मां सरस्वती के 5 प्रमुख मंदिर
यहां हम कुछ ऐसे धार्मिक स्थलों के बारे में आपको बता रहे हैं जहां मां सरस्वती की पूजा सालों से की जा रही है। यहां वसंत पंचमी पर जाना अति शुभकारी माना गया है।
By Molly SethEdited By: Updated: Mon, 22 Jan 2018 10:29 AM (IST)
वारंगल श्री विद्या सरस्वती मंदिर
यहां हंस वाहिनी विद्या सरस्वती मंदिर में माता सरस्वती की पूजा की जाती है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के मेंढक जिले के वारंगल में स्थित है। कांची शंकर मठ मंदिर का रखरखाव करता है। इसी स्थान पर अन्य देवी-देवताओं के मंदिर जैसे श्री लक्ष्मी गणपति मंदिर, भगवान शनीश्वर मंदिर, और भगवान शिव मंदिर निर्मित हैं।
पुष्कर का सरस्वती मंदिरराजस्थान का पुष्कर जहां अपने ब्रह्मा मंदिर के लिए मशहूर है, वहीं विद्या की देवी सरस्वती का भी प्रसिद्ध मंदिर है। यहां सरस्वती के नदी रूप के भी प्रमाण मिलते हैं और उन्हें उर्वरता व शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
श्रृंगेरी मंदिरस्थान का शारदा मंदिर भी अत्यंत लोकप्रिय है। इसे शरादाम्बा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ज्ञान और कला की देवी को समर्पित, शरादाम्बा, दक्शनाम्नाया पीठ को आचार्य श्री शंकर भागावात्पदा द्वारा 7 वीं शताब्दी में बनाया गया था। किंवदंतियों के अनुसार, 14 वीं शताब्दी के दौरान इष्टदेव की चंदन की प्राचीन प्रतिमा को सोने और पत्थर से अंकित कर प्रतिस्थापित किया गया था।पनाचिक्कड़ सरस्वती मंदिरयह मंदिर पनाचिक्कड़ केरल में स्थित है, ये केरल का एकमात्र मंदिर है जो देवी सरस्वती को समर्पित है। इस मंदिर को दक्षिण मूकाम्बिका के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर चिंगावनम के पास स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर को किझेप्पुरम नंबूदिरी ने स्थापित किया था। उन्होंने इस प्रतिमा को खोजा और इसे पूर्व की तरफ मुख करके स्थापित किया । पश्चिम की तरफ मुख करके एक और प्रतिमा की स्थापना की गई लेकिन उसका कोई आकार नहीं है। प्रतिमा के पास एक दीया है जो हर वक्त जलता रहता है।
श्री ज्ञान सरस्वती मंदिरसरस्वती के बहुत ही प्रसिद्ध मंदिरों में से एक, यह आंध्र प्रदेश के अदिलाबाद जिले में स्थित है जिसे प्रसिद्ध बासर या बसरा नाम से बुलाया जाता है। बासर में, देवी ज्ञान सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनके द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है। यह मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद ऋषि व्यास शांति की खोज में निकले। वे गोदावरी नदी के किनारे कुमारचला पहाड़ी पर पहुंचे और देवी की आराधना की। उनसे प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें दर्शन दिए। देवी के आदेश पर उन्होंने प्रतिदिन तीन जगह तीन मुट्ठी रेत रखी। चमत्कार स्वरूप रेत के ये तीन ढेर तीन देवियों की प्रतिमा में बदल गए जो सरस्वती, लक्ष्मी और काली कहलाईं।