Move to Jagran APP

Mumba Devi Temple: समंदर से माया नगरी की रक्षा करती हैं मां मुंबा देवी, जानें मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य

इतिहासकारों की मानें तो मुंबा देवी के नाम पर ही माया नगरी का नाम मुंबई पड़ा है। अंग्रेजों के जमाने में मुंबई को बम्बई या बॉम्बे कहा जाता था। वर्ष 1995 में बम्बई का नाम बदलकर मुंबई रखा गया। उस समय से सागर किनारे बसे खूबसरत शहर को मुंबई कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कोली समाज के लोग पूर्व से ही बम्बई को मुंबई ही कहते थे।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Mon, 10 Jun 2024 09:21 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jun 2024 09:21 PM (IST)
Mumba Devi Temple: समंदर से माया नगरी की रक्षा करती हैं मां मुंबा देवी (Image Credit- mumbadevi.org.in)

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Mumba Devi Temple History: जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की महिमा निराली है। अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। वहीं, दुष्टों का संहार करती हैं। मां के शरण में रहने वाले लोगों को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है। साथ ही समय के साथ भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। देशभर में जगत जननी मां दुर्गा के कई प्रमुख एवं ख्याति प्राप्त मंदिर हैं। इनमें एक माया नगरी स्थित मुंबा देवी मंदिर है। इस मंदिर में मां मुंबा की पूजा की जाती है। धार्मिक मत है कि मां मुंबा देवी माया नगरी मुंबई वासियों की समंदर से रक्षा करती हैं। आइए, इस मंदिर के बारे में सबकुछ जानते हैं-

यह भी पढ़ें: कहां है शनिदेव को समर्पित कोकिला वन और क्या है इसका धार्मिक महत्व?


मुंबा मंदिर का इतिहास

इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि मुंबा देवी मंदिर 400 साल पुराना है। इस मंदिर का निर्माण सन 1737 में किया गया था। उस समय कोली समाज के लोगों ने बोरी बंदर में मुंबा देवी मंदिर का निर्माण करवाया। हालांकि, अंग्रेज सरकार ने मुंबा देवी मंदिर को बोरी बंदर से कालबादेवी में स्थानांतरित कर दिया। इस मंदिर के निर्माण हेतु भूमि पांडु सेठ ने दान में दी थी। तत्कालीन समय में पांडु सेठ के परिवार वाले ही मंदिर की देखरेख करते थे। वर्षों बाद हाई कोर्ट के निर्देशानुसार समिति का गठन किया गया। वर्तमान समय में मंदिर की देखरेख न्यास समिति करती है।

कोली समाज

मुंबई और उसके तटीय क्षेत्रों में रहने वाले मछुआरों को कोली कहा जाता है। सन 1737 के समय में बोरी बंदर में मछुआरों की बस्ती थी। कोली समाज के लोग मछली पकड़ने समंदर में जाते थे। मुंबा देवी की पूजा करने के बाद मछुआरे समंदर में जाते थे। धार्मिक मत है कि मां मुंबा देवी समंदर से मछुआरों की रक्षा करती हैं। समंदर में विषम परिस्थिति पैदा होने के बावजूद मछुआरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता था। कुल मिलाकर कहें तो मां मुंबा देवी समंदर से मछुआरों की रक्षा करती थीं। उस समय कोली समाज के लोगों ने बोरी बंदर में मां मुंबा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।

कैसे पड़ा नाम मुंबई

इतिहासकारों की मानें तो मुंबा देवी के नाम पर ही माया नगरी का नाम मुंबई पड़ा है। अंग्रेजों के जमाने में मुंबई को बम्बई या बॉम्बे कहा जाता था। वर्ष 1995 में बम्बई का नाम बदलकर मुंबई रखा गया। उस समय से सागर के किनारे बसे खूबसरत माया नगरी को मुंबई कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कोली समाज के लोग पूर्व से ही बम्बई को मुंबई ही कहते थे।

कहां है मुंबा देवी मंदिर ?

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई के भूलेश्वर (कालबा देवी) में स्थित है। इस स्थान पर मुंबा देवी मंदिर है। श्रद्धालु मुंबई के उपनगरीय लोकल रेल के माध्यम से निकटतम रेलवे स्टेशन पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, बस के जरिए भी मुंबा देवी मंदिर पहुंच सकते हैं। आप देश के किसी कोने से वायु और रेल मार्ग के जरिए मुंबई जा सकते हैं। मुंबा देवी के पास ही जावेरी बाजार है। मुंबई का यह बाजार बेहद प्रसिद्ध है।

मान्यता

स्थानीय लोगों का मां मुंबा देवी में अटूट श्रद्धा है। बड़ी संख्या में भक्त मां मुंबा देवी के दर्शन और पूजा हेतु मंदिर जाते हैं। धार्मिक मत है कि कोई भी साधक खाली हाथ नहीं लौटता है। भक्त की मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है। स्थानीय लोग मंदिर के केंद्र में (मां मुंबा देवी की प्रतिमा की सीध में) दीवार पर सिक्का चिपका कर मनोकामना मांगते हैं। अगर सिक्का चिपक जाता है, तो मनोकामना अवश्य पूरी होती है। वहीं, सिक्के के न चिपकने पर मनोकामना पूरी नहीं होती है। इसके अलावा, भक्तगण दर्शन के समय ही अपनी इच्छा प्रकट करते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त पुनः मां मुंबा के दर्शन हेतु मंदिर जाते हैं।

रोज बदलता है वाहन

जगत जननी मां मुंबा सोमवार के दिन नंदी पर विराजती हैं। वहीं, मंगलवार और शनिवार को गज पर सवार होती हैं, बुधवार को मुर्गा पर विराजती हैं, गुरुवार को गरुड़ पर आरूढ़ होती हैं। जबकि, शुक्रवार को सफेद हंस और रविवार को मां सिंह पर विराजती हैं। मां मुंबा देवी की छह बार आरती की जाती है।

यह भी पढ़ें: इस मंदिर में शनिदेव की पूजा करने के बाद भक्त मिलते हैं गले

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.