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भगत सिंह ने ऐसे किया था लाला की मौत के बदले का प्रण पूरा, बौखला गई थी अंग्रेजी हुकूमत

Indian independence movement लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों द्वारा 17 दिसंंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया गया था।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Wed, 18 Dec 2019 08:57 AM (IST)
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भगत सिंह ने ऐसे किया था लाला की मौत के बदले का प्रण पूरा, बौखला गई थी अंग्रेजी हुकूमत
मोगा [सत्येन ओझा]। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के हत्यारे अंग्रेजी हुकूमत में पंजाब पुलिस के डिप्टी एसपी सांडर्स को आज ही के दिन शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह ने गोली से उड़ाकर लाला जी की शहीदी का बदला ले लिया था। इतिहासकार बताते हैं कि भले ही शहीद-ए-आजम भगत सिंह के लाला लाजपत राय जी के साथ कुछ मुद्दों पर मतभेद थे, लेकिन 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन का विरोध करते हुए जिस प्रकार से तत्कालीन पंजाब पुलिस के डीएसपी सांडर्स ने साइमन कमीशन के विरोध का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपत राय पर लाठियां बरसाईं थीं, उसी पल सरदार भगत सिंह ने प्रण ले लिया था कि अब सांडर्स को वे नहीं छोड़ेंगे। आज ही के दिन में उन्होंने अपना बदला पूरा कर दिखाया था।

लाला लाजपत राय को जन्म देने वाली मोगा जिले के गांव डुढीके की धरती पर बनी लाजपय राय मेमोरियल की लाइब्रेरी में भगत सिंह गुट की ओर से सांडर्स की हत्या से पहले और हत्या के बाद जारी किए गए वे दो पत्र भी संभालकर रखे हैं, जिनमें सांडर्स की हत्या की तैयारी और हत्या के बाद देश की जनता को अंग्रेजी पुलिस के सामने किस प्रकार से खुद प्रस्तुत करना है, इसके प्रति आगाह किया गया था।

लाला लाजपत राय। (फाइल फोटो)

साइनमन कमीशन का विरोध

इतिहासकार व एसडी कॉलेज की पूर्व प्रिंसिपल डॉ. नीना गर्ग बताती हैं कि भगत सिंह ने बचपन में ही जलियांवाला बाग का नरसंहार अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की तभी कसम खा ली थी। भगत सिंह जब लाहौर के डीएवी कालेज में पढ़ाई कर रहे थे तभी महात्मा गांधी ने पूरे देश में असहयोग आंदोलन का बिगुल फूंक दिया था।

चौरी-चौरा कांड के कारण गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तब देश के स्वतंत्रता सेेनानियों में मतभेद सामने आए थे। कुछ गर्म खून वाले युवाओं ने अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए हथियार हाथ में लेने का फैसला कर लिया था। उसी दौरान भगत सिंह ने अपने साथियों जैसे सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर, यतीन्द्रनाथ व बटुकेश्वर आदि के साथ मिलकर हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ की स्थापना कर ली थी जो हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना के रूप में बदल गई।

चंद्रशेखर आजाद। (फाइल फोटो)

ये वो समय था जब अंग्रेजों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम सेेनानियों के इरादे भांपते हुए साइमन कमीशन का एक दल भारत भेजा था। इस दल में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन में निकाले गए जुलूस के विरोध का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। इस दौरान अंग्रेजों ने जुलूस पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी, जिसमें लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए। उसके 18 दिन बाद इलाज के दौरान 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया। पंजाब पुलिस के उपअधीक्षक सांंडर्स को क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का जिम्मेदार ठहराया था।

इतिहासकारों की माने तो क्रांतिकारियों के नेताओं व लाजपत राय के बीच आपसी मतभेद भी थे, लेकिन लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह के साथ चंद्रशेखर, सुखदेव एवं राजगुरु ने सांंडर्स की हत्या करने की कसम खाई थी। उसको मारने की योजना भी तैयार कर ली थी।

राजगुरु। (फाइल फोटो)

आज ही का दिन चुना था सांडर्स की मौत का

17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की मौत का दिन क्रांतिकारियों ने तय किया था। उस दिन 4 बजकर 3 मिनट का समय हुआ था कि सांंडर्स अपनी मोटरसाइकिल पर बैठकर बाहर निकला। वो कुछ ही दूर गया होगा कि भगत सिंह व राजगुरु ने सांंडर्स को अपनी गोलियों का शिकार बना लिया। इस योजना का संचालन व उनको पीछे से बैकअप देने का काम चंद्रशेखर के कंधों पर था।

उन्होंने भगत सिंह व राजगुरु की तरफ बढ़़ने वाले सिपाही चानन सिंह को अपनी गोली का निशाना बनाकर उनके लिए रास्ता साफ कर दिया था। सांडर्स की हत्या से ब्रिटिश अधिकारी डर गए। सांडर्स की हत्या से अंग्रेजी सरकार बौखला गई थी, लेकिन सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह, राजगुरु व अन्य साथी पुलिस की नजरों में धूल झोंक कर लाहौर से निकलने में कामयाब हो गए थे।

भाग निकलना भी रोचक था

सांडर्स की हत्या के बाद क्रांतिकारी जिस प्रकार से अनोखे ढंग से बाहर निकले, इतिहास का वह पन्ना भी बेहद रोचक है। भगत सिंह एक सरकारी अधिकारी के रूप में ट्रेन के प्रथम श्रेणी डिब्बे में श्रीमती दुर्गा देवी बोहरा (भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी शहीद भगवतीचरण बोहरा की पत्नी थीं) व उनके तीन वर्षीय पुत्र के साथ बैठ गए। वहीं क्रांतिकारियों के शार्प सूटर राजगुरु उनके अर्दली बन गए थे। इस तरह भगत सिंह लाहौर से कलकत्ता पहुंचे। चंद्रशेखर आज़ाद साधुु के भेष में एक यात्री दल के साथ मथुरा की ओर निकल गए थे।

लालाजी की मेमोरियल में मौजूद हैं चिट्ठियों के अंश

भगत सिंह के दल हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना की तरफ से दो चिट्ठियां जारी की गई थीं ये यहां पर संजो कर रखी गई हैं, इनमें पहली चिट्ठी के अंश कुछ इस प्रकार से थे।

- ‘यह सोचकर कितना दु:ख होता है कि जेपी सांडर्स जैसे एक मामूली पुलिस अफसर के कमीने हाथों ने देश की तीस करोड़ जनता द्वारा सम्मानित एक नेता पर हमला करके उनके प्राण ले लिए। राष्ट्र का यह अपमान हिंदुस्तानी नवयुवकों और मर्दों को चुनौती थी।

- आज संसार ने देख लिया कि हिंदुस्तान की जनता निष्प्राण नहीं हो गई है, उनका खून जम नहीं गया, वे अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए प्राणों की बाजी लगा सकते हैं।

दूसरी चिट्ठी अंश कुछ इस प्रकार थे

‘जेपी सांडर्स मारा गया! लाला लाजपत राय का बदला ले लिया गया।’

‘यह सीधी राजनीतिक प्रकृति की बदले की कार्रवाई थी। भारत के महान बुजुर्ग लाला लाजपत राय पर किए गए अत्यंत घृणित हमले से उनकी मृत्यु हुई। यह देश की राष्ट्रीयता का सबसे बड़ा अपमान था और अब इसका बदला ले लिया गया है। इसके बाद सभी से यह अनुरोध है कि हमारे शत्रु पुलिस को हमारा पता-ठिकाना बताने में किसी किस्म की सहायता न दें।'

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