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राजस्थान के चर्चित सतीकांड में 37 वर्षों बाद आया फैसला, सभी आरोपित बरी; पढ़ें पूरा मामला

देश भर में चर्चित राजस्थान के सतीकांड में 37 वर्षों बाद प्रथा को महिमामंडित करने के आठ और आरोपितों को कोर्ट ने बरी कर दिया। इस मामले में 45 लोग आरोपित थे। बुधवार को जयपुर महानगर द्वितीय के सती निवारण विशेष न्यायालय ने सुनवाई के बाद आठ आरोपितों श्रवण सिंह महेंद्र सिंह निहाल सिंह जितेंद्र सिंह उदय सिंह नारायण सिंह भंवर सिंह व दशरथ सिंह को बरी कर दिया।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Thu, 10 Oct 2024 07:30 AM (IST)
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राजस्थान के चर्चित सतीकांड में 37 वर्षों बाद आया फैसला, सभी आरोपित बरी

जागरण संवाददाता, जयपुर। देश भर में चर्चित राजस्थान के सतीकांड में 37 वर्षों बाद प्रथा को महिमामंडित करने के आठ और आरोपितों को कोर्ट ने बरी कर दिया। इस मामले में 45 लोग आरोपित थे। 11 लोग पहले ही बरी हो चुके हैं। अन्य 27 आरोपितों पर अभी सुनवाई होनी है।

सीकर जिले के दिवराला गांव में चार सितंबर 1987 को 18 वर्ष की रूपकंवर लोगों की भीड़ के बीच पति माल सिंह शेखावत की चिता पर जलकर सती हो गई थीं। उनकी तेरहवीं पर चुनरी महोत्सव आयोजित किया गया था। इसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल हुए थे। इस दौरान लोगों ने उन्हें सती माता का दर्जा दिया और मंदिर का निर्माण करवाया।

देश में सती होने का यह अंतिम मामला माना जा रहा है

बुधवार को जयपुर महानगर द्वितीय के सती निवारण विशेष न्यायालय ने सुनवाई के बाद आठ आरोपितों श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह व दशरथ सिंह को बरी कर दिया। बता दें कि देश में सती होने का यह अंतिम मामला माना जा रहा है। आजादी प्राप्ति के बाद राजस्थान में सती के 29 मामले हुए, जिसमें एक यह भी था।

तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने प्रथा के महिमामंडन के लिए 45 लोगों पर मामला दर्ज कराया था। जयपुर में विशेष न्यायालय भी बनाया गया। देश भर में आलोचना के बाद सरकार एक अध्यादेश लाई, जिसके तहत विधवा को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्रकैद और महिमामंडन करने वालों को सात साल कैद व 30 हजार रुपये के जुर्माने का प्रविधान किया गया। राज्यपाल की अनुमति के बाद अध्यादेश कानून बना।

समाज के लोगों ने रूपकंवर पर सती होने का दबाव बनाया

हाई कोर्ट की रोक के बाद भी हुआ था चुनरी महोत्सवजयपुर के बाल सिंह राठौड़ की बेटी रूपकंवर की शादी 17 जनवरी 1987 को माल सिंह से हुई थी। तीन सितंबर 1987 को पति के पेट में दर्द हुआ और एक दिन बाद उनकी मौत हो गई। आरोप लगे थे कि माल सिंह के स्वजनों एवं समाज के लोगों ने रूपकंवर पर सती होने का दबाव बनाया। चुनरी महोत्सव के एक दिन पहले 15 सितंबर को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा को पत्र लिखकर महोत्सव रोकने का आग्रह किया। न्यायालय ने रोक भी लगा दी थी, लेकिन महोत्सव हुआ।

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