जहां भगवान राम ने किया था बाली का वध
दण्डकारण्य जहां भगवान राम की पहली बार हनुमानजी से मुलाकात हुई थी। यहीं भगवान राम ने बाली का वध करके अपने मित्र को न्याय दिलाया था।
By satyendra.singhEdited By: Updated: Fri, 21 Jul 2017 12:24 PM (IST)
किष्किंधा की चर्चा बाल्मिकी रामायण में
किष्किंधा के पूरे रास्ते में आपको पहाडि़यां दिखती हैं और हरे-भरे खेत और नारियल से लदे-फदे खेत। इस इलाके की ग्रेफाइट चट्टानें भी ऐसी विशेष हैं कि पूरे देश में उनकी मांग है, लिहाजा रास्ते में आपको पत्थर तोड़ते मजदूर भी नजर आते हैं। किष्किंधा की चर्चा काफी विस्तार से बाल्मिकी रामायण में की गई है। सीताजी की तलाश में जब राम इस इलाके में पहुंचे तो बरसात की ऋतु शुरू हो चुकी थी। अब कोई चारा नहीं कि राम और लक्ष्मण इसी दण्डकारण्य में समय बिताएं। दण्डकारण्य में ही उन्होंने एक गुफा में शरण ली। फिर कुछ महीने एक मंदिर में रुके। यहीं उनकी मुलाकात जब हनुमान से हुई। प्राचीन भारत में ये सुग्रीव और बाली जैसे ताकतवर वानरों की नगरी थी। आज भी यहां बड़ी संख्या में वानर दिखते हैं। हर तरह के वानर ललमुंहे और काले मुंह वाले दोनों। यहां के वानरों और वासिंदों के बीच अजीब दोस्ती भी देखने को मिलती है।
अंजनी पर्वत हनुमान जी की जन्मस्थलीआप क्यों किष्किंधा घूमने जाएं। यहां की दो बातें लोगों को बड़ी संख्या में यहां आकर्षित करती हैं-पहली है अंजनि पर्वत, जहां पवनसुत हनुमान का जन्म हुआ और दूसरा अंजनी पर्वत के करीब स्थित ब्रह्म सरोवर, जो काफी पवित्र माना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र से यहां काफी तादाद में पर्यटक बसों में आते हैं। अंजनी पर्वत एक ऊंचा पहाड़ है। यही हनुमान जी की जन्मस्थली है। पहाड़ के ऊपर हनुमान जी का एक मंदिर है, जहां अखंड पूजा चलती रहती है। लगातार हनुमान चालिसा पढ़ी जाती रहती है। लेकिन यह मत सोचिए कि इस मंदिर तक पहुंचना आसान है। शायद यह मुश्किल ही इसके दर्शनों को और खास भी बनाती है। इसके लिए 500 से अधिक सीढि़यां चढ़नी होती हैं। यह आसान तो कतई नहीं। सीढि़यां चढ़ने के दौरान आप पाते हैं कि कई जगहों पर ये सीढि़यां पहाडि़यों को काटकर बनाई गई हैं, तो कई जगह ये पहाड़ की गुफाओं के बीच से गुजरती हैं। सीढि़यों के साथ ऊपर चढ़ने के दौरान कई बार ऐसी चट्टानें भी मिलती हैं कि उनके बीच से प्रकृति की खूबसूरती का कैनवस दिखता है। ऊपर पहुंचने पर हनुमान मंदिर में दर्शन के दौरान आप एक अलग आनंद से भर उठेंगे। मंदिर में जगह-जगह लोग आंखें बंद करके हनुमान अर्चना में लीन दिखेंगे। है तो ये कर्नाटक की ठेठ जगह, जहां हिन्दी में बहुत कम जानने और बात करने वाले मिले, लेकिन मंदिर में जो पुजारी-पंडे नजर आते हैं वह उत्तर भारत के हैं। अंजनी पर्वत पर ऊपर पहुंचने के बाद आप किष्किंधा नगरी का दूर तक विहंगम दृश्य भी देख सकते हैं, जहां कंक्रीट के जंगल नहीं, बल्कि पहाडि़यां, हरियाली और उनके बीच गुजरती तुंगभद्रा नदी दिखती है। वैसे, अंजनी पर्वत की एक और खासियत है, उसका ऊपरी सिरा बिल्कुल लगता है मानो हनुमान जी का चेहरा।
