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लाइलाज नहीं है लिवर सिरोसिस

दिल और किडनी के अलावा भारत में सबसे ज़्यादा लोग लिवर संबंधी बीमारियों से त्रस्त हैं। लिवर सिरोसिस भी एक ऐसी ही गंभीर बीमारी है, लेकिन सही उपचार और स्वस्थ खानपान से इसे का़फी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

By Edited By: Updated: Mon, 31 Dec 2012 05:21 PM (IST)
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आधुनिक जीवनशैली में खानपान की गलत आदतों और अनियमित दिनचर्या की वजह से भारत में लिवर सिरोसिस की समस्या तेजी से फैल रही है।

आखिर मर्•ा क्या है

आमतौर पर लिवर से संबंधित तीन समस्याएं सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं-फैटी लिवर, हेपेटाइटिस और सिरोसिस। फैटी लिवर की समस्या में वसा की बूंदें लिवर में जमा होकर उसकी कार्यप्रणाली में बाधा पहुंचाती हैं। यह समस्या घी-तेल, एल्कोहॉल और रेड मीट के अधिक सेवन से हो सकती है। हेपेटाइटिस होने पर लिवर में सूजन आ जाती है। यह समस्या खानपान में संक्रमण, असुरक्षित यौन संबंध या ब्लड ट्रांस्फ्यूजन की वजह से होती है। सिरोसिस में लिवर से संबंधित कई समस्याओं के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं। इसमें लिवर के टिशूज क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। आमतौर पर ज्यादा एल्कोहॉल के सेवन, खानपान में वसा युक्त चीजों, नॉनवेज का अत्यधिक मात्रा में सेवन और दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से भी यह समस्या हो जाती है। इसके अलावा लिवर सिरोसिस का एक और प्रकार होता है, जिसे नैश सिरोसिस यानी नॉन एल्कोहोलिक सिएटो हेपेटाइटिस कहा जाता है, जो एल्कोहॉल का सेवन नहीं करने वालों को भी हो जाता है।

सिरोसिस की तीन अवस्थाएं

-सिरोसिस की इस अवस्था में अनावश्यक थकान, वजन घटना और पाचन संबंधी गडबडियां देखने को मिलती हैं।

-दूसरी अवस्था में चक्कर और उल्टियां आना, भोजन में अरुचि और बुखार जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

- तीसरी और अंतिम अवस्था में उल्टियों के साथ खून आना, बेहोशी और मामूली सी चोट लगने पर ब्लीडिंग का न रुकना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इसमें दवाओं का कोई असर नहीं होता और ट्रांस्प्लांट ही इसका एकमात्र उपचार है।

कैसे होता है लिवर ट्रांस्प्लांट

इसकी सामान्य प्रक्रिया यह है कि जिस व्यक्ति को लिवर प्रत्यारोपण की जरूरत होती है उसके परिवार के किसी सदस्य (माता/पिता, पति/पत्नी के अलावा सगे भाई/बहन) द्वारा लिवर डोनेट किया जा सकता है। इसके लिए मरीज के परिजनों को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन काम करने वाली ट्रांस्प्लांट ऑथराइजेशन कमेटी से अनुमति लेनी पडती है। यह संस्था डोनर के स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक और सामाजिक स्थितियों की गहन छानबीन और उससे जुडे करीबी लोगों से सहमति लेने के बाद ही उसे अंग दान की अनुमति देती है। लिवर के संबंध में सबसे अच्छी बात यह है कि अगर इसे किसी जीवित व्यक्ति के शरीर से काटकर निकाल भी दिया जाए तो समय के साथ यह विकसित होकर अपने सामान्य आकार में वापस लौट आता है। इससे डोनर के स्वास्थ्य पर भी कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इसके अलावा अगर किसी मृत व्यक्ति के परिवार वाले उसके देहदान की इजाजत दें तो उसके निधन के छह घंटे के भीतर उसके शरीर से लिवर निकाल कर उसका सफल प्रत्यारोपण किया जा सकता है। इसमें मरीज के लिवर के खराब हो चुके हिस्से को सर्जरी द्वारा हटाकर वहां डोनर के शरीर से स्वस्थ लिवर निकालकर स्टिचिंग के जरिये प्रत्यारोपित किया जाता है। इसके लिए बेहद बारीक िकस्म के धागे का इस्तेमाल होता है, जिसे प्रोलिन कहा जाता है। लंबे समय के बाद ये धागे शरीर के भीतर घुल कर नष्ट हो जाते हैं और इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। ट्रांस्प्लांट के बाद मरीज का शरीर नए लिवर को स्वीकार नहीं पाता, इसलिए उसे टैक्रोलिनस ग्रुप की दवाएं दी जाती हैं, ताकि मरीज के शरीर के साथ प्रत्यारोपित लिवर अच्छी तरह एडजस्ट कर जाए। सर्जरी के बाद मरीज को साल में एक बार लिवर फंक्शन टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।

