Move to Jagran APP

खत्म होने के कगार पर राजस्थान का जहाज "ऊंट" लगातार कम हो रही संख्या

ऊंट को राजस्थान का जहाज और जन्मस्थली माना जाता है। लेकिन अब ऊंट अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। पिछले पांच साल में 35 प्रतिशत ऊंट कम हो गए हैं।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Sat, 12 Sep 2020 11:41 AM (IST)
Hero Image
खत्म होने के कगार पर राजस्थान का जहाज "ऊंट" लगातार कम हो रही संख्या
जयपुर, जागरण संवाददाता। ऊंट को राजस्थान का जहाज और जन्मस्थली माना जाता है। लेकिन अब ऊंट अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। पिछले पांच साल में 35 प्रतिशत ऊंट कम हो गए हैं। देश में जितने ऊंट है उनमें से 80 फीसदी ऊंट राजस्थान में ही है। साल, 2014 में ऊंट को राज्य पशु घोषित किया था, लेकिन संरक्षण के अभाव में पशुपालक मुंह मोड़ रहे हैं।

प्रदेश में ऊंटों की मौत का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। 20वीं पशुगणना के अनुसार ऊंटों की संख्या में 34.69 प्रतिशत कमी आई। पहले 3.26 लाख ऊंट थे और अब 2.13 लाख रह गए। ऊंट पालकों ने बताया कि सरकारी प्रोत्साहन नहीं के बराबर है। ऐसे में कोई ऊंट क्यों पालेगा।

राज्य में ऊंट संरक्षण के लिए चलाई जा रही योजनाएं पिछले छह महीने से बंद पड़ी हैं। इसके कारण पशुपालकों को अनुदान व अन्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही। ऊंटनी के दूध को सऊदी अरब, यूएई,ऑस्ट्रेलिया सहित दर्जन भर देशों में दवाइयों सहित, मिल्क शेक के रूप में काम में ले रहे हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व, विटामिन्स होते हैं। मंदबुद्धि बच्चों के दिमागी विकास, मधुमेह, कैंसर, विभिन्न संक्रमण, भारी धातु विषाक्तता, कोलाइटिस और शराब से प्रेरित विषाक्तता के रोगों में दवा के रूप में काम ले रहे हैं। गुजरात के कच्छ में पाया जाना वाला खाराई ऊंट समुद्री पानी में भी 5-7 किलोमीटर बिना किसी सहारे के चल सकता है।

इन कारणों से कम हो रहे ऊंट

ऊंट कम होने के कारणों में चारागाह कम होने, उष्ट्र विकास योजना बंद होने, तस्करी व उनका वध अधिक होना शामिल है । सरकार द्वारा पशुपालकों को प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण भी इनकी संख्या में कमी हो रही है । राष्ट्रीय ऊंट विकास योजना अस्थाई तौर से बंद ऊंट सरक्षंण के लिए केटल डवलपमेंट स्किम के तहत पशुपालक को नजदीकी पशु चिकित्सालय में पंजीयन करवाने एवं ऊंट के बछड़ा पैदा होने पर ऊंटपालक के सीधे बैंक अकाउंट में तीन किस्तों में दस हजार रुपए प्रदान करने की योजना पर अघोषित रोक है। तीसरी क़िस्त नहीं मिली और नए पंजीयन भी बंद है। प्रदेश में सबसे अधिक ऊंट बीकानेर व चुरू जिलों में मिलते हैं,वहीं सबसे कम झालावाड़ में लोग पालते हैं ।

पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि उंटपालकों को नवीन बीमारियों की जानकारी नहीं है। ऊंटों के लिए बनी योजनाओं का धरातल पर कम उतरना भी एक प्रमुख कारण है। 

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।