Badrinath Closing Date 2024: इस दिन से बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट, जानें कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम?
इस बार बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 17 नवंबर (Badrinath Closing Date 2024) को बंद होंगे। इसके बाद अगले 6 महीने तक जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर में भगवान बद्रीविशाल की पूजा-अर्चना की जाएगी। मंदिर के बंद होने की उपासना 13 नवंबर से शुरू होगी। ऐसे में आइए इस लेख में जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ महत्पूर्ण बातें विस्तार से।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। बद्रीनाथ धाम को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का निवास स्थल माना जाता है। यह धाम उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के पर नर-नारायण नामक दो पर्वतों पर स्थापित है। धार्मिक मान्यता है कि महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने बद्रीनाथ धाम में की थी। हर साल बद्रीनाथ मंदिर में अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर में श्रीहरि के रूप बद्रीनारायण की पूजा-अर्चना होती है। हर साल शीतकाल में इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और अगले 6 महीने के बाद मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। इस बार बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 17 नवंबर (Badrinath Closing Date 2024) को बंद होंगे। क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ मंदिर का नाम कैसे पड़ा? अगर नहीं पता, तो आइए जानते हैं इसकी वजह के बारे में।
ऐसे पड़ा बद्रीनाथ मंदिर का नाम
धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार ऐसा समय आया कि जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने जीवन में कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने हिमालय में जाकर तपस्या की। इस दौरान हिमालय में बर्फ गिरने लगी, जिससे विष्णु जी बर्फ से ढंक गए। इस स्थिति को धन की देवी मां लक्ष्मी से देखा नहीं गया, तो वह वृक्ष बनकर उसके नजदीक खड़ी हो गईं, जिसकी वजह से उनके ऊपर बर्फ पड़ने लगी। इसके बाद लक्ष्मी जी विष्णु जी को बारिश और बर्फ से बचाती रहीं। इसके पश्चात जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई, तो उन्होंने देखा कि मां लक्ष्मी बर्फ से ढकी हुई हैं।ऐसा देख उन्होंने कहा कि तुमने मेरे संग तपस्या की। इसी वजह से अब से इस धाम में मेरे संग तुम्हारी पूजा-अर्चना की जाएगी। साथ ही विष्णु जी ने कहा कि तुम्हारे बद्री यानी बदरी वृक्ष वजह से इस धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा। यह भी पढ़ें: Mahalakshmi Mandir: मायानगरी में विराजती हैं धन की देवी मां लक्ष्मी, दर्शन करने से दूर होती है आर्थिक तंगी
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बद्रीनाथ धाम को कई नामों से जाना जाता है। स्कन्दपुराण में बद्री क्षेत्र को मुक्तिप्रदा कहा गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सतयुग के दौरान ही बद्रीनाथ धाम का नाम पड़ा। त्रेता युग में भगवान नारायण के द्वारा इस बद्रीनाथ धाम को योग सिद्ध कहा गया। वहीं, द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया है। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान के एक रूप बद्रीनारायण की प्रतिमा विराजमान है। यह मूर्ति 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित है।
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