ओशो के ध्यान में ही विनोद खन्ना ने की परलोक की यात्रा
अभिनेता व भाजपा सांसद विनोद खन्ना लगभग सात साल के आध्यात्मिक योग के बाद 1985 में दोबारा अपने प्रोफेशन में लौटे। उन्होंने अंतिम सांस भी ध्यान योग में ली।
पठानकोट [डॉ. श्याम लाल]। गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद विनोद खन्ना ने इस लोक से परलोक की यात्रा ध्यान योग में की। वह वर्ष 1978 में ओशो के साथ जुड़े और लंबे समय तक आचार्य रजनीश के साथ अमेरिका में साथ रहे।
लगभग सात साल के आध्यात्मिक योग के बाद 1985 में दोबारा अपने प्रोफेशन में लौट आए। इस दौरान उन्होंने धर्मशाला का भी दौरा किया और यह जगह उनके मन को भा गई। वर्ष 1999 में यहां ओशो वल्र्ड के नाम से ध्यान केंद्र की स्थापना की। यह जानकारी दैनिक जागरण से बातचीत में सांसद विनोद खन्ना के मित्र स्वामी तथागत ने दी।
स्वामी तथागत व विनोद खन्ना दोनों ही ओशो के अनुयायी हैं। तथागत लगातार धर्मशाला में रहते हैं। दोनों एक साथ पंजाब आए थे और दोनों ने संयुक्त तौर पर धर्मशाला के ध्यान केंद्र का निर्माण किया था। यही कारण रहा कि विनोद खन्ना जब-जब भी अपने संसदीय क्षेत्र में आए, वह कभी धर्मशाला ओशो वल्र्ड जाना नहीं भूले। वीरवार सुबह 11 बजकर 25 मिनट पर जैसे ही विनोद खन्ना के निधन की सूचना प्राप्त हुई, स्वामी तथागत तुरंत मुम्बई के लिए निकल पड़े। इस बीच, उन्होंने दिवंगत फिल्म स्टार के जीवन से जुड़े अनेक संस्मरण सांझा किए।
उन्होंने बताया कि विनोद खन्ना चाहे बहुत ज्यादा बीमार थे, परंतु वे अपने जीवन की आखिरी सांस तक चैतन्य रहे। वह इस दुनिया से चले जाने तक होश में रहे। सभी को पहचानते रहे। हालांकि, दुनिया से अलविदा होते वक्त वह बहुत कम बोलते रहे।
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बनी विनोद खन्ना के लिए घातक
फिल्म स्टार एवं सांसद विनोद खन्ना के मित्र डॉ. केडी सिंह ने कहा कि खन्ना जिंदगी के आखिरी दिनों तक अपने हलके के लोगों से मिलने को उत्सुक रहे। वह हलके के लोगों को बहुत इज्जत देते थे। मुम्बई में संसदीय हलके का कोई व्यक्ति उन्हें मिलने के लिए पहुंचा तो उन्होंने उसे सिर आंखों पर बिठा लिया। डॉ. केडी ने कहा कि वह सांसद विनोद खन्ना के ट्रीटमेंट से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि यूं तो सांसद को दुनिया का बेस्ट ट्रीटमेंट मिला, परंतु यह ट्रीटमेंट बहुत देरी से शुरू हुआ।
खन्ना को यूरीनरी ब्लैडर का कैंसर था। साथ ही, पेट की अंतड़ियों की भी शिकायत रही। सांसद तथा परिवार यही समझता रहा कि वह अंतडिय़ों के रोग के कारण परेशान हैं। पूरा परिवार अतंडिय़ों का इलाज वैकल्पिक चिकित्सा के सहारे करवाता रहा और इसी बीच कैंसर बढ़ता रहा। वैकल्पिक चिकित्सा लेने के लिए जर्मनी तक गए। अंतत: वह बच नहीं सके। उनका सारा इलाज ऐलोपैथी पद्धति के जरिये होता तो शायद वह ठीक हो जाते।
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