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Govardhan Ki Parikrama: सभी कष्टों को दूर करती है गोवर्धन की परिक्रमा, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत में लोगों की अडिग आस्था है। वहीं गोवर्धन परिक्रमा करने का विशेष महत्व बताया गया है। यदि आप भी परिक्रमा करने का मन बना रहे हैं तो इससे पहले कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है ताकि आपको पुण्य फलों की प्राप्ति हो सके। ऐसे में आइए जानते हैं गोवर्धन यात्रा से जुड़ी संपूर्ण जानकारी।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Thu, 15 Feb 2024 05:04 PM (IST)
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Govardhan Ki Parikrama यहां पढ़ें गोवर्धन यात्रा से जुड़ी जरूरी जानकारी।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Govardhan Ki Parikrama: अपने बचपन में भगवान श्री कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की हैं, जिसमें से एक है श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करने की लीला। इसी लीला के कारण भगवान कृष्ण को गिरधर या गिरिराज नाम से भी बुलाया जाता है। साथ ही इस लीला के कारण गोवर्धन पर्वत को भी गिरिराज जी कहा जाता है। दिवाली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा भी की जाती है।

क्या है इस यात्रा का महत्व

माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत के हर छोटे-बड़े पत्थर में श्री कृष्ण का वास है। यहां तक माना जाता है कि जो व्यक्ति गोवर्धन पर्वत की यात्रा करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि जो लोग यह परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

कब-कब की जाती है यह यात्रा

पूर्णिमा की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर सप्तकोसी गिरिराज की परिक्रमा करना बहुत ही पुण्यकारी बताया गया है। हालांकि शरद पूर्णिमा और गोवर्धन पूजा के दिन इस यात्रा को करना और भी शुभ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर गोवर्धन परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ राधा रानी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कैसे शुरू करें यात्रा

श्री गोवर्धन पर्वत की सम्पूर्ण परिक्रमा सात कोस 14 मील यानी 21 किमी की है। गोवर्धन की परिक्रमा शुरू करते समय सबसे पहले गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें। यह यात्रा मानसी-गंगा कुंड से शुरू होती है और यात्रा राधा कुंड गांव की ओर जाती है। इसके बाद वृंदावन रोड से होते हुए यह यात्रा आगे बढ़ती है। दानघाटी मंदिर यात्रा का पहला पड़ाव है, यहां गिरिराज जी का दूध से अभिषेक किया जाता है।

भक्त अपनी सुविधा के अनुसार इस यात्रा को दो भागो में विभाजित कर दो दिन में लगाते हैं। इन दोनों परिक्रमा को छोटी व बड़ी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस यात्रा को एक ही दिन में पूरा करना अच्छा माना जाता है। सप्तकोसीय गोवर्धन गिरिराज परिक्रमा में बहुत सी छोटी-छोटी परिक्रमाएं है, जिस दौरान विभिन्न स्थलों के दर्शन भी होते हैं जैसे - मानसी गंगा, राधा कुण्ड, गोविन्द कुण्ड, कुसुम सरोवर आदि।

इन बातों का रखें ध्यान

गोवर्धन पर्वत परिक्रमा का पूर्ण लाभ तभी मिलता है, जब आप परिक्रमा के समय मन से सभी प्रकार की चिंता निकालकर केवल भगवान की भक्ति में अपने मन को लगाएं। जो भी लोग गोवर्धन परिक्रमा शुरू करना चाहते हैं, उन्हें मानसी गंगा में स्नान जरूर करना चाहिए। इस बात का खास ख्याल रखें कि कभी भी परिक्रमा को बीच में अधूरा न छोड़े और आपने जिस स्थान से परिक्रमा शुरू की है, वहीं पर उसे समाप्त करें। इस परिक्रमा को नंगे पैर करने की परम्परा है।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'