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Laxmi Vilas Hotel : एक पूर्व कर्मचारी के जुनून ने 252 करोड़ की सरकारी संपति को बचाने के लिए किया संघर्ष

उदयपुर की लक्ष्मी विलास होटल के विनिवेश के खिलाफ 16 साल तक जोधपुर कोर्ट में केस चला। होटल के विनिवेश को रद्द करने के पीछे अंबालाल नायक का जुनून काम आया। उदयपुर के कालका माता इलाका निवासी अंबालाल नायक विनिवेश से पहले होटल लक्ष्मी विलास के कर्मचारी थे।

By Vijay KumarEdited By: Updated: Sat, 19 Sep 2020 07:02 PM (IST)
राजस्थान में उदयपुर स्थित लक्ष्मी विलास होटल की फाइल फोटो।
नरेन्द्र शर्मा, जयपुर : झीलों की नगरी के नाम से देश-दुनिया में प्रसिद्ध उदयपुर की लक्ष्मी विलास होटल के विनिवेश के खिलाफ 16 साल तक जोधपुर कोर्ट में केस चला। इस पांच सितारा होटल के विनिवेश को रद्द करने के पीछे अंबालाल नायक का जुनून काम आया। उदयपुर के कालका माता इलाका निवासी अंबालाल नायक विनिवेश से पहले होटल लक्ष्मी विलास के कर्मचारी थे। 252 करोड़ रूपए की कीमत के होटल को मात्र 7.5 करोड़ में ललित ग्रुप को बेचने के खिलाफ सबसे पहले अंबालाल नायक ने ही आवाज उठाई। 

विनिवेश फैसले को गलत बताकर कोर्ट में याचिका

विनिवेश फैसले को गलत बताते हुए उन्होंने केंद्र सरकार के विनिवेश मंत्रालय के फैसले के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की । इस फैसले को चुनौती देते नायक ने कहा कि विनिवेश में घोटाला और भ्रष्टाचार हुआ है । 

मामला वापस लेने का दबाव बनाया, हार नहीं मानीं

नायक ने कहा कि सरकारी संपति लक्ष्मी विलास की वैल्यू को कम आंक कर इसे ललित ग्रुप को बेच दिया गया नायक पर कोर्ट से मामला वापस लेने को लेकर काफी दबाव बनाया गया,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी । 

16 साल से किए जा रहे संघर्ष के बाद न्याय मिला

लालच भी दिया गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया । इन सबके बीच वे जुनून के साथ इस विनिवेश के विरोध में कोर्ट में लड़ाई लड़ते रहे । नायक द्वारा 16 साल से किए जा रहे इस संघर्ष को अब जाकर न्याय मिला है और सरकार ने लक्ष्मीविलास को अपने कब्जे में लिया है । 

होटल के बाहर सरकारी संपति का बोर्ड लगा दिया है

उदयपुर जिला प्रशासन द्वारा होटल के बाहर सरकारी संपति का बोर्ड लगा दिया गया है । नायक ने अपने 16 साल के संघर्ष के बारे में "दैनिक जागरण" के साथ बातचीत की । 

भ्रष्टाचार और प्राइवेट लोगों की मिलीभगत पीड़ादायक

नायक ने कहा,मैं तो छोटा कर्मचारी था,लेकिन इस बात की पीड़ा थी कि इतनी महंगी संपति को भ्रष्टाचार और प्राइवेट लोगों की मिलीभगत से ललित ग्रुप को सौंपा जा रहा है । 

साल 2004 में भी विनिवेश का विरोध किया गया था 

साल 2004 में जब तत्कालीन सरकार इस होटल का विनिवेश कर रही थी तो विरोध भी हुआ था । लेकिन कोई खुलकर सामने नहीं आया । कर्मचारी भी कुछ समय बाद शांत हो गये, लेकिन मैने इस मामले को कोर्ट में ले जाने का निर्णय किया । 

18 साल की लड़ाई के दौरान कई तरह के दबाव सहे 

18 साल की लड़ाई के दौरान कई तरह के दबाव सहन करने पड़े । कोर्ट में केस लड़ने के लिए कई बार तो आर्थिक परेशानी भी हुई,लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लड़ाई लड़ी । 

जोधपुर की सीबीआई कोर्ट के फैसले से खुशी : नायक

उन्होंने कहा, एक तरफ तो नौकरी जाने का दर्द और दूसरी तरफ बेशकीमती सरकारी संपति सस्ते दामों पर प्राइवेट ग्रुप को देने की पीड़ा थी । होटल लक्ष्मी विलास को उदयपुर की शान बताते हुए नायक का कहना है कि जोधपुर की सीबीआई कोर्ट के फैसले से वे बेहद खुश है । 

सीबीआई जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट, कोर्ट का इनकार

साल,2004 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में विनिवेश मंत्रालय ने 7.5 करोड़ में डिसइंवेस्टमेंट करते हुए लक्ष्मीविलास होटल ललित ग्रुप को सौंप दिया। इस मामले में 13 अगस्त, 2014 को एफआईआर दर्ज हुई थी। सीबीआई जांच के बाद इसमें कुछ मिलता हुआ नहीं बताकर क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई। लेकिन कोर्ट ने इसे मानने से इंकार कर दिया। 

अगस्त २०19 को जोधपुर सीबीआई कोर्ट ने जांच को कहा

कोर्ट ने कहा,जब सीबीआई ने अपनी जांच में माना कि जमीन की कीमत 151 करोड़ बनती है तो फिर जांच में क्लोजर रिपोर्ट कैसे लग सकती है। 13 अगस्त, 2019 को जोधपुर की सीबीआई कोर्ट ने सीबीआई से इस मामले की फिर विस्तृत जांच करने के लिये कहा। 

भारतीय दंड संहिता की धारा के तहत कोर्ट ने तलब किया

सीबीआई की आखिरी रिपोर्ट पर कोर्ट ने तत्कालीन विनिवेश मंत्री अरूण शौरी, तत्कालीन विनिवेश सचिव प्रदीप बैजल, मैसर्स लजार्ड इंडिया लिमिटेड के आशीष गुहा, भारत होटल की निदेशक ज्योत्साना सुरी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 420 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 डी के तहत अपराध पाया। इन सभी आरोपितों को कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट से तलब किया है।

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