करीब 2500 साल पुराना है पापड़ का इतिहास, जानें कैसे बना भारतीय थाली का हिस्सा

  • Story By: हर्षिता सक्सेना

भारत अपने खान-पान और स्वाद के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां कई ऐसे व्यंजन मौजूद हैं, जिन का स्वाद दुनिया भर में लोगों का बेहज पसंद है। पापड़ भी ऐसा ही एक व्यंजन है, जिसे भारतीय खानपान का अहम हिस्सा माना जाता है।

भारत अपने खान-पान और स्वाद के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां कई ऐसे व्यंजन मौजूद हैं, जिन का स्वाद दुनिया भर में लोगों का बेहज पसंद है। पापड़ भी ऐसा ही एक व्यंजन है, जिसे भारतीय खानपान का अहम हिस्सा माना जाता है। शादी-पार्टी हो या रात का डिनर, पापड़ भारतीय खाने का एक अहम हिस्सा है, जिसे लोग बड़े शौक से खाते हैं। कुरकुरे और मसालेदार इन पापड़ का स्वाद खाने में चार चांद लगा देता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस पापड़ को आप चटकारे लेकर खाते हैं, आखिर उसकी शुरुआत कैसे हुई और यह भारतीय खाने का हिस्सा कैसे बना।


अगर आप आज तक पापड़ के दिलचस्प इतिहास से अनजान हैं, तो हम आपको आज इसके दिलचस्प इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। साथ ही यह भी बताएंगे कि कैसे यह भारत में भोजन का अहम हिस्सा बना।

कितना पुराना पापड़ का इतिहास

छोटे से लेकर बड़े तक हर कोई पापड़ को बड़े शौक से खाते हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि खाने का स्वाद बढ़ाने वाले इस कुरकुरे पापड़ का इतिहास 500 ईसा पूर्व यानी 2500 साल पुराना है। खाद्य इतिहासकार और लेखक केटी आचार्य की एक किताब 'ए हिस्टोरिकल डिक्शनरी ऑफ इंडियन फूड' में यह जानकारी मिलती है। उनकी इस किताब में उड़द, मसूर और चने की दाल से बने पापड़ का जिक्र किया गया है। वहीं, भारत में इसके इतिहास की बात करें तो यहां पर पापड़ कम से कम 1500 साल पुराने हैं।

पड़ोसी मुल्क से कैसे भारत आया पापड़?

पापड़ का पहला उल्लेख जैन साहित्य में देखने को मिलता है, क्योंकि मारवाड़ के जैन समुदाय में पापड़ काफी समय से प्रचलित है। दरअसल, यहां के लोग अपनी यात्राओं में पापड़ साथ लेकर जाते थे। वहीं, अगर बात करें पापड़ के भारत आने की तो यह पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से हमारे देश पहुंचा था। पापड़ बनाने के लिए सिंध (पाकिस्तान) को काफी सही माना जाता था, क्योंकि यहां की वायु और उच्च तापमान पापड़ बनाने के लिए बिल्कुल सही था। साल 1947 में जब बंटवारा हुआ, तो ज्यादातर सिंधी हिंदू भारत आ गए और अपने साथ पापड़ भी लेकर आए।

पेट पालने का बना जरिया

उस समय यह वहां के लोगों का मुख्य भोजन बन गया था, क्योंकि पापड़ शरीर में पानी की पूर्ति करने के साथ ही तरोताजा बनाए रखने में भी मदद करता था। पापड़ की बढ़ती खपत को देख वहां के लोगों ने पापड़ बनाकर पैसे कमाना शुरू कर दिए। पाकिस्तान से भारत आए इन सिंधियों को अपनी जीविका चलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। ऐसे में बहुत सी महिलाएं अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पापड़ और अचार बेचकर ही पैसे कमाती थीं। पेट भरने और जीविका चलाने के लिए इस्तेमाल में आने वाला पापड़ आज पूरे देश में बड़े चाव से खाया जाता है।

अलग-अलग नाम हैं मशहूर

बदलते समय के साथ ही अब कई तरह के पापड़ का स्वाद चखने को मिलता है। इनमें चावल के पापड़, रागी के पापड़, साबूदाना, आलू, चना दाल, खिचिया के पापड़ आदि शामिल है। भारत के अलग-अलग राज्यों में पापड़ खाने का एक अहम हिस्सा है। हालांकि इन विभिन्न देशों में पापड़ को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। तमिलनाडु में जहां इसे अप्पलम कहते हैं, तो वहीं कर्नाटक में इसे हप्पला नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे केरल में पापड़म, उड़ीसा में पम्पाड़ा और उत्तर भारत में पापड़ के नाम से जाना जाता है।