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Rajasthan Politics: भजनलाल मंत्रिमंडल में वसुंधरा खेमे को नहीं मिली तरजीह, लोकसभा चुनावों को देखते हुए बदल रहे समीकरण

लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजस्थान मंत्रिमंडल विस्तार का विस्तार किया गया है। मंत्रिमंडल गठन में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खेमे के विधायकों को प्राथमिकता नहीं दी गई है। वसुंधरा खेमे से एकमात्र ओटाराम देवासी को मंत्री बनाया गया है। नए मंत्रिमंडल में आधे मंत्री युवा हैं। एक महिला विधायक को भी मंत्री बनाया गया है। मंत्रिमंडल के माध्यम से जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की गई है।

By Jagran News Edited By: Jeet KumarUpdated: Sun, 31 Dec 2023 06:30 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव को देखते हुए राजस्थान मंत्रिमंडल विस्तार का विस्तार किया गया है

जागरण संवाददाता, जयपुर। राजस्थान चुनाव में भाजपा को बहुमत मिलने के 27 दिन बाद शनिवार को नई सरकार के मंत्रिमंडल का गठन किया गया। राज्यपाल कलराज मिश्र ने राज्यवर्धन राठौर समेत 22 मंत्रियों को शपथ दिलवाई है। भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार में 12 कैबिनेट, पांच राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं पांच राज्य मंत्री बनाए गए हैं।

राज्य की 200 सीटों में से 199 सीटों पर मतदान हुआ था, एक प्रत्याशी की मृत्यु हो जाने के बाद एक सीट पर पांच जनवरी को चुनाव होना है। मंत्रिमंडल गठन में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खेमे के विधायकों को प्राथमिकता नहीं दी गई है। वसुंधरा खेमे से एकमात्र ओटाराम देवासी को मंत्री बनाया गया है। नए मंत्रिमंडल में आधे मंत्री युवा हैं। एक महिला विधायक को भी मंत्री बनाया गया है।

अब सरकार के मंत्रियों की संख्या 25 हो गई

मुख्यमंत्री भजनलाल और दो डिप्टी सीएम को मिलाकर अब सरकार के मंत्रियों की संख्या 25 हो गई है। राजस्थान में कोटे के हिसाब से 30 मंत्री बन सकते हैं, अब पांच मंत्रियों की जगह रह गई है। जिन 22 विधायकों ने शपथ ली है, उनमें 17 पहली बार मंत्री बने हैं। इसके साथ ही डिप्टी सीएम दीया कुमारी सहित भजनलाल सरकार में दो महिला विधायकों को जगह मिली है।

लोकसभा चुनाव को देखते हुए मंत्रिमंडल के माध्यम से जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की गई है। इनमें जाट समाज के चार, राजपूत समाज से तीन, एक जट सिख, अनुसूचित जाति और जनजाति के तीन-तीन, ब्राह्मण, वैश्य, पटेल, बिश्नोई, माली व गुर्जर समाज से एक-एक विधायक को मंत्री बनाया गया है।

केंद्र के बाद अब राज्य में मंत्री

राज्यसभा से इस्तीफा देकर विधायक बने किरोड़ी लाल मीणा, लोकसभा सांसद पद से इस्तीफा देकर विधानसभा पहुंचने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। राठौड़ केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी रह चुके हैं। राठौड़ पार्टी आलाकमान के निकट माने जाते हैं। इन दोनों के अतिरिक्त बाबूलाल खराड़ी, मदन दिलावर, जोगाराम पटेल, सुरेश सिंह रावत, अविनाश गहलोत, हेमंत मीणा, कन्हैयालाल चौधरी, जोराराम कुमावत, सुमित गोदारा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

राज्यमंत्री बनाए गए

संजय शर्मा, गौतम दक, सुरेंद्र पाल टीटी, झाबर सिंह खर्रा और हीरालाल नागर को स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया है। वहीं ओटाराम देवासी, मंजू बाघमार, विजय सिंह, के.के.बिश्नोई व जवाहर सिंह को राज्यमंत्री बनाया गया है।

कई संदेश दिए

पहली बार विधायक बने भजनाल शर्मा को सीएम एवं दिया कुमारी व प्रेमचंद बैरवा को उप मुख्यमंत्री बनाकर और अब मंत्रिमंडल के जरिए भाजपा आलाकमान ने कई संदेश दिए हैं। सबसे बड़ा संदेश दिया कि वरिष्ठता पद की गारंटी नहीं है। दूसरा कि सभी बड़े फैसले दिल्ली से होंगे, आलाकमान ही सर्वेसर्वा है। तीसरा कि अब भाजपा में नेता नहीं बल्कि पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वालों को महत्व दिया जाएगा।

जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों का तो ध्यान रखा जाएगा, लेकिन अब पद के लिए लाबिंग करने वालों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाएगा। चौथा कि पार्टी में निचले स्तर के कार्यकर्ता को महत्व मिलेगा। लंबी जद्दोजहद के बाद बने मंत्रिमंडल से यह भी साफ हो गया कि प्रदेश नेतृत्व वही करेगा जो दिल्ली के निर्देश होंगे। मंत्रिमंडल गठन से एक संदेश यह दिया गया कि दाग और विवादास्पद छवि मंजूर है। लेकिन पार्टी के प्रति निष्ठा होनी चाहिए।

प्रत्याशी को भी बना दिया मंत्री, कांग्रेस ने साधा निशाना

यह पहला मामला है, जब मतदान से करीब छह दिन पहले किसी प्रत्याशी को मंत्री बना दिया गया हो। पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव में श्रीकरणपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी गुरमित ¨सह कुन्नर की मौत हो गई थी। इस कारण चुनाव निरस्त हो गए थे, अब पांच जनवरी को मतदान होना है। वहां से भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्र पाल टीटी को राज्यमंत्री बनाया गया है।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, भाजपा न तो संविधान को मानती है और न ही चुनाव आयोग को मानती है। जानकारों के मुताबिक देश में चलते चुनाव के दौरान किसी को मंत्री बनाए जाने का पहला मामला है। नियमानुसार कोई भी व्यस्क भारतीय नागरिक बिना विधायक बने छह महीने तक मंत्री रह सकता है।