Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Saphala Ekasdashi Vrat Katha: सफला एकादशी व्रत में पढ़ें ये कथा, शुभ फल की होगी प्राप्ति

पौष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार सफला एकादशी 7 जनवरी को है। यह एकादशी वर्ष 2024 की प्रथम एकादशी है। सफला एकादशी के दिन विधिपूर्वक पूजा-व्रत करने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और रुके हुए कार्यों में सफलता हासिल होती है।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Sat, 06 Jan 2024 04:08 PM (IST)
Hero Image
Saphla Ekasdashi Vrat Katha: सफला एकादशी व्रत में पढ़ें ये कथा, शुभ फल की होगी प्राप्ति

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi: सनातन धर्म में एकादशी तिथि का अधिक महत्व है। पौष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार सफला एकादशी 7 जनवरी को है। यह एकादशी वर्ष 2024 की प्रथम एकादशी है। सफला एकादशी के दिन विधिपूर्वक पूजा-व्रत करने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और रुके हुए कार्यों में सफलता हासिल होती है। साथ ही घर में सुख समृद्धि का वास होता है। सफला एकादशी व्रत कथा पढ़ने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सफला एकादशी व्रत कथा पढ़ने से पूजा सफल होती है और व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। चलिए जानते हैं सफला एकादशी व्रत की कथा।

सफला एकादशी व्रत कथा (Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi)

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चंपावती नगर में एक महिष्मान नाम का राजा था और उसके 4 पुत्र थे। सबसे बड़े लुम्पक नाम का बेटा दुष्ट और पापी था। वह हमेशा बुरे कार्य करता था और देवी-देवता की निंदा करता था। एक दिन राजा ने क्रोध में आकर उसे देश से निकाल दिया। इसके बाद लुम्पक जंगल में रहकर मांस का सेवन कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। एक समय ऐसा आया जब लुम्पक को 3 दिन तक कुछ भी खाने को नहीं मिला, तो वह भूखा भटकता हुआ एक संत की कुटिया पर पहुंच गया।

यह भी पढ़ें: Swastik Sign: सुख-समृद्धि के लिए घर की इस दिशा में बनाए स्वस्तिक, यहां जानें सही तरीका

खास बात ये थी कि उस दिन एकादशी तिथि थी। संत ने उसका आदर सम्मान किया और उसको भोजन कराया। संत के इस बर्ताव से उसकी बुद्धि में परिवर्तन आया। लुम्पक साधु के चरणों में गिर पड़ा और साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया। समय बीतने के साथ लुम्पक के चरित्र में बदलाव आया। इसके बाद वह संत के कहने पर एकादशी व्रत करने लगा।

इसके बाद महात्मा ने उसके समक्ष अपना वास्तविक रूप प्रकट किया। महात्मा के वेश में स्वयं लुम्पक के पिता महिष्मान खड़े थे। फिर इसके बाद लुम्पक ने राजा का कार्यभार संभाला और लुम्पक सफला एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने लगा।

यह भी पढ़ें: Lal Kitab ke Upay: बुरी नजर कर रही है परेशान, तो आजमाएं लाल किताब के ये उपाय

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'