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Punjab Fake Encouter Case: सीबीआइ जांच शुरू होते ही परिवार हो गया बेघर, मां को मिलती थी जान से मारने की धमकी

लगभग 29 वर्ष पहले फर्जी मुठभेड़ में मारे गए हरबंस के भाई परमजीत व चरणजीत सिंह ने बताया कि जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने जांच शुरू की तो उनके परिवार को फिर से बेघर रहना पड़ा। मां बेटे के वियोग में हमेशा रोती रहती थी।

By DHARAMBIR SINGH MALHAREdited By: Pankaj DwivediUpdated: Mon, 07 Nov 2022 08:44 PM (IST)
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हरबंस सिंह उबोके। दाएं एडवोकेट सरबजीत सिंह वेरका के साथ सरपंच सुखविंदर सिंह उबोके, चरणजीत सिंह। सौ. स्वयं
जासं, तरनतारन। मोहाली स्थित सीबीआइ की अदालत ने गांव उबोके निवासी 25 वर्षीय युवक हरबंस सिंह को फर्जी मुकाबले में मौत के घाट उतारने के मामले में तत्कालीन सब-इंस्पेक्टर शमशेर सिंह व एएसआइ जगतार सिंह को सोमवार को जब उम्रकैद की सजा सुनाई गई तो परिवार ने अदालत के फैसले पर तसल्ली प्रगट करते कहा कि आज 29 वर्ष बाद इंसाफ मिला है।

फर्जी मुठभेड़ में मारे गए हरबंस के भाई परमजीत व चरणजीत सिंह ने बताया कि जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने जांच शुरू की तो उनके परिवार को फिर से बेघर रहना पड़ा। उनकी बुजुर्ग मां प्रकाश कौर को पुलिस अधिकारियों की धमकियां मिलती थी कि अगर अदालत में बयान दर्ज करवाए तो हश्र हरबंस वाला होगा।

पट्टी के गांव उबोके के मौजूदा सरपंच सुखविंदर सिंह व उनके चचेरे भाई परमजीत सिंह, चरणजीत सिंह ने बताया कि उनके परिवार के पास 25 एकड़ जमीन थी। उनका बड़ा भाई हरबंस खेती करता था। पिता मिल्खा सिंह की बचपन में ही मौत हो गई थी। हरबंस की मेहनत के चलते ही परिवार का गुजारा होता था।

बेवजह हरबंस को तंग करती थी पुलिस

वर्ष 1990 में पुलिस ने हरबंस सिंह को बेवजह तंग करना शुरू कर दिया था। मां प्रकाश कौर ने पुलिस की नजर से बचाने के लिए हरबंस को गांव कानायावाली (श्री मुक्तसर साहिब) भेज दिया था। परंतु थाना सादिक व फरीदकोट की पुलिस द्वारा उसे टार्चर करके अवैध असलहे का मुकदमा बनाकर जेल में बंद कर दिया। थाना पट्टी के पुलिस अधिकारी ने हरबंस पर और मुकदमें डाल दिए गए। हरबंस जमानत पर रिहा हुआ तो पुलिस ने दोबारा तंग करना शुरू कर दिया।

पुलिस ने थर्ड डिग्री टार्चर किया

तरनतारन जिले के तत्कालीन एसएसपी अजीत सिंह संधू समक्ष मोहतबर लोगों ने हरबंस को दोबारा पेश करवाया। थाना सदर के तत्कालीन प्रभारी सब-इंस्पेक्टर पूर्ण सिंह ने आठ दिन का रिमांड लेकर थर्ड डिग्री टार्चर किया। सरपंच सुखविंदर सिंह ने बताया कि थाना सदर की पुलिस ने 15 अप्रैल, 1993 को गांव चंबल के पास फर्जी मुठभेड़ में एक अन्य युवक समेत हरबंस को मार डाला गया।

पुलिस ने मां को नहीं सौंपा शव

मां प्रकाश कौर को जब पता चला तो शव लेने के लिए थाना सदर पहुंची। परंतु एसएचओ ने साफ कह दिया कि आतंकियों के शव नहीं मिलते। बाद में पता चला कि तरनतारन के श्मशानघाट में हरबंस सिंह और अन्य अज्ञात युवक का अंतिम संस्कार करवा दिया गया था।

बेटे के वियोग में रात-दिन रोती थी मां

परमजीत व चरणजीत सिंह ने बताया कि फर्जी पुलिस एनकाउंटर के बाद मां प्रकाश कौर की आंखों की रोशनी कम होने लगी। वह रात-दिन बेटे के वियोग में रोती रहती थीं। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब सीबीआइ ने जांच शुरू की तो पूरे परिवार को वर्षों तक घर से बेघर रहना पड़ा।

पुलिस अधिकारी धमकियां देते थे कि अगर प्रकाश कौर ने अदालत में बयान दर्ज करवाए तो उसका हश्र भी हरबंस जैसा होगा। 2019 में मां की मौत हो गई। उन्होंने कहा कि 29 वर्ष बाद हमें इंसाफ मिला है। वाहेगुरु दे घर विच देर है, अंधेर नई।

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