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Tula Sankranti 2023 Date: आश्विन महीने में कब है तुला संक्रांति? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं सूर्य मंत्र

Tula Sankranti 2023 Date पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी 18 अक्टूबर को तुला संक्रांति है। इस दिन पुण्य काल प्रातः काल यानी सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक है। इस अवधि में पूजा जप-तप और दान कर सकते हैं। वहीं महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर 08 बजकर 18 मिनट तक है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 04 Oct 2023 05:34 PM (IST)
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Tula Sankranti 2023 Date: आश्विन महीने में कब है तुला संक्रांति? जानें-शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं सूर्य मंत्र

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Tula Sankranti 2023 Date: सनातन धर्म में संक्रांति तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान का विधान है। साथ ही पूजा, जप-तप और दान किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि संक्रांति तिथि पर पवित्र नदी में स्नान करने से अनजाने में किए गए सारे पाप कट जाते हैं। वहीं, पूजा के पश्चात दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से संक्रांति तिथि पर पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही पूजा संपन्न कर आर्थिक स्थिति के अनुरूप दान करते हैं। इस वर्ष 18 अक्टूबर को तुला संक्रांति है। आइए, तुला संक्रांति का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व जानते हैं-

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तुला संक्रांति तिथि

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी 18 अक्टूबर को तुला संक्रांति है। इस दिन पुण्य काल प्रातः काल यानी सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक है। इस अवधि में पूजा, जप-तप और दान कर सकते हैं। वहीं, महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर 08 बजकर 18 मिनट तक है। इस दौरान पूजा और दान करने से साधक को भगवान भास्कर की विशेष कृपा प्राप्त होगी।

सूर्य राशि परिवर्तन

ज्योतिष पंचांग की मानें तो आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को देर रात 01 बजकर 29 मिनट पर सूर्य देव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। इस दौरान 24 अक्टूबर को स्वाति और 07 नवंबर को विशाखा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसके पश्चात, 17 नवंबर को वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे।

पूजा विधि

तुला संक्रांति तिथि पर ब्रह्म बेला में उठकर घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के पश्चात गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अगर सुविधा है, तो पवित्र नदी में स्नान कर सकते हैं। इस समय आचमन कर पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। अब लाल रंग और काले तिल मिश्रित जल से सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

तदोपरांत, पंचोपचार कर भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। पूजा के समय सूर्य चालीसा और सूर्य कवच का पाठ करें। साथ ही कुंडली में सूर्य मजबूत करने हेतु सूर्य मंत्र का जाप करें। अंत में आरती कर भगवान से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। इसके पश्चात, अपनी आर्थिक स्थिति के अनुरूप दान करें।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'