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इस चाहत को आहत न होने दें

वैवाहिक रिश्ते की बुनियाद है सेक्स संबंध, पर कभी-कभी ये रिश्ते मधुर नहीं रह पाते। चाहत खोने लगती है, इच्छाएं मरने लगती हैं और सेक्स क्रिया पीड़ादायक होने लगती है। यह एक तरह का डिसॉर्डर भी हो सकता है, जिसे मेडिकल भाषा में हाइपोएक्टिव सेक्स डिजायर्स डिसॉर्डर कहा जाता है। क्या कारण हैं इसके और इसका समाधान कैसे हो सकता है, जानें एक्सपर्ट से।

By Edited By: Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:31 PM (IST)
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स्वस्थ जीवन का अहम हिस्सा है सेक्सुअलिटी। आधुनिक जीवनशैली ने लोगों की सेक्स लाइफ को बहुत प्रभावित किया है। सेक्स से जुडी कई समस्याएं भी बढी हैं। ऐसी ही एक समस्या है हाइपोएक्टिव  सेक्सुअल  डिजायर  डिसॉर्डर  (एचएसडीडी)। हालांकि इसका सही-सही कारण वैज्ञानिक नहीं खोज पाए हैं, लेकिन इसके लक्षणों के आधार पर काफी हद तक इसे लाइफस्टाइल से जुडी समस्या कहा जा सकता है। यह स्त्री-पुरुष किसी को भी हो सकती है। लेकिन अभी तक स्त्रियों में इसके लक्षण ज्यादा पाए गए हैं। एचएसडीडी का मुख्य लक्षण है-लो लिबिडो  या सेक्सुअल  डिजायर्स  का कम होना। यह डिसॉर्डर  वैवाहिक रिश्ते पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसका कारण यह है कि सेक्स दांपत्य की बुनियादी जरूरत है और इसमें कोई भी रुकावट आने पर जीवन के हर पक्ष पर इसका दुष्प्रभाव देखने को मिलता है।

समस्या को समझें

एचएसडीडी  वह स्थिति है, जिसमें कोई स्त्री या पुरुष सेक्सुअल  डिजायर्स  कम होने के कारण रिश्तों में कठिनाई महसूस करता है। इसका अर्थ है कि उसकी सेक्सुअल  डिजायर्स  बहुत कम हैं या नहीं हैं। यह डिसॉर्डर  आज मूड नहीं है जैसी समस्या से बहुत आगे की है। फिजिशियन, मनोवैज्ञानिक या कोई प्रशिक्षित हेल्थ केयर प्रोफेशनल ही सही-सही जांच करके इसके बारे में बता सकता है। डिप्रेशन या किसी अन्य रोग के इलाज में प्रयुक्त होने वाली दवाओं से भी लो लिबिडो  की शिकायत हो सकती है, लेकिन एचएसडीडी  अन्य सेक्सुअल  प्रॉब्लम्स  से अलग है। अभी तक दुनिया भर के डॉक्टर्स इस समस्या से निपटने के कारगर तरीके नहीं ढूंढ पाए हैं। लो लिबिडो  से जूझ रही स्त्रियों के लिए कोई बेहतर दवा नहीं होती। इसके अलावा डॉक्टर्स  किसी महिला मरीज  से उसकी सेक्स लाइफ के बारे में खुल कर बात करने में हिचक महसूस करते हैं। ऐसे में बिना संसाधनों व पूर्ण जानकारी के उनके पास इस समस्या से निपटने का एक ही रास्ता बचता है। वह है- बिहेवियरल  थेरेपी और अनुमान के आधार पर बताई गई कुछ विधियां। जैसे डॉक्टर्स  सेक्सुअल  अराउजल  को बढाने के लिए आजकल वाइब्रेटर्स,  मसाज  ऑयल्स,  न्यूट्रिशनल  या हर्बल सप्लीमेंट्स,  ल्युब्रिकेंट्स  या जेल का प्रयोग करने को कहते हैं, लेकिन यह भी सच है कि ये सारी चीजें एक सीमा तक ही कारगर हैं। अगर मन या दिमाग  ही तैयार नहीं होगा तो कोई भी बाहरी तरीका कारगर नहीं हो सकता।

एचएसडीडी  के कारण

फोर्टिस हेल्थकेयर में मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल  साइंसेज  विभाग की हेड और सलाहकार डॉ. कामना छिब्बर  कहती हैं, एचएसडीडी वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को सेक्स संबंधों की इच्छा नहीं होती। इस डिसॉर्डर  का इलाज करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का ध्यान रखना होता है। जैसे दंपती  के रिश्ते, मूड, सामाजिक व व्यावसायिक जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड रहा है। एचएसडीडी  के कारण स्पष्ट नहीं हैं। जैविक, मनोवैज्ञानिक कारणों के अलावा अत्यधिक दबाव, तनाव या सदमा इसका कारण हो सकता है। साथ ही दंपती के आपसी संबंधों में कोई समस्या होने पर भी यह समस्या हो सकती है।

एचएसडीडी  के लक्षण

यह समस्या गंभीर है और वैवाहिक रिश्तों में दरार डाल सकती है। इसलिए इसका इलाज तुरंत जरूरी है। इसके कुछ लक्षण हैं-

