Golu Devta Temple: उत्तराखंड का एक ऐसा मंदिर, जहां चिट्ठी लिखने से मिल जाता है न्याय
भारत के कोने-कोने में ऐसे चमत्कारी मंदिर स्थापित हैं जिनकी मान्यताएं न केवल आस-पास के स्थान बल्कि दूर-दूर तक फैली हुई हैं। लोग देवी-देवता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अलग-अलग तरीके आजमाते हैं। आज हम आपको उत्तराखंड में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें भक्त अपनी अर्जी देवता तक पहुंचाने के लिए चिट्ठियों का सहारा लेते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हर कुल का अपना एक आराध्य देवता या देवी होती हैं, जिन्हें कुल देवता या कुलदेवी के रूप में जाना जाता है। यह उस कुल के संरक्षक भी माने जाते हैं। ऐसे में आज हम आपको उत्तराखंड में मौजूद एक ऐसे कुल देवता के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें लेकर ये मान्यता प्रसिद्ध है कि इस देवता के मंदिर में चिट्ठी लिखने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। चलिए जानते हैं इस विषय में।
क्या है मान्यता
उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है, क्योंकि यहां की धरती पर भूमि देवी-देवताओं का वास है। उत्तराखंड में एक नहीं, बल्कि गोलू देवता के कई मंदिर स्थापित हैं। लेकिन हम बात कर रहे हैं इनमें से सबसे लोकप्रिय अल्मोड़ा जिले में स्थिति चितई गोलू देवता के मंदिर के बारे में। जिन्हें स्थानीय लोग न्याय का देवता भी मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां अर्जी लगाने से व्यक्ति को जल्दी न्याय मिलता है। इस मान्यता के साथ गोलू देवता की दूर-दूर तक प्रसिद्धि फैली हुई है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि गोलू देवता भगवान शिव के अवतार हैं।
चढ़ाई जाती है घंटी
इस मंदिर में मनोकामना पूरी होने के बाद घंटी चढ़ाए जाने के परम्परा है। इसी के साथ अपनी मन्नत को पूरा करने के लिए गोलू देवता को पत्र या चिठ्ठी भी लिखी जाती है। कई लोग स्टांप पेपर पर भी अपनी मनोकामना लिखकर भेजते हैं। इस मंदिर की मान्यता कितनी अधिक है, इस बात का पता यहां पर लगे हुए घंटियों और चिट्ठी-स्टांप को देखकर ही पता लगाया जा सकता है।
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कैसी है मूर्ति
गोलू देवता की मूर्ति की बात करें, तो इनकी मूर्ति सफेद रंग की है और वह घोड़े पर सवार हैं। मूर्ति में देवता को पगड़ी बांधे दर्शाया गया है और उन्होंने हाथ में धनुष बाण धारण किया हुआ है। न्याय के देवता के साथ-साथ उन्हें कुमाऊं के राजा भी कहा जाता है।यह भी पढ़ें - Shardiya Navratri में इस जगह होती है महिषासुर की पूजा, ये समुदाय राक्षस को मानते हैं अपना पूर्वज
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