ब्रह्म सरोवर या पंपा सरोवरअंजनी पर्वत के दर्शन के बाद अगर कहीं जाना हो तो पहाडि़यों से घिरे ब्रह्म सरोवर पर जा सकते हैं। जो यहां से बहुत पास है। इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने ब्रंह्माड में केवल चार सरोवर बनाए, यह उनमें से एक है। मान्यता है कि यहां नहाने से आप पापों से मुक्ति के साथ ही सीधे मोक्ष पाएंगे। इस सरोवर में पानी कहां से आता है, यह भी आश्चर्य ही है। इसमें हमेशा कमल खिले हुए मिलते हैं। इसी सरोवर से सटी शबरी कुटिया है, जिसने भगवान राम को बेर खिलाए थे। शबरी और राम के प्रसंग को हम सबने खूब सुना है। शबरी कुटिया से सटा देवी लक्ष्मी का मंदिर है। अपनी पुरानी भव्यता और समृद्धि की कहानी कहता हुआ। मंदिर में मिले पुजारी का कहना था कि जब विजयनगर साम्राज्य पर मुस्लिम शासकों का जबरदस्त हमला हुआ तो राजाओं ने बड़े पैमाने पर इस मंदिर में मौजूद अकूत संपदा को यहां से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। बहुमूल्य आभूषण, हीरे जवाहरात को कई हाथियों पर लाद गया और फिर इन्हें तिरुअनंतपुरम के पद्मनाभन मंदिर की ओर रवाना कर दिया गया। बाली की गुफा आकर्षण का केंद्रबाली जिस गुफा में रहता था, वह गुफा भी आकर्षण का केंद्र है। यह अंधेरी, लेकिन काफी लंबी-चौड़ी गुफा है। जहां एक साथ कई अंदर जा सकते हैं। इसी गुफा से ललकार कर राम ने बाली को निकाला। जब उनके हाथों बाली की मृत्यु हो गई तो सुग्रीव को राजपाट सौंपा गया यानी यहां रामायण में उल्लेख हुई ढेरों बातें देखने को मिल जाएंगी। इससे पहले सुग्रीव अपने भाई बाली से डरकर ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था, जो आज भी यहां मौजूद है। वहां वह बाली से इसलिए सुरक्षित था, क्योंकि बाली को एक ऋषि ने शाप दिया था कि वह अगर ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ेगा तो मारा जाएगा। इसी पर्वत पर हनुमान ने राम और सुग्रीव की दोस्ती कराई थी। त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भागभगवान राम के युग यानी त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग होता था, जो विंध्याचल से आरंभ होता था और दक्षिण भारत के समुद्री क्षेत्रों तक पहुंचता था। भगवान श्रीराम को जब वनवास मिला तो लक्ष्मण और सीता के साथ उन्होंने इसी दण्डक वन में प्रवेश किया। यहां से रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था। श्रीराम सीता को खोजते हुए किष्किंधा में आए। चूंकि राम यहां कई स्थानों पर रहे, लिहाजा यहां उनके कई मंदिर और स्मृति चिन्ह हैं। लगता है कि प्राचीन समय में किष्किंधा काफी ऐश्वर्यशाली नगरी थी, बाल्मीकि रामायण में इसका विस्तार से उल्लेख है। अंश इस प्रकार है- लक्ष्मण ने उस विशाल गुहा को देखा जो कि रत्नों से भरी थी और अलौकिक दीख पड़ती थी। उसके वनों में खूब फूल खिले हुए थे। हर्म्य प्रासादों से सघन, विविध रत्नों से शोभित और सदाबहार वृक्षों से वह नगरी संपन्न थी। दिव्यमाला और वस्त्र धारण करने वाले सुंदर देवताओं, गंधर्व पुत्रों और इच्छानुसार रूप धारण करने वाले वानरों से वह नगरी बड़ी भली दीख पड़ती थी। चंदन, अगरु और कमल की गंध से वह गुहा सुवासित थी। मैरेय और मधु से वहां की चौड़ी सड़कें सुगंधित थीं। इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि किष्किंधा पर्वत की एक विशाल गुहा के भीतर बसी हुई थी। इस नगरी में सुरक्षार्थ यंत्र आदि भी लगे थे।कैसे पहुंचेंयहां पहुंचने के लिए कर्नाटक के होसपेट रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा। जो यहां से करीब है। किष्किंधा में रुकने के लिए अच्छे होटल हैं। बेल्लारी और बेंगलुरु से यहां सड़क मार्ग के जरिए भी पहुंचा जा सकता है। किष्किंधा घूमने के लिए एक दिन पर्याप्त होता है, लेकिन यह जगह ऐसा सर्किट है, जहां आने के बाद आपको समीपवर्ती नगरों हम्पी और बदामी भी जरूर जाना चाहिए, जो हमारे गौरवशाली इतिहास की भव्य झलक देते हैं।
- रत्ना श्रीवास्तव
- रत्ना श्रीवास्तव