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Asawara Mata Temple: इस मंदिर में लकवा जैसी बीमारी का भी हो जाता है इलाज, जानिए इससे जुड़ी खास बातें

हिंदू धर्म कई रहस्यों और चमत्कारों से भरा हुआ है जो किसी भी व्यक्ति को आश्चर्य में डाल सकते हैं। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें माता के दर्शन करने से साधक को कई पुरानी और लाइलाज बीमारियों से भी राहत मिल जाती है। जिस कारण इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Sat, 05 Oct 2024 02:20 PM (IST)
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Avari Mata Mandir: इस मंदिर में लकवा जैसी बीमारी का भी हो जाती है इलाज (Picture Credit: instagram)

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भारत में कई ऐसे चमत्कारी मंदिर स्थित है, जो अपनी मान्यताओं को लेकर प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको राजस्थान में स्थित आवरी माता मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। साथ ही इस मंदिर में नवरात्र के पावन अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। तो चलिए जानते हैं इस अद्भुत और चमत्कारी मंदिर के विषय में।

कहां स्थित है यह मंदिर

आवरी माता मंदिर, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के आसावरा गांव में स्थित है, जिसे आसावरा माता (Asawara Mata Temple) के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर पहाड़ियों और झरनों वाले क्षेत्र में स्थापित है, जिस कारण आस-पास का वातावरण काफी मनमोहक लगता है। मंदिर के परिसर में भगवान हनुमान की भी एक सुंदर स्थापित है। इस मंदिर को करीब 750 वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है।

मंदिर को लेकर मान्यता

मां आवरी के मंदिर को लेकर यह मान्यता प्रसिद्ध है कि माता के दरबार में आने वाले श्रद्धालु, जो शारीरिक व्याधियों जैसे लकवा आदि से पीड़ित हैं, वह स्वस्थ होकर घर को लौटते हैं। इसके लिए साधक को ठीक होने तक मंदिर के परिसर में ही रहना होता है और इस दौरान भक्तगण आवरी माता की दैनिक आरती में शामिल होना होता है। माता की आरती प्रातः 5 बजे और शाम को 6:30 बजे होती है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि यहां स्थित कुंड में स्नान करने और माता की मूर्ति को स्नान कराने के दौरान उतरे पानी को पिलाने से लकवा रोग भी ठीक हो जाता है।

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मंदिर से जुड़ी अन्य खास बातें

इस मंदिर में नवरात्र और हनुमान जयंती का पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। मंदिर में छोटी-छोटी खिड़कियां हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में बखारियां कहा जाता है। मंदिर की परिक्रमा के दौरान लकवा पीड़ित लोगों को इन्हीं बखारियों में से होकर निकाला जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि सुबह, दोपहर व सायंकाल तीनों समय में माता का अलग-अलग प्रतिरूप दिखाई देता है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।