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Rajasthan: जातियों की गणित, प्रत्याशियों के चयन और अपनों को ही ठिकाने में उलझी रही भाजपा, BJP संगठन की निष्क्रियता व कांग्रेस की एकजुटता का भी असर

Rajasthan Election करीब छह महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने झटका दिया है। भाजपा 25 लोकसभा सीटें जीतने की हैट्रिक नहीं बना सकी। जातियों की गणित प्रत्याशियों का चयन और अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में उलझी भाजपा को खुद की लापरवाही के चलते 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।

By Jagran News Edited By: Versha Singh Updated: Wed, 05 Jun 2024 02:01 PM (IST)
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जातियों की गणित, प्रत्याशियों के चयन और अपनों को ही ठिकाने में उलझी रही भाजपा
नरेंद्र शर्मा, जयपुर। करीब छह महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने झटका दिया है। भाजपा 25 लोकसभा सीटें जीतने की हैट्रिक नहीं बना सकी। जातियों की गणित, प्रत्याशियों का चयन और अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में उलझी भाजपा को खुद की लापरवाही के चलते 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।

प्रदेश में लोकप्रिय चेहरे का अभाव और संगठन की निष्क्रियता का नुकसान भी भाजपा को उठाना पड़ा है। प्रदेश संगठन बिखरा हुआ है। प्रदेशाध्यक्ष सी.पी.जोशी खुद के निर्वाचन क्षेत्र चित्तौड़गढ़ से एक दिन बाहर नहीं निकल सके। संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी के पद खाली है। पहली बार विधायक और मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा ने सभी सीटों के दौरे अवश्य किए, लेकिन करिश्माई चेहरे के अभाव में वे मतदाओं में पकड़ नहीं बना सके।

पार्टी ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को झालावाड़ तक सीमित रख दिया। पूरे चुनाव अभियान में ना तो भाजपा का पन्ना प्रमुख नजर आया और ना ही मंडल के पदाधिकारी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने भी इस बार अधिक दिलचस्पी नहीं ली। मतदाताओं तक पर्ची पहुंचाने में हमेशा आगे रहने वाली भाजपा की पर्ची इस बार अधिकांश लोकसभा क्षेत्रों में नहीं पहुंची। दूसरी तरफ कांग्रेस एकजुट रही। जातिगत समीकरणों को साधकर टिकट तय किए।

गठबंधन को प्राथमिकता देते हुए तीन सीटें आईएनडीआईए में शामिल दलों के लिए छोड़ी। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने पूरे चुनाव अभियान की कमान संभाली। कांग्रेस के जो आठ सांसद चुनाव जीते हैं, उनमें से छह के टिकट की पैरवी पायलट ने की थी। वे पायलट के कट्टर समर्थक हैं।

वहीं, डोटासरा ने सीकर में माकपा से गठबंधन करवाया। डोटासरा ने शेखावाटी व मारवाड़ के जाट वोट बैंक को साधने में पूरा जोर लगाया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नागौर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करवाया, हालांकि गहलोत के खुद के पुत्र वैभव गहलोत जालौर-सिरोही सीट से चुनाव हार गए।

दिग्गज गुत्थी सुलझाने में जुटे

अब भाजपा के दिग्गज यह गुत्थी सुलझाने में जुटे हैं कि 11 सीटों पर हार के क्या कारण हैं। जबकि एक सीट पर तो कांग्रेस के प्रत्याशी ने टिकट तय होने के बाद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। कांग्रेस के प्रत्याशियों के पास संसाधनों की कमी थी। लेकिन फिर भी पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया करने वाली भाजपा को इस बार झटका लगा है। जबकि मतदान के बाद सीएम शर्मा सहित वरिष्ठ भाजपा नेता सभी 25 सीटों पर पार्टी की जीत का दावा कर रहे थे। लोकसभा अध्यक्ष ओेम बिरला,केंद्रीय मंत्री अर्जुूनराम मेघवाल व गजेंद्र सिंह शेखावत अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ही फंस कर रह गए। वे पड़ोस की सीट पर भी प्रचार करने नहीं जा सके ।

इन समीकरणों से हुआ नुकसान और फायदा

यह माना जा रहा है कि डोटासरा की जाटों में पकड़, राज्य मंत्रिमंडल में जाटों को उम्मीद के मुताबिक महत्व नहीं मिलने और चूरू से दो बार भाजपा के टिकट पर सांसद रहे राहुल कस्वा का टिकट कटने से जाट मतदाता नाराज हो गए।

प्रतिपक्ष के पूर्व नेता राजेंद्र राठौड़ की कस्वा से अदावत पुरानी है। भाजपा के दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीणा को मंत्रिमंडल में कम महत्व का विभाग मिलने से पूर्वी राजस्थान के मीणा नाराज थे। इसका लाभ पायलट ने उठाया।

उन्होंने दौसा, टोंक-सवाईमाधोपुर, करौली-धौलपुर और भरतपुर में गुर्जर और मीणा वोटों का ध्रुवीकरण करवा दिया। गुर्जर पायलट के कारण पूरी तरह से कांग्रेस के साथ रहे। केंद्रीय मंत्री पुरूषोत्तम रूपाला की राजाओं को लेकर की गई टिप्पणी से राजपूत समाज नाराज हो गया।

कांग्रेस ने चुनाव अभियान में भाजपा के सत्ता में आने पर अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण खत्म करने का मुद्दा जोरशोर से उठाया, जिसका लाभ उसे मिला। ऐसे में अधिकांश प्रमुख जातियां भाजपा से दूर हो गई। भाजपा के नेता कांग्रेस की इस रणनीति को समझने में नाकाम रहे।

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