गर्भधारण के 8वें महीने तक की ड्यूटी, पति ने बढ़ाया हौसला
डा. मिक्की बताती हैं कि कोरोना काल के दौरान उनकी ड्यूटी इमरजेंसी में थी जहां संक्रमण का सबसे अधिक खतरा रहता था। सिविल अस्पताल में ही कोविड-19 आइसोलेशन वार्ड बनाया गया था जहां करीब 28 मरीजों का इलाज चल रहा था। इस दौरान विभागीय स्तर पर उन्हें अधिकारियों ने छुट्टी लेने की बात कही थी परंतु उन्होंने लेने से मना कर दिया।
जागरण संवाददाता, पठानकोट: कोरोना काल के दौरान डाक्टर मिक्की ने एक साथ मां और डाक्टर के फर्ज को बखूबी ढंग से निभाया। पठानकोट सिविल अस्पताल में कार्यरत इमरजेंसी मेडिकल आफिसर (ईएमओ) डाक्टर मिक्की कोरोना के शुरुआती दिनों में चार माह की गर्भवती थी, बावजूद इसके वह वह अपना फर्ज निभाते हुए मरीजों की सेवा में लगी रही। इस दौरान सास-ससुर ने उन्हें पेट में पल रहे बच्चे का ध्यान रखने की बात कहते हुए छुट्टी लेने की बात कही परंतु वह नहीं मानी। डा. मिक्की ने छुट्टी लेने के बजाय अपना फर्ज निभाना जरूरी समझा। डा. मिक्की के पति थाना डिवीजन नंबर-दो के प्रभारी इंस्पेक्टर दविद्र प्रकाश ने भी उनका काफी हौसला बढ़ाया। कोरोना के दौरान दंपती ्रंटलाइन पर डटे रहे और सेवाएं दी। डा. मिक्की जहां सिविल अस्पताल में मरीजों की सेवा में लगी हुई थी वहीं पति दविद्र प्रकाश भी कानूनी व्यवस्था को मेंटेन करने के लिए अपना फर्ज निभा रहे थे। थाना प्रभारी दविद्र प्रकाश ने उन्हें कहा कि मुश्किल की घड़ी में हमारा फर्ज बनता है कि हम तैयार रहे हैं। मुश्किल की घड़ी में तैयार रहना हमारी ट्रेनिग का हिस्सा है।
डा. मिक्की बताती हैं कि कोरोना काल के दौरान उनकी ड्यूटी इमरजेंसी में थी, जहां संक्रमण का सबसे अधिक खतरा रहता था। सिविल अस्पताल में ही कोविड-19 आइसोलेशन वार्ड बनाया गया था, जहां करीब 28 मरीजों का इलाज चल रहा था। इस दौरान विभागीय स्तर पर उन्हें अधिकारियों ने छुट्टी लेने की बात कही थी, परंतु उन्होंने लेने से मना कर दिया। डा. मिक्की ने बताया कि अपनी व पेट में पल रहे बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वह अस्पताल में मरीजों का चेकअप करती रही। करीब पौने पांच महीने तक अपनी ड्यूटी निभाई। गर्भधारण के नौवें महीने के शुरुआत में उन्होंने छुट्टी ली और एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। यही नहीं.. उन्होंने चार महीने की छुट्टी के बाद वह दोबारा ड्यूटी ज्वाइन कर ली। डा. मिक्की ने कहा कि डाक्टर की पढ़ाई के बाद शपथ ली जाती है तो यही सिखाया जाता है कि हर हालात में अपने कर्म को सबसे पहले रखो, मैंने वही किया। करीब चार महीने पहले उनका तबादला पुरानाशाला (गुरदासपुर) में हो गया। वह अपने परिवार और फर्ज को बखूबी निभा रही हैं। दोनों के लिए अलग-अलग समय रखा है ताकि पारिवारिक तौर पर भी किसी किस्म की कोई समस्या न आए।