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Daksheswar Mahadev Temple: इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से दूर होता है पितृ दोष, माता सती से जुड़ा है कनेक्शन

भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। अपने भक्तों का उद्धार करते हैं तो दुष्टों का संहार (Daksheswar Mahadev Temple) करते हैं। देवों के देव महादेव की कृपा से साधक को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मृत्यु के उपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से भगवान शिव की पूजा-उपासना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 14 Jul 2024 09:03 PM (IST)
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Daksheswar Mahadev Temple: माता सती की कथा

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Daksheswar Mahadev Temple: सनातन धर्म में सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में भगवान शिव की भक्ति भाव से न केवल पूजा-उपासना की जाती है, बल्कि कांवड़ यात्रा भी की जाती है। बोल बम, 'बम भोले' और 'हर हर महादेव' के उद्घोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। भक्तजन सुविधा अनुसार गंगाजल, सामान्य जल और दूध से भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।

भगवान शिव जलाभिषेक से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। अपनी कृपा भक्तों पर बरसाते हैं। उनकी कृपा से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही पृथ्वी लोक पर सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। ज्योतिषियों की मानें तो भगवान शिव की पूजा करने से कुंडली में व्याप्त सभी प्रकार के अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां भगवान शिव के दर्शन मात्र से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है? आइए, इस मंदिर के बारे में सबकुछ जानते हैं-

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कहां है मंदिर ?

भगवान शिव को समर्पित दक्षेश्वर महादेव मंदिर (Mangleshwar Mahadev Temple Importance) देवों की भूमि उत्तराखंड में है। उत्तराखंड में चार धाम समेत कई प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इनमें एक तीर्थ स्थल दक्षेश्वर महादेव मंदिर है। यह मंदिर हरिद्वार के कनखल में स्थित है। इस मंदिर का नाम माता सती के पिता जी के नाम पर दक्षेश्वर महादेव मंदिर रखा गया है। इतिहासकारों की मानें तो भगवान शिव का ससुराल कनखल में ही है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ दक्ष प्रजापति की भी पूजा की जाती है। मंदिर का निर्माण 1810 में रानी धनकौर द्वारा करवाया गया था। वहीं, 1962 में मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया गया था। आसान शब्दों में कहें तो सन 1962 में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था। इस मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं। मंदिर परिसर में मां गंगा का मंदिर भी है।

कथा

सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिर काल में देवों के देव महादेव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। इस विवाह से प्रजापति दक्ष प्रसन्न नहीं थे। इसके लिए भगवान शिव और उनके मध्य वैचारिक द्वंद्व चलता रहता था। कई अवसर पर राजा दक्ष भगवान शिव की बातों से सहमत नहीं होते थे। भगवान शिव अपने ससुर राजा दक्ष के स्वभाव से भली-भांति परिचित थे। अतः विवाह पश्चात शिव जी ससुराल न के बराबर जाते थे। हालांकि, माता सती के मन में मायके का प्यार हमेशा रहता है। कई अवसर पर भगवान शिव को मनाकर मायके चली जाती थीं।

एक बार की बात है, जब राजा दक्ष ने कनखल में बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में तीनों लोकों के सभी लोगों को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। माता सती को पिता द्वारा किए जाने वाले यज्ञ का पता चला, तो माता सती तत्क्षण भगवान शिव से कनखल जाने की जिद करने लगे। भगवान शिव सर्वज्ञाता हैं। उन्हें पूर्व से ज्ञात था कि राजा दक्ष द्वारा किए जा रहे यज्ञ में कोई न कोई अनहोनी जरूर होगी।

सर्वप्रथम भगवान शिव ने माता सती को न जाने की सलाह दी। हालांकि, माता सती के मन में मायके के प्यार देख उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब माता सती कनखल पहुंची, तो पूर्व की भांति उनका आदर-सत्कार नहीं किया गया। साथ ही यज्ञ के दौरान भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का भी प्रयोग किया गया। यह सब देख माता सती को आत्मग्लानि होने लगी। उस समय माता सती ने कैलाश ने लौटने का निश्चय किया। साथ ही भगवान शिव की बात न मानने की भी ग्लानि हुई।

यह सब सोच माता सती ने यज्ञ वेदी में कूदकर आहुति दे दी। यह खबर पाकर भगवान शिव अति क्रोधित हो उठे। उस समय भगवान शिव ने भद्रकाली और वीरभद्र को राजा दक्ष के संहार हेतु भेजा। वीरभद्र ने भगवान शिव की आज्ञा का पालन कर राजा दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि वीरभद्र और भद्रकाली के कनखल पहुंचने के बाद भयानक युद्ध हुआ था। इस युद्ध में राजा दक्ष की पराजय हुई थी। उस समय वीरभद्र ने राजा दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया।

यह खबर जान सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव से क्रोध शांत करने और राजा दक्ष को जीवनदान देने की याचना की। स्वयं ब्रह्मा जी ने भी भगवान शिव की आराधना की। इसी समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के पार्थिव शरीर के कई टुकड़े कर दिए। जिस-जिस स्थान पर माता सती के पार्थिव शरीर के टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर आज शक्तिपीठ है। उस समय भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ। तब उन्होंने कनखल में प्रकट होकर राजा दक्ष को अभयदान प्रदान किया।

राजा दक्ष को अपनी गलती का अहसास हुआ। तब राजा दक्ष ने भगवान शिव से क्षमा याचना की और कनखल में रहने का वरदान मांगा। कहते हैं कि सावन के महीने में भगवान कनखल में रहते हैं। इसी स्थान पर भगवान शिव स्वयंभू शिवलिंग रूप में प्रकट हुए। भगवान शिव ने ही इस स्थान का नाम दक्षेश्वर महोदेव रखा। इस मंदिर में भगवान शिव एवं राजा दक्ष की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।  

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