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Adiyogi Temple: क्या संदेश देती है आदियोगी मूर्ति, जानिए इसका आध्यात्मिक पहलू

Adiyogi Temple धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की उपासना करने से साधक के सभी रोग दोष और पीड़ाएं दूर हो जाती है। भारत से लेकर विदेश तक में कई ऐसे मंदिर हैं जो भगवान शिव को समर्पित हैं। भगवान शिव को समर्पित आदियोगी मूर्ति का अनावरण 11 मार्च 2017 को किया गया था। आइए जानते हैं इस मूर्ति के आध्यात्मिक पहलू के विषय में।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 19 Aug 2023 02:59 PM (IST)
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Adiyogi shiva Temple आदियोगी मूर्ति का आध्यात्मिक पहलू।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Adiyogi Temple: भारत में ऐसे ऐसे स्थान हैं जिनके प्रति लोगों की विशेष आस्था है। आज हम आपको एक प्रसिद्ध स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं। तमिलनाडु के शहर कोयंबटूर में भगवान शिव को चित्रित करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति आदियोगी स्थापित है। यह प्रतिमा 112 फीट ऊंची है, जिसका वजन लगभग 500 टन है। इसे एक प्रसिद्ध भारतीय योगी और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा बनवाया गया।  

क्या है इस मूर्ति का महत्व

भगवान शिव अमर शक्ति हैं जिन पर पद, रूप और काल का कोई बंधन नहीं है। साथ ही, वह हिंदू धर्म में सर्वोच्च शक्ति माने जाते हैं। देवाधिदेव महादेव मनुष्य को उनके कर्मों के बंधन से मुक्त करते हैं। यह प्रतिमा आदियोगी अर्थात भगवान शिव को समर्पित है। 

आदियोगी शिव प्रतिमा में महान 'योगी' को पूरी तरह से गहन ध्यान और पारलौकिक वास्तविकता में लीन देखा जा सकता है। ईशा फाउंडेशन के मुताबिक यह प्रतिष्ठित चेहरा मुक्ति का प्रतीक है और उन 112 मार्गों को दर्शाता है, जिनसे इंसान योग विज्ञान के जरिए अपनी परम प्रकृति को प्राप्त कर सकता है।

आदियोगी प्रतिमा की खासियत

हर अमावस्या के दिन, आसपास के गांवों के लोगों द्वारा योगेश्वर लिंग पर पारंपरिक प्रसाद चढ़ाया जाता है। योगेश्वर लिंग पर "शंभो" मंत्र चार दक्षिण भारतीय भाषाओं: तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में लिखा गया है। आदियोगी मूर्ति की गले की माला को असली रुद्राक्ष से बनाया गया है।

साथ ही यह दुनिया की सबसे बड़ी रुद्राक्ष माला भी है, जिसमें 100,008 रुद्राक्ष पिरोए गए हैं। भक्त गण आदियोगी के चारों ओर लगे हुए 621 त्रिशूलों पर काला कपड़ा बांधकर भगवान आदियोगी को वस्त्र अर्पित करते हैं।

शिव जी को क्यों कहा जाता है आदियोगी

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है। आदियोगी का अर्थ- पहला योगी या आदिगुरू, या पहले गुरु भी हैं। अर्थात भगवान शिव को प्रथम योगी और योग का प्रवर्तक माना जाता है। आज हम जिसे योगिक विज्ञान के रूप में जानते हैं, उसके जनक शिव ही हैं। योग, इस जीवन की मूलभूत रचना को जानने, और इसे अपनी परम संभावना तक ले जाने का एक विज्ञान और तकनीक है।

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