आखिर मिल ही गई कामयाबी

मनोज गौड मुंबई स्थित एक मल्टी नेशनल कंपनी में आईटी मैनेजर हैं। दिसंबर 2011 में दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में उनके लिवर का सफल प्रत्यारोपण किया गया। अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं, पर लिवर सिरोसिस से लडना कोई आसान काम नहीं था। इस लडाई में उनकी पत्नी भारती गौड ने हर कदम पर उनका साथ दिया। यहां वह खुद बयां कर रही हैं, अपने संघर्ष की कहानी..

जब मुझे पहली बार यह मालूम हुआ कि मेरे पति को लिवर सिरोसिस है तो मुझे डॉक्टर की बातों पर यकीन नहीं हुआ क्योंकि मेरे पति एल्कोहॉल को हाथ भी नहीं लगाते। तब डॉक्टर ने हमें यह बताया कि कुछ विशेष परिस्थितियों में शराब नहीं पीने वाले लोगों को भी लिवर सिरोसिस की समस्या हो जाती है। मुंबई में डॉ. अनिल सूचक हमारे फेमिली फ्रेंड हैं, उन्होंने हमें बताया कि मनोज का लिवर सिरोसिस ऐसी अवस्था में है कि उनके इलाज में जरा भी देर नहीं होनी चाहिए। उन्होंने हमें दिल्ली में अपने परिचित डॉ. सुभाष गुप्ता के पास जाने की सलाह दी।

दौर भावनात्मक संकट का

वृद्ध ससुर जी और बच्चे को अकेला छोड कर पति के इलाज के लिए दिल्ली जाना मेरे लिए बेहद मुश्किल, लेकिन जरूरी भी था। ऐसे में मेरी बहन हमारे घर पर रुक कर उनकी देखभाल के लिए राजी हो गई। फिर मैं पति और ननद के साथ दिल्ली आ गई। परिवार का कोई अन्य सदस्य लिवर डोनेट करने की स्थिति में नहीं था। इसलिए यह काम मुझे ही करना था। खैर, दिल्ली पहुंचते ही हमने अपोलो हॉस्पिटल के पास िकराये पर एक फ्लैट लिया और सारे टेस्ट के बाद 19 दिसंबर 2011 को हम दोनों को ट्रांसप्लांट के लिए अस्पताल में भर्ती कर लिया गया।

अचानक बदल गए हालात

रात को तकरीबन बारह बजे डॉक्टर मेरे कमरे में राउंड पर आए और उन्होंने मुझसे कहा कि हो सकता है कि आपके ऑपरेशन की जरूरत ही न पडे। मैं उनकी बात समझ नहीं पाई तो उन्होंने मुझे बताया कि यहां एक ब्रेन डेड पेशेंट कई दिनों से भर्ती हैं। उनके परिवार वाले उनकी अंतिम इच्छा का खयाल रखते हुए उनका देह दान करना चाह रहे हैं। इसलिए संभावना है कि उनका लिवर आपके पति के शरीर में ट्रांस्प्लांट कर दिया जाए। तब मैंने डॉक्टर से पूछा कि इस बात की क्या गारंटी है कि उस लिवर में किसी तरह का इन्फेक्शन न हो? तब डॉक्टरों ने मुझे आश्वस्त किया कि ऐसी कोई बात नहीं है। अंतत: मेरे पति का ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो गया।

डॉ. सुभाष गुप्ता के नेतृत्व वाली टीम में उनके सहयोग के लिए 50 लोग शामिल थे। सर्जरी आठ घंटे तक चली। इसमें लगभग 21 लाख रुपये का खर्च आया। ऑपरेशन के बाद उनकी सेहत में बहुत तेजी से सुधार आया और तीन सप्ताह के भीतर ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई। घर लौटने के बाद डॉक्टर के निर्देशों के अनुसार मैं अपने पति को अधिक से अधिक प्रोटीन युक्त डाइट देती थी, जिसमें चिकेन सूप, अंडा, पनीर, सोया मिल्क और टोफू जैसी चीजें शामिल होती थीं। डॉक्टर ने उन्हें ताउम्र इन्फेक्शन से बचकर रहने और सादा-संतुलित खानपान अपनाने की सलाह दी है। अब तो वह ऑफिस भी जाने लगे हैं और ईश्वर की कृपा से पूरी तरह स्वस्थ हैं। वह हमारे परिवार के लिए बेहद मुश्किल दौर था, पर अंतत: हमें उससे बाहर निकलने में कामयाबी मिल ही गई।

(दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट और गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. सुभाष गुप्ता से बातचीत पर आधारित)