Move to Jagran APP

Varuthini Ekadashi 2024: इस साल कब है वरुथिनी एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं पारण का समय

सनातन शास्त्रों में वरुथिनी एकादशी की महिमा एवं व्रत फल का गुणगान किया गया है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक पाप एवं बुराई से दूर रहते हैं। साथ ही साधक को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के कई कठोर नियम हैं। इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत पूर्णतः सफल माना जाता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 18 Apr 2024 08:28 AM (IST)
Hero Image
Varuthini Ekadashi 2024: इस साल कब है वरुथिनी एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं पारण का समय
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Varuthini Ekadashi 2024: हर वर्ष वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन वरुथिनी एकादशी मनाई जाती है। इस वर्ष 04 मई को वरुथिनी एकादशी है। सनातन शास्त्रों में वरुथिनी एकादशी की महिमा एवं व्रत फल का गुणगान किया गया है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक पाप एवं बुराई से दूर रहते हैं। साथ ही साधक को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के कई कठोर नियम हैं। इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत पूर्णतः सफल माना जाता है। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो वरुथिनी एकादशी पर विधि-विधान से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करें। आइए, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं पारण का समय जानते हैं-

यह भी पढ़ें: हनुमान जी की पूजा करने से क्यों कम होता है साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव

शुभ मुहूर्त

वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 03 मई को देर रात 11 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और 04 मई को रात 08 बजकर 38 मिनट पर समाप्तहोगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। इसके लिए 04 मई को वरुथिनी एकादशी मनाई जाएगी।

पूजा विधि

वरुथिनी एकादशी के दिन ब्रह्म बेला में उठें। इस समय भगवान नारायण को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई कर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें और पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद पूजा गृह में पंचोपचार कर विधिपूर्वक भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीले रंग का फूल, फल, हल्दी, अक्षत, चंदन, खीर आदि चीजें अर्पित करें। पूजा के समय विष्णु चालीसा, विष्णु कवच और स्तोत्र का पाठ करें। अंत में आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। संध्याकाल में आरती कर फलाहार करें। अगले दिन पूजा कर पारण करें।

पारण का समय

साधक 04 मई को सुबह 05 बजकर 37 मिनट से लेकर 08 बजकर 17 मिनट के मध्य व्रत खोल सकते हैं। इस समय में स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके पश्चात ब्राह्मणों को दान देकर व्रत तोड़ें।

यह भी पढ़ें: नरक का दुख भोगकर धरती पर जन्मे लोगों में पाए जाते हैं ये चार अवगुण

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेंगी।