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Hindi Diwas 2022: हिंदी को राजभाषा बनाने में उदयपुर के मेहताजी का है बड़ा योगदान

Hindi Diwas 2022 पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि हिंदी मिश्रित उर्दू बने राजभाषा किन्तु गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल की इच्छा हमेशा से थी हिंदी बने राजभाषा अपनी जीवनी में मास्टर मेहता ने लिखा था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू को हिंदी मिश्रित उर्दू के कट्टर समर्थक थे।

By Priti JhaEdited By: Wed, 14 Sep 2022 05:32 PM (IST)
Hindi Diwas 2022: हिंदी को राजभाषा बनाने में उदयपुर के मेहताजी का है बड़ा योगदान
Hindi Diwas 2022: फोटो मास्टर बलवंतसिंह मेहता। फाइल फोटो

उदयपुर, संवादसूत्र। हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी भारतीय यह दिवस पूरे उत्साह से मनाते हैं, किंतु इसे राजभाषा का दर्जा दिलाने में सबसे बड़ा योगदान किसका रहा, ज्यादातर लोग नहीं जानते। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि हिंदी मिश्रित उर्दू को राजभाषा का दर्जा मिले लेकिन उदयपुर के स्वतंत्रता सेनानी मास्टर बलवंत सिंह मेहता के प्रयासों और पहले गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल के सहयोग से हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिल पाया।

भारतीय संविधान निर्माता समिति में राजस्थान से सदस्य रहे मास्टर मेहता ने हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए रात-दिन एक कर दिए और सफलता हासिल की। मास्टर मेहता का जितना योगदान देश की आजादी में रहा, उतना ही योगदान उन्होंने हिंदी को राजभाषा बनाने में किया।

अपनी जीवनी में मास्टर मेहता ने लिखा था कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को हिंदी मिश्रित उर्दू के कट्टर समर्थक थे। इसीलिए वह चाहते थे कि हिंदी मिश्रित उर्दू को ही भारत की राजभाषा का दर्जा मिले। इसके लिए संसद में प्रस्ताव रखा जाना था।

मालूम हो कि इसकी भनक तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को लगा। वे नहीं चाहते थे कि देश की आत्मा हिंदी की जगह दूसरी भाषा को यह दर्जा मिले लेकिन वह अकेले यह काम नहीं कर सकते थे। इसीलिए उन्होंने संविधान निर्माता समिति में सदस्य तथा अपने सबसे विश्वस्त साथी संसदीय सदस्य मास्टर बलवंत सिंह मेहता से संपर्क साधा तथा उनसे इस काम में मदद मांगी। सरदार पटेल मास्टर मेहता की राष्ट्रभक्ति, सच्चरित्रता और लगनशीलता से काफी प्रभावित थे।

मेहता ने सांसदों को मनाकर हिंदी के पक्ष में जोड़ा

सरदार पटेल के आग्रह पर मास्टर बलवंतसिंह मेहता ने रात में सांसदों के घर पहुंचे तथा सभी सदस्यों को हिंदी के पक्ष में वोट देने के लिए राजी कर लिया। इसी का परिणाम था कि संविधान सभा में हिंदी के पक्ष में मतदान हुआ और हिंदी हमारी राजभाषा मान ली गई।

ऐसे थे मास्टर मेहता

मास्टर बलवंतसिंह मेहता का जन्म उदयपुर में आठ फरवरी 1900 को हुआ था। साल 1915 में वह राजनीतिक जागृति के प्रेरक बन गए तथा प्रताप सभा का संचालन करने लगे। सन् 1938 में प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष भी बने।

भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद देश के आजाद होने पर संविधान निमात्री सभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने भारत सेवक समाज की अध्यक्षता की और 1943 में उदयुपर में वनवासी छात्रावास की स्थापना की।

माउंट आबू भी राजस्थान में मेहता के प्रयासों से राजस्थान में माउंट आबू को वापस लेने का श्रेय भी मेहताजी को जाता है। जिन्होंने भीलों के साथ आंदोलन चलाया और माउंट आबू 1970 में राजस्थान को

वापस मिला। वे बताते थे कि राजस्थान के सिरोही स्टेट को तत्कालीन मुम्बइ प्रांत में मिला दिया। इसका मेहता ने जबरदस्त विरोध किया।

इस मामले में गृहमंत्री सरदार पटेल के पीए शंकर ने सुनवाई के लिए उन्हें बुलाया लेकिन वह तब तक नहीं गए जब तक दस हजार भीलों को आमंत्रित नहीं किया। उनके महत्वपूर्ण प्रकाशनों में ‘लाइफ ऑफ मीराबाई एंड उनके गाने‘, ‘ महाराणा प्रताप‘,‘चित्तौड़गढ़ का किला‘,‘मेवाड़ दिग्दर्शन‘ और ‘राजपुताना‘ शामिल हैं।

गांधीवादी जीवन शैली में दृढ़ विश्वास रखने वाले मेहता ने हरिजनों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। मेहता का 103 वर्ष की आयु में 31 जनवरी 2003 को उदयपुर निधन हो गया।