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Ghunghat Pratha In Rajasthan: राजस्थान में अब घूंघट की आड़ में नहीं रहेंगी महिलाएं

Ghunghat Pratha In Rajasthan. राजस्थान में घूंघट प्रथा समाप्त करने के लिए जयपुर व बीकानेर में अभियान शुरू हुए हैं।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Tue, 14 Jan 2020 07:24 PM (IST)
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Ghunghat Pratha In Rajasthan: राजस्थान में अब घूंघट की आड़ में नहीं रहेंगी महिलाएं
जयपुर, जेएनएन। Ghunghat Pratha In Rajasthan. घूंघट प्रथा (पर्दा प्रथा) को समाप्त करने के लिए अब राजस्थान के जिलों में जिला कलक्टरों की ओर से अभियान शुरू किए जा रहे हैं। बीकानेर में इसकी शुरुआत पहले ही हो चुकी है। जयपुर में भी इसे लेकर एक कार्ययोजना बनाए जाने का निर्णय किया गया है। अन्य जिलों में भी इसे लेकर कार्यशालाएं और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू हो रही है।

बीकानेर में अब घूंघट नी, जयपुर में ना घूंघट निकालेगी न निकालने देगी 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ दिन पहले घूंघट प्रथा समाप्त करने के लिए लोगों को जागरूक किए जाने की बात कही थी। इसके बाद जिला कलक्टरों को इस बारे में निर्देश भी भेजे गए थे। इसी सिलसिले में राजस्थान के बीकानेर जिले में “अब घूंघट नी“ अभियान शुरू किया जा चुका है। वहां के जिला कलक्टर कुमार पाल गौतम इस बारे में बैठक कर चुके हैं। वहीं, जयपुर में भी “ना घूंघट निकालेगी न निकालने देगी“ नारे के साथ अभियान शुरू करने का फैसला किया गया है। इस बारे में जिला कलक्टर जोगाराम ने संबंधित अधिकारियों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की है। इसी तरह अन्य जिलों में भी इस तरह का अभियान शुरू किए जाने की तैयारी चल रही है।

वक्ताओं ने माना, बुराई है घूंघट

जयपुर में आयोजित कार्यशाला में सभी वक्ताओं ने माना कि विज्ञान, तकनीक और आधुनिकता के इस दौर में घूंघट एक बुराई है, सबको मिलकर ही इसके खिलाफ एक माहौल बनाना चाहिए। इसके लिए महिलाओं को जागरूक करने के साथ ही पुरुषों को भी जागरूक करने का काम किया जाएगा। यह भी तय किया गया है कि जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत की बैठकों में घूंघट प्रथा को समाप्त करने का स्थाई एजेंडा बनाया जाएगा, क्योंकि शहरों में तो इस प्रथा को बहुत हद तक छोड़ दिया गया है, लेकिन गांवों में अभी भी घूंघट की प्रथा जारी है।

कुरीतियां और परंपराएं कहीं न कहीं हमारे सामाजिक पिछड़ेपन का प्रतीक 

कलेक्टर डॉ. जोगाराम ने कहा कि आधुनिक समय में इस प्रकार की कुरीतियां और परंपराएं कहीं न कहीं हमारे सामाजिक पिछड़ेपन का प्रतीक हैं और इस कुप्रथा को हटाने के लिए सभी अपने-अपने परिवार से इसकी शुरुआत कर सकते हैं। बैठक में तय किया गया है कि घूंघट उन्मूलन गतिविधियों को एक आंदोलन का रूप देने के साथ ही इसके लिए संकल्प, शपथ व जागरूकता कार्यक्रम किए जाएंगे।

समाज की बदले सोच 

जयपुर जिला परिषद सीईओ डॉ. भारती दीक्षित ने कहा कि घूंघट मुक्त समाज के निर्माण के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं एवं पुरुषों की भूमिका महत्वपूर्ण है। समाज की सोच में बदलाव लाने का काम गैर सरकारी संगठन अच्छी तरह कर सकते है। उनके सुझावों एवं जमीनी स्तर से मिले फीडबैक को शामिल करके ही जयपुर जिले में घूंघट से मुक्ति के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा। इसमें शिक्षा विभाग, चिकित्सा विभाग, पंचायती राज विभाग की भूमिका भी रहेगी, क्योंकि ये विभाग सीधे तौर पर समाज के लोगों से जुड़े हुए हैं। बैठक में तय किया गया कि इस अभियान के लिए स्कूलों में बने गार्गी मंच, मीना मंच जैसे समूह का उपयोग किया जाएगा। वहीं, वॉट्सएप व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इसे बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा साथिन, आशा सहयोगिनी एवं महिला-पंच सरपंच को प्रशिक्षित किया जाएगा।

राजपूत सभा ने कहा यह व्यक्तिगत सोच

राजस्थान में घूंघट प्रथा का सर्वाधिक चलन राजपूत समाज में रहा है। समाज ने अभी सरकार के इस अभियान के बारे में खुल कर कोई बात नहीं की हैं। हालांकि इस बारे में राजपूत सभा के अध्यक्ष गिर्राज सिंह लोटवाडा का कहना है कि यह व्यक्तिगत सोच का मसला है। घूंघट को लेकर समाज कें किसी तरह की अनिवार्यता नहीं है। सरकार यदि इसे लेकर अभियान चलाती है तो चलाए, लेकिन अभी ऐसे अभियानों से ज्यादा जरूरत दूसरे कई विषयों की है, जिस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए, जिसमें से बड़ी बात शिक्षा और रोजगार की है। 

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