। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। लेकिन इंजीनियरिंग, हैंड टूल्स, सिलाई मशीन और साइकिल जैसे छोटे उद्योगों के सामने ढेरों समस्याएं हैं। संसाधनों व सटीक योजना की कमी, टेक्नोलाजी अपग्रेडेशन का अभाव, कमजोर मार्केटिंग, अपने उत्पादों की ब्रांडिंग न कर पाना और बाजार में प्रतिस्पर्धा की चुनौतियों का यह सेक्टर मुकाबला नहीं कर पा रहा। उद्यमियों का कहना है कि उद्योगों को घरेलू एवं विदेशी बाजार से लगातार चुनौतियां मिल रही हैं, लेकिन रिसर्च एंड डेवलपमेंट की कमी के कारण यह सेक्टर आगे नहीं बढ़ पा रहा।

फेडरेशन आफ स्माल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन आफ इंडिया के चेयरमैन बदीश जिंदल कहते हैं कि सरकार ने एमएसएमई में सूक्ष्म उद्योग की निवेश सीमा एक करोड़ एवं टर्नओवर सीमा पांच करोड़ रखी है। वहीं, लघु उद्योग में निवेश की सीमा 10 करोड़ व टर्नओवर की सीमा 50 करोड़ है। इसी तरह मध्यम उद्योग में निवेश सीमा 50 करोड़ एवं टर्नओवर की सीमा ढाई सौ करोड़ रखी है।

बिना गारंटी लोन नहीं देते बैंक

अब 99 प्रतिशत इकाइयों की निवेश सीमा 10 लाख के भीतर है। अब 10 लाख वाला 50 करोड़ वाले से मुकाबला नहीं कर सकता और पिछड़ रहा है। ऐसे में सूक्ष्म उद्योग के लिए अलग से ही नीतियां बनाई जाएं। एमएसएमई को नौ से 14 प्रतिशत पर लोन मिलता है, जबकि बड़ी कंपनियां विदेशी फंड चार प्रतिशत पर ले रही हैं। दूसरा, बिना गारंटी बैंक लोन नहीं देते। छोटे उद्योगों को सस्ती दरों पर स्टील मुहैया कराया जाए।

कुशल कामगारों का संकट

लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिशन के अध्यक्ष एससी रल्हन कहते हैं कि पंजाब में 2,200 करोड़ का कारोबार करने वाली हैंड टूल्स की करीब 400 इकाइयां हैं। इनके कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत निर्यात होता है। यह इंडस्ट्री कुशल कामगारों की कमी से जूझ रही है। सिलाई मशीन डेवलपमेंट क्लब के अध्यक्ष जगबीर सिंह सोखी कहते हैं कि अत्याधुनिक तकनीक के अभाव में यह उद्योग पिछड़ गया। आज भी उद्योग में पारंपरिक मशीनें ही प्रयोग हो रही हैं। नतीजतन इस उद्योग की टर्नओवर चार-पांच सौ करोड़ है, जबकि 5500 करोड़ का आयात हो रहा है।

साइकिल से खत्म हो कर का बोझ

यूनाइटेड साइकिल एंड पार्ट्स मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस चावला कहते हैं कि देश में सालाना दो करोड़ साइकिल बन रही हैं। इनमें से 55 से 60 लाख साइकिल सालाना विभिन्न राज्य सरकारें खरीदती हैं। साफ है कि कुल उत्पादन का 28 प्रतिशत से अधिक सरकारी टेंडरों का योगदान है। साइकिल पर सरकार ने 12 प्रतिशत जीएसटी लगा रखा है, जबकि स्टील समेत कच्चे माल पर जीएसटी 18 प्रतिशत है। इंडस्ट्री का रिफंड सरकार के पास फंसा रहता है। गरीब की सवारी से कर का बोझ खत्म करने की जरूरत है। साइकिल को प्रोत्साहित करने के लिए शहरों में साइकिल ट्रैक एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया जाए।

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