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Parivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी पर करें इन मंत्रों का जप, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

ज्योतिषियों की मानें तो परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi 2024) तिथि पर दुर्लभ शोभन योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का भी संयोग बन रहा है। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने से जीवन में सुखों का आगमन होता है। इस शुभ अवसर पर साधक एकादशी व्रत रख विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 08 Sep 2024 09:48 PM (IST)
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Parivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी का धार्मिक महत्व

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 14 सितंबर को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi 2024) है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी और उनके रूपों की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। इसके लिए एकादशी तिथि पर तुलसी माता की अवश्य ही पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से आर्थिक तंगी समेत जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुखों का नाश होता है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। साधक भक्ति भाव से एकादशी तिथि पर लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करते हैं। अगर आप भी धन संबंधी परेशानी से निजात पाना चाहते हैं, तो परिवर्तिनी एकादशी तिथि पर लक्ष्मी नारायण जी की विधिपूर्वक पूजा करें। वहीं, पूजा के समय इन चमत्कारी मंत्रों का जप जरूर करें। इन मंत्रों के जप से घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है।

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मंत्र

1. वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।

य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

2. तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

3. महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

4. या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥

या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।

सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

5. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।

ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।

6. सिन्दूरारुणकान्तिमब्जवसतिं सौन्दर्यवारांनिधिं,

कोटीराङ्गदहारकुण्डलकटीसूत्रादिभिर्भूषिताम् ।

हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगलादर्शंवहन्तीं परां,

आवीतां परिवारिकाभिरनिशं ध्याये प्रियां शार्ङ्गिणः ॥

भूयात् भूयो द्विपद्माभयवरदकरा तप्तकार्तस्वराभा,

रत्नौघाबद्धमौलिर्विमलतरदुकूलार्तवालॆपनाढ्या ।

नाना कल्पाभिरामा स्मितमधुरमुखी सर्वगीर्वाणवनद्या,

पद्माक्षी पद्मनाभोरसिकृतवसतिः पद्मगा श्री श्रिये वः ॥

वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां,

हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।

भक्ताभीष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिस्सॆवितां,

पार्श्वे पङ्कजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

7. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्

विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्

वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

8. ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:

अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय

त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप

श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

9. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

10. ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

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