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राजस्थान में बाल विवाह रोकने के लिए हाई कोर्ट ने सुनाया गजब का आदेश, कहा- अगर ऐसा हुआ तो ये लोग होंगे जिम्मेदार

राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य में बाल विवाह रोकने के लिए एक आदेश पारित किया है। जिसमें कहा गया है कि यदि किसी भी गांव या कस्बे में कोई बाल विवाह होता है तो उसके लिए ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू होने के बावजूद राज्य में अभी भी बाल विवाह हो रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Thu, 02 May 2024 04:36 PM (IST)
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राजस्थान में बाल विवाह रोकने के लिए हाई कोर्ट ने सुनाया गजब का आदेश (File Photo)
पीटीआई, जयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि राज्य में कोई बाल विवाह न हो। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि ऐसा होता है तो ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। अदालत का आदेश 10 मई को अक्षय तृतीया त्योहार से पहले बुधवार को आया। राजस्थान में अक्षय तृतीया पर कई बाल विवाह होते हैं।

बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 क्या है?

बाल विवाह को रोकने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत की खंडपीठ ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू होने के बावजूद राज्य में अभी भी बाल विवाह हो रहे हैं। अदालत ने कहा कि हालांकि अधिकारियों के प्रयासों से बाल विवाह की संख्या में कमी आई है, लेकिन अभी भी कई जगहों पर चोरी-छुपे बाल विवाह हो रहा है, जिसे रोकना बहुत जरूरी है।

बाल विवाह रोकने की ली जाएगी रिपोर्ट

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के अनुसार, बाल विवाह को प्रतिबंधित करने का कर्तव्य सरपंच का है। कोर्ट ने राज्य में कहां-कहां बाल विवाह होता है और जनहित याचिका के साथ संलग्न सूची पर नजर रखने को कहा है। इस प्रकार एक अंतरिम उपाय के रूप में हम राज्य को बाल विवाह को रोकने के लिए की गई जांच के संबंध में रिपोर्ट मांगने का निर्देश भी देंगे।

अदालत को एक सूची भी प्रदान की गई

बता दें कि याचिकाकर्ताओं के वकील आरपी सिंह ने कहा कि अदालत को एक सूची भी प्रदान की गई थी, जिसमें अक्षय तृतीया के आसपास राज्य में होने वाले बाल विवाह का विवरण दिया गया था।

सरपंच और पंच को जागरूक किया जाना चाहिए

अदालत ने कहा कि उत्तरदाताओं को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य के भीतर कोई बाल विवाह न हो। सरपंच और पंच को जागरूक किया जाना चाहिए और सूचित किया जाना चाहिए कि यदि वे लापरवाही से बाल विवाह को रोकने में विफल रहते हैं, तो उन्हें बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 11 के तहत जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

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