Utpanna Ekadashi 2024: उत्पन्ना एकादशी पर इस चालीसा के पाठ से मिलेगी पापों से मुक्ति, प्रसन्न होंगे श्रीहरि
सनातन धर्म में एकादशी तिथि को अधिक का महत्वपूर्ण माना जाता है। एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत को प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर करने का विधान है। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2024 Vrat) के नाम से जाना जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में उत्पन्ना एकादशी व्रत (Utpanna Ekadashi 2024 Vrat) किया जाता है। इस शुभ तिथि पर भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा -अर्चना करने का विधान है साथ ही व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विष्णु चालीसा का पाठ करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि में अपार वृद्धि होती है। आइए पढ़ते हैं विष्णु चालीसा।
उत्पन्ना एकादशी 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Utpanna Ekadashi 2024 Date and Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 26 नवंबर को देर रात 01 बजकर 01 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 नवंबर को देर रात 03 बजकर 47 मिनट पर होगा। ऐसे में 26 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी (Kab Hai Utpanna Ekadashi 2024) व्रत किया जाएगा।
।।विष्णु चालीसा का पाठ।।
''दोहा''विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।यह भी पढ़ें: Utpanna Ekadashi 2024: उत्पन्ना एकादशी पर तुलसी की मंजरी से करें ये उपाय, धन से भर जाएगी खाली तिजोरी
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥
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