सौर ऊर्जा क्षेत्र में सूरज बनकर चमक सकता है राजस्थान
राजस्थान ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं और आज वह सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में देश का अग्रणी राज्य बन गया। राजस्थान के युवा उद्यमी डॉ. मोहित टांटिया का मानना है कि भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान सौर संयंत्र लगाने के लिए आदर्श है और यहां इस क्षेत्र में निवेश की व्यापक और अपार संभावनाएं हैं।
तपते थार रेगिस्तान और ज्येष्ठ आषाढ़ की झुलसाने वाली गर्मियों के लिए विख्यात राजस्थान आज सौर ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश के लिहाज से देश-दुनिया में सबसे उपयुक्त इलाकों में से एक है। लगभग 22,860 मेगावाट की संस्थापित क्षमता के साथ यह सौर ऊर्जा में देश में पहले स्थान पर है और साल 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जैविक ऊर्जा क्षमता हासिल करने के भारत के लक्ष्य में बड़ी भूमिका निभा सकता है। राज्य की संभावित सौर उत्पादन क्षमता 142 गीगावाट की आंकी गई है, जो राज्य में इस क्षेत्र में निवेश की अपार संभावनाओं को रेखांकित करती है।
भौगोलिक और प्राकृतिक रूप से देखें तो राजस्थान की किताब में बादलों के किस्से हाशियों में दर्ज हैं और धूप से इसके पन्ने भरे हुए हैं। सूरज देवता का रथ यहां मानों अपने पूरे वेग से चमकता हुआ निकलता है। राजस्थान का लगभग 2,08,110 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र रेगिस्तानी है जहां बालुई रेत का समंदर ठाठें मारता है। चाहे वह सीमावर्ती जोधपुर, जैसलमेर हो या बाड़मेर व बीकानेर का इलाका। इस इलाके में साल में लगभग 89 प्रतिशत (320 से अधिक) दिन तीखी धूप रहती है। देश में 'लैंड बैंक' के लिहाज से राजस्थान पहले नंबर पर है।
इस साल की शुरुआत में राजस्थान की संस्थापित सौर क्षमता 18 गीगावाट से अधिक हो गई और यह सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में देश का अग्रणी राज्य बन गया। राज्य में मौजूद समतल और रेगिस्तानी भूमि बड़े-बड़े सौर संयंत्र लगाने के लिए आदर्श हैं। राजस्थान में उच्च स्तर का सौर विकिरण प्राप्त होता है, जो औसतन 6-7 केडब्ल्यूएच/एम²/दिन है और इसे सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए उत्कृष्ठ गंतव्य बनाता है। यही कारण है कि आज यह देश सबसे अधिक सौर क्षमता वाला राज्य है।
राज्य की मौजूदा सरकार यहां की भौगोलिक व प्राकृतिक विशिष्टताओं को समुचित दोहन करने पर जो दे रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा खुद ऊर्जा में आत्मनिर्भरता को प्रगति एवं समृद्धि का सूत्र मानते हैं। इसी सोच के साथ राज्य सरकार दिसंबर महीने में वैश्विक निवेशक सम्मेलन ‘राइजिंग राजस्थान-2024’ आयोजित कर रही है। इस दौरान वह विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहेगा और इसमें सौर ऊर्जा का क्षेत्र प्रमुख होगा। इसकी एक वजह भी है कि राज्य ने इस क्षेत्र में लंबी दूरी तय की है। राज्य में पिछले कुछ वर्षों में सौर उर्जा क्षेत्र में किस तेजी से काम हुआ है, इसका अंदाजा इन आंकड़ों से भी लगाया जा सकता है। वित्त वर्ष 2011-12 में राज्य में
193.50 मेगावाट की सौर उर्जा क्षमता स्थापित की गई और कुल स्थापित क्षमता 198.50 मेगावाट थी। यह क्षमता 31 दिसंबर 2023 तक बढ़कर 15,195.12 मेगावाट हो गई।बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर व जोधपुर के इलाकों से गुजरने वाले सैलानी वहां कई कई बीघों, मुरब्बों में लगे सौर ऊर्जा संयंत्र देखकर हैरान होते हैं। एक हैरानी उन्हें तब भी होती है, जब वे जयपुर और छोटे शहरों में घरों की छतों पर सोलर पैनलों की बढ़ती संख्या को देखते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पीएम कुसुम कंपोनेंट ए और बी के कार्यान्वयन में राजस्थान अग्रणी है। इसके अलावा पीएम सूर्य घर बिजली योजना जैसी महत्वाकांक्षी योजना के तहत प्रत्येक जिले में एक आदर्श सौर गांव विकसित किया जाएगा और राजस्थान में पांच लाख घरों में रूफटॉप सोलर लगाए जाएंगे। यानी राज्य में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता ही नहीं बढ़ेगी, बल्कि उसका व्यावहारिक उपयोग भी नई ऊंचाई को छुएगा। यह ऊर्जा क्षेत्र में राजस्थान के सुखद भविष्य का संकेत भर नहीं है, बल्कि एक समृद्ध व आत्मनिर्भर राजस्थान की राह भी है।
यहां इस क्षेत्र में मौजूद कुछ चुनौतियों पर भी निगाह डाली जा सकती है। इसमें सौर सेल या बैटरी के रूप में सामने आने वाले कचरे के निस्तारण से जुड़ी कोई प्रभावी प्रक्रिया या नीति का अभाव, सौर संयंत्र की स्थापना के लिए भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया, सौर प्लेटों की धुलाई के लिए बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत को शामिल किया जा सकता है। नीति निर्माताओं व विशेषज्ञों को इस ओर ध्यान देते हुए व्यावहारिक समाधान पेश करने चाहिए। राज्य में निवेशकों को उपयुक्त माहौल एवं प्रोत्साहन मिले ये भी जरूरी है, ताकि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में राजस्थान का सितारा यूं ही बुलंद रहे।
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