शराबी पिता, बदहाल जीवन, मवेशी तक चराए, 23 साल में सरपंच बनी प्रवीणा की आपबीती; बोलीं- मैं बालिका वधू बन सकती थी पर...
राजस्थान के पाली जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा महज 23 साल की उम्र में सात गांवों की सरपंच बन गईं। प्रवीणा ने बचपन में ही शराबी पिता को खो दिया। किसी प्रकार गरीबी में गुजर-बसर कर ही रही थीं कि उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा और मजबूरन दूसरे के मवेशियों को चराना पड़ा। इतना ही नहीं एक पितृसत्तात्मक समाज ने नाबालिग अवस्था में ही उनकी शादी करा दी।
पीटीआई, पाली। राजस्थान के पाली जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा महज 23 साल की उम्र में सात गांवों की सरपंच बन गईं और वह लड़कियों सहित अन्य कई लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। उन्होंने बदहाली में अपना बचपन व्यतीत किया और अब लगातार संघर्ष कर रही हैं कि लड़कियों को शिक्षा के लिए उनकी तरह संघर्ष न करना पड़े।
प्रवीणा ने बचपन में ही अपने शराबी पिता को खो दिया था। किसी प्रकार गरीबी में गुजर बसर कर ही रही थीं कि उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा और मजबूरन दूसरे के मवेशियों को खेतों में चराना पड़ा। इतना ही नहीं एक पितृसत्तात्मक समाज ने नाबालिग अवस्था में ही उनकी शादी करा दी।
प्रवीणा ने क्या कुछ कहा?
प्रवीणा ने सरपंच बनने के लिए एक नहीं अनगिनत लड़ाइयां लड़ीं, लेकिन कभी भी हार नहीं मानी और लगातार अपने हौसले को और मजबूत करती चली गईं। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, प्रवीणा ने कहा,
मैं एक बालिका वधू बन सकती थी, जो अपना बाकी का जीवन मवेशी चराते और घर का काम करते हुए व्यतीत करती, लेकिन मुझे सही समय पर आशा मिली और अब अगर मुझे कोई ऐसी लड़की मिलती है, जो स्कूल नहीं जाती है तो मैं यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती हूं कि उसे भी वही आशा मिले जैसी मुझे मिली थी।
प्रवीणा का जीवन एक निराशाजनक चक्रव्यूह में घिरा हुआ था, जहां पर अत्यधिक गरीब, एक शराबी पिता जिसे अन्य चार बच्चों की देखभाल करनी थी, कक्षा तीन के बाद स्कूल छोड़ना और बाल विवाह में धकेले जाने का डर था, लेकिन उन्होंने कभी भी हौसला नहीं हारा। शायद यही वजह है कि उनके गांव वाले उन्हें प्यार से पपीता कहते हैं।
प्रवीणा ने बताया कि पैसों के खातिर उन्हें दूसरे के मवेशियों को चराने पड़ा। इस वजह से उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और घर का काम संभाल लिया, लेकिन दो साल बाद सकदरा गांव में उनके घर से लगभग 40 किमी दूर पाली गांव में वंचित समूहों की लड़कियों के लिए एक आवासीय विद्यालय (कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय) ने उनके जीवन को बदल दिया।
NGO की मदद से प्रवीणा का सुधरा जीवन
एजुकेट गर्ल्स नामक एक गैर सरकारी संगठन (NGO) के एक क्षेत्रीय कार्यकर्ता ने प्रवीणा के परिवार को उसे स्कूल भेजने के लिए मना लिया, जहां पर उसे मुफ्त शिक्षा मिल सके। इस स्कूल की वजह से प्रवीणा के जीवन का नजरिया बदल गया और उन्हें स्कूली शिक्षा का महत्व समझ में आया।
उन्होंने कहा कि मेरा पिता शराबी थे और जब मैं आवासीय विद्यालय में थी तो मैंने अपने पिता को खो दिया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 18 साल की उम्र में एक कंस्ट्रक्शन वर्कर के साथ शादी कर ली।
ससुराल में प्रवीणा से ज्यादा शिक्षित कोई अन्य महिला नहीं
बता दें कि प्रवीणा ने ससुराल में उनसे ज्यादा शिक्षित महिला नहीं थीं, जिसकी वजह से उन्हें सरपंच का चुनाव लड़ने का हौसला मिला। उन्होंने कहा कि मैंने सरपंची का चुनाव लड़ा और एक बार जब मैं सरपंच बन गई तो मैंने सुनिश्चित किया कि शिक्षा के लिए बजट का अधिकतम आवंटन हो और अब अगर मुझे कोई ऐसी लड़की मिलती है, जो स्कूल नहीं जाती है तो मैं यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती हूं कि उसे भी वही आशा मिले जैसी मुझे मिली थी। उन्होंने कहा,
मेरे ससुराल का परिवार मुझे गर्व से देखता था, उनके परिवार में लड़कियों को स्कूल भेजने की कोई अवधारणा नहीं थी। मेरे ससुराल में आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी लेकिन मुझे खुशी है कि वे मेरी यात्रा में बाधा नहीं बने।
प्रवीणा ने साल 2014 से 2019 तक राजस्थान के सात गांवों- रूपावास, केरला, मुलियावास, रौनगर, सेवरा की ढाणी, मूला जी की ढाणी और नारू जी की ढाणी की सरपंच के रूप में काम किया। प्रवीणा ने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा कि सरपंच के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मैंने लड़कियों के लिए एक स्कूल का निर्माण कराया। हालांकि, सरपंच के रूप में प्रवीणा का कार्यकाल समाप्त हो गया है, लेकिन उन्होंने अपनी लड़ाई को जारी रखा है।