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Amalaki Ekadashi 2024: विशेष महत्व रखती है आमलकी एकादशी, ऐसे प्राप्त करें श्री हरि की कृपा

फाल्गुन शुक्ल एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को मुख्य रूप से भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित माना जाता है। ऐसे में अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं तो आमलकी एकादशी पर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें और इस दौरान अच्युतस्याष्टकम् स्तोत्र का पाठ भी जरूर करें। आइए पढ़ते हैं अच्युतस्याष्टकम् स्तोत्र -

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Wed, 13 Mar 2024 06:18 PM (IST)
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Amalaki Ekadashi 2024 आमलकी एकादशी पर ऐसे प्राप्त करें श्री हरि की कृपा।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Amalaki Ekadashi 2024 Date: फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवले के पौधे की पूजा करने का भी विधान है। इसलिए इसे आंवला एकादशी या आमलकी एकादशी भी कहते हैं। हिंदू धर्म में आमलकी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस एकादशी पर आंवले के पौधे की पूजा करने से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।

आमलकी एकादशी का महत्व (Amalaki Ekadashi Significance)

आमलकी एकादशी साल की सबसे महत्वपूर्ण एकादशी में से एक मानी गई है। माना जाता है कि आमलकी एकादशी का व्रत करने से साधक को 100 गाय दान करने जितना पुण्य मिल सकता है। इसके साथ ही यह भी माना गया है कि आमलकी एकादशी व्रत के प्रभाव से साधक जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति पा लेता है और विष्णु लोक को प्राप्त होता है।

एकादशी का शुभ मुहूर्त (Amalaki Ekadashi Shubh Muhurat)

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 20 मार्च को रात्रि 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू हो रही है, वहीं इसका समापन 21 मार्च को मध्य रात्रि 02 बजकर 22 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, आमलकी एकादशी 20 मार्च, बुधवार के दिन मनाई जाएगी।

अच्युतस्याष्टकम्

अच्युतं केशवं रामनारायणं

कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।

श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं

जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं

माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।

इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं

देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥

विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे

रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये ।

बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने

कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण

श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।

अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज

द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो

दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।

लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो

राघव पातु माम् ॥

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा

केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।

पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो

बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं

प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।

वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं

लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं

रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।

हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं

किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं

प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।

वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य

वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥

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