सेक्स में अरुचि : सामान्य रूप से सेक्स में अरुचि गंभीर समस्या नहीं है। मगर एचएसडीडी  के मरीज  के लिए यह बडी समस्या बन जाती है। पीडित स्त्री या पुरुष में सेक्स को लेकर उत्तेजना नहीं जागती। वह तनाव या दबाव में न हो तो भी वह सेक्स से दूर रहता है। यह सबसे प्रमुख लक्षण है इस समस्या का, जिसे सेक्स थेरेपी के जरिये  दूर किया जा सकता है।

शरीर में दर्द :  इसमें मरीज को इंटरकोर्स  के दौरान दर्द का अनुभव होता है। दर्द के कारण व्यक्ति सेक्स संबंध एंजॉय  नहीं कर पाता और उसके मन में सेक्स को लेकर नकारात्मक सोच जन्म लेने लगती है। यदि यह दर्द लगातार बना रहे तो व्यक्ति सेक्स संबंधों से दूर भागने लगता है।

सेक्स से नफरत : सेक्स संबंधों के दौरान दर्द या अरुचि के कारण धीरे-धीरे व्यक्ति सेक्स से नफरत करने लगता है। इसके लिए कई बार शारीरिक विकार तो कई बार मनोवैज्ञानिक समस्याएं जिम्मेदार  होती हैं। जैसे पिटुएटरी  ग्लैंड (पीयूष ग्रंथि) में ट्यूमर  के कारण भी ऐसा हो सकता है।

अवसाद :  एचएस डीडी  से ग्रस्त व्यक्ति को कई बार अवसाद से भी गुजरना होता है। डिसॉर्डर के कारण डिप्रेशन हो सकता है या डिप्रेशन के कारण भी डिसॉर्डर  हो सकता है।

सेक्स में असंतुष्टि :  इस डिसॉर्डर  से ग्रस्त कुछ लोगों में सेक्स क्रिया में असंतुष्टि भी एक कारण हो सकती है। इससे सेक्स सेशन बेहद बोरिंग, पीडादायक या बोझिल हो सकता है।

डिसॉर्डर  के नुकसान

सेक्स क्रिया वैवाहिक जीवन का अहम हिस्सा है। इसके न होने से दंपती  के आपसी रिश्तों पर असर पडता है। इसके साथ ही उनकी सामाजिक-व्यावसायिक जिंदगी  भी प्रभावित होती है। कई बार इस डिसॉर्डर  से ग्रस्त मरीज  का पार्टनर भावनात्मक खालीपन को भरने के लिए विवाहेतर संबंधों का रुख  कर लेता है। क्योंकि सेक्स सिर्फ शारीरिक सुख का साधन नहीं है, यह मानसिक व भावनात्मक रूप से भी व्यक्ति को संतुष्ट करता है।

तुरंत इलाज है जरूरी 

इस समस्या को लंबे समय तक टालना ठीक नहीं है। लक्षणों के आधार पर तुरंत एक्सपर्ट से मिलना चाहिए। देरी से समस्या गंभीर हो सकती है। डॉ. छिब्बर कहती हैं, एचएसडीडी की समस्या में दवा के जरिये न्यूरोट्रांस्मीटर्स के स्तर पर इलाज किया जाता है। लेकिन केवल दवा से स्थिति को नहीं बदला जा सकता। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी ट्रीटमेंट की जरूरत  पडती है।

इस समस्या से ग्रस्त स्त्री-पुरुषों को ओरल टैब्लट्स,  इंट्रामस्क्यलर  इंजेक्शंस,  सब्क्यूटेनियस (त्वचा के नीचे) इंप्लांट्स  और पैचेज  के जरिये  ट्रीटमेंट दिया जाता है। वैसे एक्सप‌र्ट्स  इस समस्या में साइकोथेरेपी  को भी कारगर तरीका मानते हैं। मगर इस साइकोसेक्सुअल  थेरेपी में दोनों पार्टनर्स की भागीदारी जरूरी होती है। कुछ खास  शारीरिक स्थितियों में हॉर्मोन रिप्लेसमेंट  थेरेपी (एचआरटी) की मदद ली जाती है। दवाओं, क्रीम्स या साइकोथेरेपी के अलावा आजकल योग, ध्यान और व्यायाम के माध्यम से भी समस्या को सुलझाने की कोशिश की जा रही हैं। दरअसल अभी तक सेक्स समस्याओं को हार्डकोर समस्या माना ही नहीं जाता, इसलिए इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी जाती। इससे समस्या गंभीर होती जाती है। एचएसडीडी में भी अभी इलाज की सुविधाएं ज्यादा नहीं हैं। इस दिशा में अभी हॉर्मोनल, नॉन-हॉर्मोनल  फर्माकोथेरेपीज  में शोध और अध्ययन की जरूरत  है।

महत्वपूर्ण तथ्य

यह जटिल स्थिति है, जिसे समझना काफी मुश्किल है। आमतौर पर मेनोपॉज के दौरान सेक्स में रुचि घटती है या यह क्रिया पीडादायक हो जाती है। मगर एचएसडीडी का उम्र या मेंस्ट्रुअल साइकल से कोई सीधा संबंध नहीं है। यह समस्या मेनोपॉज  से पहले या बाद में हो सकती है। मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्याओं को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। अध्ययन बताते हैं कि सेक्स को लेकर खराब  अनुभव, आत्मविश्वास की कमी, पति से खराब  संबंध, प्रेग्नेंसी  या सेक्सु अल ट्रांस्मिटेड  डिजीज  होने पर भी यह समस्या हो सकती है।

इंदिरा राठौर