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Badrinath Temple: यहां स्थापित है विष्णु जी की स्वयं प्रकट प्रतिमाओं में से एक, जानें कहां है स्थित

Badrinath Temple आज इस लेख में हम आपको बद्रीनाथ के बारे में बता रहे हैं। बद्रीनाथ कहां स्थित है और इस धाम का महत्व क्या है इसकी जानकारी हम आपको जागरण अध्यात्म के इस लेख में दे रहे हैं। आइए जानते हैं बद्रीनाथ के बारे में।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 08 Oct 2020 09:30 AM (IST)
Badrinath Temple: यहां स्थापित है विष्णु जी की स्वयं प्रकट प्रतिमाओं में से एक, जानें कहां है स्थित
Badrinath Temple: सरकार ने हाल ही में उत्तराखंड के प्रसिद्ध धामों बद्रीनाथ और केदारनाथ के दर्शन करने वालों की प्रतिदिन संख्या को बढ़ाकर 3,000 कर दिया गया है। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड के अनुसार, गंगोत्री धाम के लिए श्रद्धालुओं की अधिकतम संख्या 900 और यमुनोत्री धाम के लिए 700 कर दी गई है। आज इस लेख में हम आपको बद्रीनाथ के बारे में बता रहे हैं। बद्रीनाथ कहां स्थित है और इस धाम का महत्व क्या है इसकी जानकारी हम आपको जागरण अध्यात्म के इस लेख में दे रहे हैं। आइए जानते हैं बद्रीनाथ के बारे में।

यहां स्थित है बद्रीनाथ:

यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। कुछ ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिससे यह कहा जा सकता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं-9वीं सदी में हुआ था। मंदिर के आस-पास जो नगर बसा हुआ है उसे बद्रीनाथ ही कहा जाता है।

बद्रीनाथ की मूर्ति:

यहां पर विष्णु भगवान के एक रूप बद्रीनारायण की प्रतिमा स्थापित है। यह मूर्ति 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित है। मान्यता है कि इस मूर्ति को आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था। इसे विष्णु भगवान की 8 स्वयं प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक माना जाता है।

बद्रीनाथ को अलग-अलग कालों में अलग-अलग नामों से जाना गया है। स्कन्दपुराण में बद्री क्षेत्र को मुक्तिप्रदा कहा गया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि सत युग में यही इस क्षेत्र का नाम था। त्रेता युग में भगवान नारायण के इस क्षेत्र को योग सिद्ध कहा गया। द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया है। वहीं, कलियुग में इसे बद्रिकाश्रम अथवा बद्रीनाथ कहा जाता है।

बद्रीनाथ की कैसे हुई उत्पत्ति:

इसकी एक कथा प्रचलित है। एक बार मुनि नारद भगवान् विष्णु के दर्शन हेतु क्षीरसागर पधारे। यहां उन्होंने माता लक्ष्मी को देखा कि वो श्री हरि के पैर दबा रही थीं। नारद जी ने भगवान विष्णु से इस बारे में पूछा तो वो अपराधबोध से ग्रसित होकर तपस्या करने के लिए हिमालय चले गए। जब श्री हरि योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तब वहां बहुत बर्फ गिरने लगी। इस हिमपात में विष्णु जी डूब चुके थे। उनकी यह हालत देख मां लक्ष्मी परेशान हो गईं और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के पास जाकर बद्री वृक्ष का रूप धारण कर लिया। हिमपात उनपर गिरने लगा और वो सहती रहीं। भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने के लिए मां लक्ष्मी ने कठोर तपस्या की। कई वर्षों तक श्री हरि ने तपस्या की और जब उनका तप खत्म हुआ तब उन्होंने देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तब श्री हरि ने कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है। आज से इस धाम में मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा। तुमने मेरी रक्षा बद्री वृक्ष के रूप में की है ऐसे में आज से मुझे बद्री के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।