परमवीर चक्र विजेता शहीद सूबेदार जोगिदर सिंह को सलामी दे किया कार्यक्रमों का आगाज
। स्वतंत्रता दिवस के 75वीं वर्षगांठ के मौके पर जिला प्रशासन की ओर से कार्यक्रमों का आगाज परमवीर चक्र विजेता शहीद सूबेदार जोगिदर सिंह को सैन्य अंदाज में पांच पंजाब गर्ल्स बटालियन की कैडेट्स ने सलामी दी।
By JagranEdited By: Updated: Sat, 13 Mar 2021 10:25 PM (IST)
जागरण संवाददाता.मोगा
स्वतंत्रता दिवस के 75वीं वर्षगांठ के मौके पर जिला प्रशासन की ओर से कार्यक्रमों का आगाज परमवीर चक्र विजेता शहीद सूबेदार जोगिदर सिंह को सैन्य अंदाज में पांच पंजाब गर्ल्स बटालियन की कैडेट्स ने सलामी दी। इससे पहले उन्होंने कमांडिग आफिसर कर्नल सुहैल बीएस कुमार के नेतृत्व में प्रतिमा व उसके आसपास के क्षेत्र की सफाई की। कैडेट्स को संबोधित करते हुए कर्नल सुहैल बीएस कुमार ने कहा कि युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं बल्कि जुनून व हिम्मत से जीते जाते हैं। परमवीर सिंह चक्र विजेता सूबेदार जोगिदर सिंह इसका सबसे बड़े उदाहरण हैं। संसाधनों के अभाव, बहुत कम गोला-बारूद के बावजूद चंद सैनिकों के साथ उन्होंने सैकड़ों चीनी सैनिकों को दो बार पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने वीरगति भी ऐसी पाई कि जब उन्हें भारत सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मान देने का एलान किया तो दुश्मनों के सिर भी उनके सम्मान में झुक गए थे।
गौरतलब है कि भारत सरकार 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। इसे यादगार बनाने के लिए डीसी संदीप हंस ने राष्ट्रीयता से ओतप्रोत कार्यक्रम 15 अगस्त तक लगातार करने का फैसला लिया है। इसी का आगाज शनिवार को परमवीर चक्र सूबेदार जोगिदर सिंह को सम्मान देकर किया गया। सुबह करीब 11 बजे पांच पंजाब गर्ल्स बटालियन की करीब 20 एनसीसी कैडेट्स कमांडिग अफसर कर्नल सुहैल बीएस कुमार, रिसालदार मेजर राम राय गुर्जर, सेक्रेट हार्ट स्कूल की एनसीसी अफसर सुचेता अग्रवाल के नेतृत्व में पहले जिला प्रबंधकीय काम्पलेक्स में स्थित शहीद जोगिदर सिंह की प्रतिमा व उसके आसपास के क्षेत्र की सफाई की। रंग रोगन कर उसे नया रूप दिया। बाद में उन्हें सैन्य अंदाज में सलामी दी। इस मौके पर
कैटेड्स ने देशभक्ति के गीत पेश किए। कौन थे सूबेदार जोगिदर सिंह
26 सितंबर 1921 को जिले के गांव माहलां कलां में जन्मे जोगिंदर सिंह सिख रेजीमेंट में भारतीय सैनिक थे। 1962 के भारत चीन युद्ध में उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों के धक्के छुड़ा दिए थे। वे 1936 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए थे। और सिख रेजीमेंट की पहली बटालियन में कार्यरत रहे। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान वे नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) में तान्पेंगला, बुमला मोर्चे पर एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। दुश्मनों के साथ बहादुरी से मुकाबला करते हुए अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया तथा जब तक वह घायल नहीं हुए अपनी पोस्ट का बचाव किया। जोगिदर सिंह की पलटन के पास सिर्फ चार दिन का राशन था, जूते और कपड़े सर्दियों और लोकेशन के हिसाब से अच्छे नहीं थे। हिमालय की ठंड रीढ़ में सिहरन दौड़ाने वाली थी लेकिन जोगिदर सिंह ने अपने साथियों का मनोबल बनाए रखा। पुरानी हो चुकी ली एनफील्ड 303 राइफल्स हाथों में थी। गोलियां कम थीं इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों से कहा था हर गोली का हिसाब होना चाहिए। जब तक दुश्मन रेंज में न आ जाए तब तक फायर रोक कर रखें, उसके बाद चलाएं, अपनी इसी चतुर रणनीति से उन्होंने चीनी सैनिकों को दो बार पीछे धकेला, उनकी संख्या सैकड़ों थी, आखिरकार अदम्य साहस का परिचय देते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए। 1962 में भारत सरकार ने उनकी बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया।
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