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Rajasthan : उदयपुर का ऊंटाला, जिसे वल्लभभाई पटेल की वजह से मिली पहचान और अब कहलाता है वल्लभनगर

आज़ादी के बाद उदयपुर जिले का यह पहला गांव था जिसका नाम बदला गया। आजादी से पहले यह क्षेत्र ऊंटाला कहा जाता था और 1952 में सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रति सम्मान के लिए इसका नाम बदल दिया गया। तब से इसे वल्लभनगर कहा जाने लगा

By Jagran NewsEdited By: PRITI JHAUpdated: Mon, 31 Oct 2022 01:20 PM (IST)
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फोटो कैप्शन ..उदयपुर जिले के वल्लभनगर कस्बे की पहचान शीतला माता मंदिर, जिसे ऊंटाला माता कहा जाता है। जागरण

उदयपुर, सुभाष शर्मा। जिले की आठ विधानसभाओं में उदयपुर शहर के बाद सबसे महत्वपूर्ण है वल्लभनगर। इसके वल्लभनगर कहलाने के पीछे के राज से कम ही लोग परिचित हैं। आजादी से पहले यह क्षेत्र ऊंटाला कहा जाता था और 1952 में सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रति सम्मान के लिए इसका नाम बदल दिया गया। तब से इसे वल्लभनगर कहा जाने लगा, हालांकि 1960 में गजट नोटिफिकेशन के बाद यह पूरी तरह वल्लभनगर के रूप में तब्दील हुआ।

देश के पहले गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल की जयंती

सोमवार को देश के पहले गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल की जयंती है और कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ता पटेल की जयंती धूमधाम से मना रहे हैं। किन्तु पटेल बहुल वल्लभनगर में पटेल की जयंती को लेकर खास उत्साह नहीं, इसके पीछे कारण हैं कि यहां वल्लभनगर की स्मृति को लेकर एक भी स्थान नहींं। यहां तक इस कस्बे के नाम परिवर्तन को लेकर जानकारी देता शिलापट्ट तक नहीं है और नई पीढ़ी वल्लभनगर नामकरण को लेकर जानकारी तक नहीं रखती। हालांकि कुछ चुनिंदा ही बुजुर्ग बताते हैं कि पटेल बहुल इस गांव से सरदार वल्लभ भाई पटेल को बेहद लगाव था और उनके आगमन के बाद इस गांव का नाम भी उन्हीं के नाम पर कर दिया गया।

आज़ादी के बाद उदयपुर जिले का पहला गांव जिसका नाम बदला गया

जिला मुख्यालय उदयपुर से लगभग चालीस किलोमीटर दूर वल्लभनगर कस्बा है। आज़ादी के बाद उदयपुर जिले का यह पहला गांव था जिसका नाम बदला गया। यह गांव और इसके आसपास का इलाका पटेल बहुल है और यहां सरदार पटेल के प्रति सम्मान की विशेष लहर थी। इसीलिए 1952 में इस गांव के नाम परिवर्तन के प्रयास शुरू हो गए। तत्कालीन सांसद ओंकारलाल बोहरा, जो इस गांव से थे, उनके प्रयासों से 60 के दशक में उस गांव का नाम बाकायदा गजट नोटिफेकेशन होकर वल्लभनगर हो गया।

ऊंटाला नाम के पीछे भी पूरा इतिहास

वल्लभनगर के लोग ही नहीं, बल्कि राजस्थान के लोग ऊंटाला के इतिहास से भी अनभिज्ञ हो गए। ऊंटाला नाम के पीछे भी पूरा इतिहास छिपा था। यहां मेवाड़ और मुगल शासकों की ऊंटों की सेना रहती थी और इसी के चलते यह गांव ऊंटाला कहा जाता था। चेचक महामारी के दौरान यहां स्थित चेचक माता का नाम भी ऊंटाला माता के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने भी इतिहास की पुस्तक में इस गांव का वर्णन किया है। जिसमें उन्होंने बताया कि यहां के लेागों ने अपने सर कटाकर हरावल दस्ते में आगे रहने के लिए जान न्यौछावर कर दी थी। शक्तावतों और चूंडावतों के बीच रण के मैदान में आगे रहने के लिए किया गया उनका संघर्ष इतिहास में उल्लेखित है। वल्लभनगर में ऊंटाला के किले के अवशेष इसकी गवाही देते हैं।

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