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इनके जज्‍बे को सलाम, दिव्यांग बच्चों की सेवा के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी

सतवंत कौर ने लुधियाना में दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल शुरू किया है । दस बच्चों से शुरू हुए इस स्कूल में आज 80 बच्चे हैं।

By Krishan KumarEdited By: Updated: Sat, 29 Sep 2018 06:00 AM (IST)

जागरण संवाददाता, लुधियाना : एक कैंप में गरीब परिवारों के दिव्यांग बच्चों को देख कर मन इस कदर पसीजा कि सरकारी टीचर की नौकरी छोड़ रिटायरमेंट ले लिया। उनके घर में जगह नहीं थी, इसलिए सात सदस्यों के साथ किराए पर जगह लेकर दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल शुरू कर दिया। मात्र दस बच्चों से शुरू हुए उस स्कूल में आज करीब 80 बच्चे हैं। अब हालात यह है कि स्कूल में दाखिला लेने के लिए दर्जनों बच्चों के अभिभावक संपर्क कर रहे हैं। मगर जगह की कमी के कारण फिलहाल नए दाखिले नहीं किए जा रहे हैं।

हम बात कर रहे हैं राजगुरु नगर में चल रहे एक ज्योत दिव्यांग बच्चों के नि:शुल्क स्कूल की। स्कूल की प्रिंसि‍पल सतवंत कौर पहले सरकारी स्कूल में टीचर थी। बात 2009 की है, उन्हीं दिनों उनके स्कूल में दिव्यांग बच्चों का कैम्‍प लगा। कैंप में पहुंचे बच्चों की लाचारी देख कर उनका मन पसीज गया। उसी समय तय किया कि वह ऐसे बच्चों के लिए कुछ करेंगी, उनकी सर्विस में अभी भी 15 साल बचे थे।

मगर उन्होंने उसी समय नौकरी से रिटायरमेंट ले लिया। बीआरएस नगर के आई-ब्लॉक में किराए का मकान लेकर बच्चों का स्कूल शुरू किया गया। जिसमें उनके साथ चरणजीत सिंह, गुरदीप सिंह, ब्रहमदीप सिंह, नरिंदर पाल सिंह, गुरसाहिल सिंह और उनकी बेटी तनीत कौर जुड़ गईं।

वह जगह छोटी पड़ी तो बाद में स्कूल को गुरदेव नगर में शिफ्ट किया गया। इन दिनों शहर के विभिन्न इलाकों में रहने वाले गरीब परिवारों के करीब 80 बच्चे हर रोज स्कूल आते हैं। उन्हें घर से लाने और छोडऩे के लिए नि:शुल्क वैन है। जो बच्चे बेड पर हैं, उनकी सेवा की जाती है। जिन बच्चों को कुछ समझ हैं, उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार शिक्षा दी जाती है। बच्चों की देखभाल और खाने पिलाने के लिए 15 लोगों का स्टाफ है। शहर के सैंकड़ों लोग स्कूल की फंडिंग के लिए जुड़ चुके हैं। उनमें से कोई नगद सहायता करता है। कोई राशन, कोई कपड़े तो कोई किताबों का योगदान डालता है।

सतवंत कौर ने बताया कि स्कूल की फंडिंग के लिए आज तक सरकार की और से कोई मदद नहीं मिली है। पहले-पहले उन्होंने सरकारी मदद के लिए बहुत कोशिश की। मगर जब काफी दौड़ भाग के बाद भी कोई सहायता नहीं मिली तो उन्होंने उम्मीद छोड़ दी। अब उनकी संस्था जिस जगह किराए पर स्कूल चला रही है, उसी इमारत को खरीदने के लिए भाग दौड़ कर रही है। उन्होने कहा कि अगले महीने तक उस काम को पूरा कर लिया जाएगा।

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