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172 साल पुरानी रसोई के चावल बांटकर खाते हैं श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा!

72 साल पुराने इस मंदिर की रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है. फिर इन कलशों को एक के बाद एक भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा के सामने प्रस्तुत किया जाता है.

By Pratima JaiswalEdited By: Updated: Fri, 24 Nov 2017 06:31 PM (IST)
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172 साल पुरानी रसोई के चावल बांटकर खाते हैं श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा!
हमारे देश को चमत्कारों का देश माना जाता है. कहा जाता है कि यहां के धार्मिक स्थलों पर जितनी कहानियां सुनने को मिलती है, उतनी शायद दुनिया में कहीं नहीं मिलती. ऐसी ही एक कहानी है जगन्नाथ मंदिर की. जहां ओडिशा के जगन्नाथ पुरी की ही तरह धूमधाम से हर साल रथयात्रा निकाली जाती है. इस मंदिर से जुड़ा एक चमत्कार भक्तों के मन को मोह लेता है.

 

रथयात्रा के दौरान यहां भी भगवान भगवान जगन्नाथ अपने बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मंदिर से बाहर रथ पर सैर के लिए निकलते हैं. इस भव्य रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की प्रतिमाओं को सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित करके उनको दूध चढ़ाया जाता है. 

सात कलशों में भोग पकाना और टूटना 

इस रथयात्रा के साथ दो दिवसीय मेले की शुरुआत हो जाती है. मेले के दूसरे दिन 172 साल पुराने इस मंदिर की रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है. फिर इन कलशों को एक के बाद एक भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा के सामने प्रस्तुत किया जाता है. यहां उपस्थित लोगों का कहना है कि ये सातों कलश स्वयं ही एक समान चार भागों में चटक कर टूट जाते हैं यानि तीनों भगवान मिलकर अपना हिस्सा बांट लेते हैं. इस प्रसाद को भक्तों में बाटं दिया जाता है. 

45.6 ऊंचा होता है रथ 

बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है. देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं. इसका रंग लाल और पीला होता है. साथ ही भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.