Rajasthan: जातियों की गणित, प्रत्याशियों के चयन और अपनों को ही ठिकाने में उलझी रही भाजपा, BJP संगठन की निष्क्रियता व कांग्रेस की एकजुटता का भी असर
Rajasthan Election करीब छह महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने झटका दिया है। भाजपा 25 लोकसभा सीटें जीतने की हैट्रिक नहीं बना सकी। जातियों की गणित प्रत्याशियों का चयन और अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में उलझी भाजपा को खुद की लापरवाही के चलते 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।
नरेंद्र शर्मा, जयपुर। करीब छह महीने पहले राजस्थान में सरकार बनाने वाली भाजपा को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने झटका दिया है। भाजपा 25 लोकसभा सीटें जीतने की हैट्रिक नहीं बना सकी। जातियों की गणित, प्रत्याशियों का चयन और अपने ही नेताओं को ठिकाने लगाने में उलझी भाजपा को खुद की लापरवाही के चलते 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।
प्रदेश में लोकप्रिय चेहरे का अभाव और संगठन की निष्क्रियता का नुकसान भी भाजपा को उठाना पड़ा है। प्रदेश संगठन बिखरा हुआ है। प्रदेशाध्यक्ष सी.पी.जोशी खुद के निर्वाचन क्षेत्र चित्तौड़गढ़ से एक दिन बाहर नहीं निकल सके। संगठन महामंत्री और प्रदेश प्रभारी के पद खाली है। पहली बार विधायक और मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा ने सभी सीटों के दौरे अवश्य किए, लेकिन करिश्माई चेहरे के अभाव में वे मतदाओं में पकड़ नहीं बना सके।
पार्टी ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को झालावाड़ तक सीमित रख दिया। पूरे चुनाव अभियान में ना तो भाजपा का पन्ना प्रमुख नजर आया और ना ही मंडल के पदाधिकारी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने भी इस बार अधिक दिलचस्पी नहीं ली। मतदाताओं तक पर्ची पहुंचाने में हमेशा आगे रहने वाली भाजपा की पर्ची इस बार अधिकांश लोकसभा क्षेत्रों में नहीं पहुंची। दूसरी तरफ कांग्रेस एकजुट रही। जातिगत समीकरणों को साधकर टिकट तय किए।
गठबंधन को प्राथमिकता देते हुए तीन सीटें आईएनडीआईए में शामिल दलों के लिए छोड़ी। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने पूरे चुनाव अभियान की कमान संभाली। कांग्रेस के जो आठ सांसद चुनाव जीते हैं, उनमें से छह के टिकट की पैरवी पायलट ने की थी। वे पायलट के कट्टर समर्थक हैं।
वहीं, डोटासरा ने सीकर में माकपा से गठबंधन करवाया। डोटासरा ने शेखावाटी व मारवाड़ के जाट वोट बैंक को साधने में पूरा जोर लगाया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नागौर सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करवाया, हालांकि गहलोत के खुद के पुत्र वैभव गहलोत जालौर-सिरोही सीट से चुनाव हार गए।
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