Jaipur Literature Festival 2022: नेहरू और जिन्ना की अहम की लड़ाई देश को बंटवारे तक ले गईः त्रिपुरदमन सिंह
Jaipur Literature Festival 2022 जेएलएफ के अंतिम दिन एक सत्र द नेहरू डिबेट्स में लेखक त्रिपुरदमन सिंह ने चर्चा करते हुए कहा कि पंडित नेहरू और जिन्ना के बीच अहम की लड़ाई देश को बंटवारे तक ले गई।
By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Mon, 14 Mar 2022 08:10 PM (IST)
जागरण संवाददाता, जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) के अंतिम दिन सोमवार को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और कश्मीर को लेकर दो अलग-अगल सत्र आयोजित हुए। एक सत्र 'द नेहरू डिबेट्स' में लेखक त्रिपुरदमन सिंह ने चर्चा करते हुए कहा कि पंडित नेहरू और जिन्ना के बीच अहम की लड़ाई देश को बंटवारे तक ले गई। अगर समझौते की मेज पर इन दोनों के बजाय कोई और होता तो शायद देश का बंटवारा नहीं होता। उन्होंने कहा कि जिन्ना, नेहरू को कमतर आंकते थे । वह खुद को ज्यादा अनुभवी और बेहतर वकील बताते थे । जब महात्मा गांधी की सरपरस्ती में नेहरू आगे बढ़ने लगे तो जिन्ना के अहम को ठेस पहुंची और उन्हें लगा कि भारतीय मुसलमान इस देश में सुरक्षित नहीं रह सकते हैं। वह मानते थे कि भारतीय मुसलमानों की समस्याओं को अलग से देखा जाना चाहिए ।
'द नेहरू डिबेट्स' सत्र में कई राज उजागर
वहीं, नेहरू अपनी बात साबित करने के लिए लंबी बहस करते थे। नेहरू और जिन्ना की खींचतान देश पर भारी पड़ी। उन्होंने कहा कि नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बीच भी काफी खींचतान रही थी। यहां तक की नेहरू की विदेश नीति से पटेल खुश नहीं थे, लेकिन महात्मा गांधी का वह सम्मान करते थे। गांधी ने नेहरू को चुना था, इसलिए वह कभी खुलकर सामने नहीं आए थे । उन्होंने चीन को लेकर कई बार नेहरू को समझाना चाहा था। सिंह ने कहा कि आजादी के समय नेहरू चाहते थे कि देश की छवि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की बने, यही बात उनके और शायर इकबाल के बीच खींचतान का कारण बनी। नेहरू का मानना था कि धर्म के आधार पर किसी को बांटना गलत है। वहीं, इकबाल अहमदी आंदोलन के कारण भारतीय मुसलमानों की एकजुटता को लेकर चिंतित थे। पटेल के साथ आंबेडकर भी नेहरू की विदेश नीति के आलोचक थे
वहीं, नेहरू अपनी बात साबित करने के लिए लंबी बहस करते थे। नेहरू और जिन्ना की खींचतान देश पर भारी पड़ी। उन्होंने कहा कि नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बीच भी काफी खींचतान रही थी। यहां तक की नेहरू की विदेश नीति से पटेल खुश नहीं थे, लेकिन महात्मा गांधी का वह सम्मान करते थे। गांधी ने नेहरू को चुना था, इसलिए वह कभी खुलकर सामने नहीं आए थे । उन्होंने चीन को लेकर कई बार नेहरू को समझाना चाहा था। सिंह ने कहा कि आजादी के समय नेहरू चाहते थे कि देश की छवि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की बने, यही बात उनके और शायर इकबाल के बीच खींचतान का कारण बनी। नेहरू का मानना था कि धर्म के आधार पर किसी को बांटना गलत है। वहीं, इकबाल अहमदी आंदोलन के कारण भारतीय मुसलमानों की एकजुटता को लेकर चिंतित थे। पटेल के साथ आंबेडकर भी नेहरू की विदेश नीति के आलोचक थे
सिंह ने कहा कि पटेल की तरह डां. भीमराव आंबेडकर भी नेहरू की विदेश नीति के आलोचक थे । सिंह ने कहा कि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी कभी नेहरू के करीब थे, लेकिन 26 जनवरी,1950 को संविधान लागू होने के 15 महीने बाद ही नेहरू ने उसके तीन संशोधन प्रस्तावित कर दिए । इसके बाद से नेहरू और मुखर्जी के बीच खींचतान बढ़ी थी।