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Nirjala Ekadashi 2024: द्वादशी तिथि में करें निर्जला एकादशी व्रत का पारण, नोट करें समय

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी और भीमसेनी एकादशी (Bhimseni Ekadashi 2024) के नाम से जाना जाता है। इस व्रत में अन्न और जल का सेवन नहीं किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 18 Jun 2024 12:10 PM (IST)
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Nirjala Ekadashi 2024: द्वादशी तिथि में करें निर्जला एकादशी व्रत का पारण, नोट करें समय

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Nirjala Ekadashi Vrat Paran 2024: पंचांग के अनुसार, आज यानी 18 जून को निर्जला एकादशी व्रत है। एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में किया जाता है। इसके बाद श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में अन्न, धन और वस्त्र समेत आदि चीजों का दान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि व्रत के बाद दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जातक को भगवन विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।निर्जला एकादशी व्रत का पारण शुभ समय में करना फलदायी माना गया है।

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निर्जला एकादशी 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Nirjala Ekadashi 2024 Date and Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 17 जून को सुबह 04 बजकर 43 मिनट से हुई है। वहीं, इस तिथि का समापन 18 जून को सुबह 06 बजकर 24 मिनट पर हो गया है। सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व है। ऐसे में निर्जला एकादशी व्रत आज यानी 18 जून को किया जा रहा है।

निर्जला एकादशी व्रत पारण का समय (Nirjala Ekadashi Vrat Parana 2024)

निर्जला एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में करने का विधान है। व्रत का पारण 19 जून को सुबह 05 बजकर 23 मिनट से लेकर 07 बजकर 28 मिनट के बीच में कर सकते हैं।

निर्जला एकादशी पर करें ये दान (Nirjala Ekadashi Daan)

सनातन धर्म में पर्व और व्रत में दान करने का विशेष महत्व है। अगर आप भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो धन, वस्त्र और अन्न का दान करें। इसके अलावा पानी से भरा मटका और मौसमी फल भी दान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक की मनचाही इच्छा पूरी होती है। घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

इन मंत्रों का करे जप

धन-समृद्धि मंत्र

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

विष्णु गायत्री मंत्र

ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।

तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।