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21 साल की उम्र में जज बन गए जयपुर के मयंक, कहा- सबसे मुश्किल होता है साक्षात्कार

RJS topper. जयपुर के मयंक प्रताप सिंह कहते हैं कि इतनी छोटी उम्र में जज जैसी जिम्मेदारी मिलना एक अलग ही तरह की फीलिंग दे रहा है।

By Sachin MishraEdited By: Updated: Fri, 22 Nov 2019 02:17 PM (IST)
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21 साल की उम्र में जज बन गए जयपुर के मयंक, कहा- सबसे मुश्किल होता है साक्षात्कार
जयपुर, मनीष गोधा। महज 21 साल की उम्र में जयपुर के मयंक प्रताप सिंह जज बन गए हैं। इतनी कम उम्र में जज बनने वाले मयंक राजस्थान में तो पहले हैं ही, देश में भी वह संभवत: पहले शख्स होंगे। उनकी यह उपलब्धि इसलिए और भी बड़ी हो गई है क्योंकि उन्होंने जज बनने के लिए हुई राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा-2018 में भी पहला स्थान हासिल किया है।

राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा का आयोजन हाई कोर्ट करता है। 2018 की भर्ती परीक्षा से पहले तक इसमें शामिल होने की न्यूनतम आयु सीमा 23 साल थी। 2018 की परीक्षा में इसे घटाकर 21 वर्ष कर दिया गया था। मयंक ने अपने पहले ही प्रयास में आयु सीमा घटाए जाने का फायदा उठा लिया। प्रारंभ से ही मेधावी मयंक बताते हैं कि 12वीं कक्षा के बाद उन्होंने 2014 में ही राजस्थान विश्वविद्यालय के पांच वर्षीय विधि पाठयक्रम की प्रवेश परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में चयन हो गया।

जब प्रवेश लिया था तब सोचा तो था कि न्यायिक सेवा में जाएंगे लेकिन उस समय चूंकि आयु सीमा 23 वर्ष थी, इसलिए दिमाग में यही था कि डिग्री हासिल करने के बाद दो वर्ष तक अच्छी कोचिंग और कहीं इंटर्नशिप करने के बाद ही प्रयास करेंगे। मयंक ने बताया कि जब वह नौंवे सैमेस्टर में थे तभी पता लगा कि राजस्थान न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा की न्यूनतम आयु सीमा घटा कर 21 वर्ष कर दी गई है। इसके बाद इस परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी। इस साल विधि पाठ्यक्रम पूरा करने के दो महीने बाद ही न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा थी। इस साल विधि पाठ्यक्रम पूरा करने के दो महीने बाद ही न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा थी।

सबसे मुश्किल होता है साक्षात्कार

मयंक के मुताबिक कॉलेज की पढ़ाई पूरी गंभीरता से की थी इसलिए न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा की तैयारी दो माह में अच्छे से हो गई। इस परीक्षा में सबसे मुश्किल साक्षात्कार होता है। वहां हाई कोर्ट के दो जज और विधि विशेषज्ञ बैठते हैं। मेरा साक्षात्कार करीब आधे घंटे चला। मेरे बारे में पूछने के अलावा विधि क्षेत्र से जुड़े कई सवाल भी पूछे गए। सबरीमाला केस के फैसले के बारे में भी बात हुई। यह फैसला एक दिन पहले ही आया था और मैंने इसे पूरा पढ़ा था, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। जब साक्षात्कार भी ठीक रहा तो लगा कि चयन हो जाएगा, हालांकि यह नहीं सोचा था कि पहली रैंक आ जाएगी।

छोटी उम्र में जज जैसी जिम्मेदारी मिलना एक अलग अहसास

मयंक कहते हैं कि इतनी छोटी उम्र में जज जैसी जिम्मेदारी मिलना एक अलग ही तरह का अहसास है। कोशिश करूंगा कि पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ इस जिम्मेदारी को निभाऊं। मयंक के माता-पिता उदयपुर में सरकारी स्कूलों में वरिष्ठ शिक्षक हैं। मयंक का कहना है कि कहीं कोचिंग नहीं करने के बावजूद मुझे यह सफलता मिली है, यानी खुद अच्छे से पढ़ाई की जाए तो भी सफलता मिल सकती है। जरूरत इस बात की है कि अपना फोकस बनाए रखें और भटकें नहीं। 

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